mushroom farming in uttarakhand: दिल्ली की अच्छी खासी नौकरी छोड़कर पहाड़ लौटे दोनों भाई, मशरूम प्लांट लगाकर शुरू किया स्वरोजगार, अब हो रही है अच्छी कमाई….
पलायन का दंश पहाड़ में किस कदर व्याप्त है इसका अंदाजा खंडहर पड़े मकानों और खाली होते गांवों से आसानी से लगाया जा सकता है। जहां एक ओर राज्य के वाशिंदे सुविधाओं के अभाव का हवाला देकर लगातार शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं वहीं राज्य के कुछ होनहार युवा ऐसे भी हैं जो अपनी कड़ी मेहनत, लगन और काबिलियत के बलबूते न स्वरोजगार अपनाकर केवल कामायाबी की नई दास्तां लिख रहे हैं बल्कि रिवर्स पलायन कर अपने घरों को भी आबाद कर रहे हैं। आज हम आपको राज्य के ऐसे ही दो भाइयों से रूबरू कराने जा रहे हैं जो स्वरोजगार के जरिए न केवल अपनी आजीविका चला रहे हैं वरन गांव के कई अन्य लोगों को भी रोजगार मुहैया करा रहे हैं। जी हां… हम बात कर रहे हैं मूल रूप से राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले के चंबा के डडूर गांव निवासी सुशांत उनियाल और प्रकाश उनियाल की, जिन्होंने दिल्ली की जाब छोड़कर न केवल पहाड़ लौटने का साहस दिखाया है बल्कि अपने बंजर खेतों में मशरूम प्लांट लगाकर स्वरोजगार की नई मिसाल भी पेश की है। यह उनकी कड़ी मेहनत और लगन का ही परिणाम है महज चार वर्ष के भीतर अब उनकी बंजर पड़ी जमीन एक बार फिर सोना उगलने लगी है। और उनके पास गढ़वाल क्षेत्र का सबसे बड़ा मशरूम प्लांट है।
(mushroom farming in uttarakhand)
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प्राप्त जानकारी के अनुसार मूल रूप से राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले के चंबा क्षेत्र के डडूर गांव निवासी सुशांत उनियाल और प्रकाश उनियाल दिल्ली में नौकरी करते थे। बताया गया है कि सुशांत जहां दिल्ली में मल्टीनेशनल कंपनी में सेल्स मैनेजर थे, वहीं उनके भाई प्रकाश एक बैंक में कार्यरत थे। कहने को तो दोनों भाई दिल्ली की भागदौड़ भरी जिंदगी में रहकर अच्छे पैसे कमा रहे थे परंतु उनके मन में हमेशा खाली होते पहाड़ की ही चिंता लगी रहती थी। यही कारण है कि उन्होंने नौकरी छोड़कर पहाड़ लौटने का फैसला किया और 2018 में दोनों भाई गांव लौटे और खुद का काम शुरू करने की योजना बनाई। खाली पड़े बंजर खेतों को देखकर जहां हर किसी का हौंसला टूट सकता है वहीं प्रकाश और सुशांत ने इन बंजर खेतों से ही अपना स्वरोजगार शुरू करने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने वर्ष 2019 में केंद्र सरकार की मिशन ऑफ इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट आफ हिल्स (एमआइडीएच) योजना के तहत 28.65 लाख रुपये का लोन लिया और अपने खेतों में ही ढिंगरी मशरूम का प्लांट लगाया। देखते ही देखते उनकी यह अभिनय पहल रंग लाने लगी।
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उनकी सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लाकडाउन के समय जब लाखों लोगों की आजिविका पर संकट आ खड़ा हुआ था उस समय भी दोनों भाइयों ने 10 लाख रुपये का व्यापार किया। आज उनके पास जहां गढ़वाल क्षेत्र का सबसे बड़ा मशरूम प्लांट है वहीं उनकी गिनती अब राज्य के सफल उद्यमियों में भी होने लगी है। बताया गया है कि उनके प्लांट में हर महीने एक हजार किलो ढिंगरी मशरूम का उत्पादन होता है। स्थानीय बाजार में वह इसे जहां 150-180 रुपये किलो की दर से मशरूम बेचते हैं वहीं देश के दूसरे हिस्सों से भी अब उन्हें आर्डर मिलने लगे हैं। सबसे खास बात तो यह है कि उन्होंने क्षेत्र के करीब 15-20 अन्य युवाओं को भी रोजगार दे रखा है। सीजन में तो यह संख्या और भी अधिक बढ़ जाती है। उनकी सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस मशरूम उत्पादन से सालभर में उन्हें 24 लाख की कमाई हो रही है। पहाड़ के एक छोटे से गांव में सालाना 24 लाख का टर्नओवर वाकई बहुत बड़ी उपलब्धि है।
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