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UTTARAKHAND news: Maa Dhari Devi idol placed in new temple Today. dhari devi new temple latest news devbhoomidarshan17.com

उत्तराखण्ड

पौड़ी गढ़वाल

आज अपने मूल स्थान में विराजेंगी मां धारी देवी मूर्ति विस्थापित करते ही आई थी केदारनाथ आपदा

dhari devi new temple : लंबे इंतजार के बाद आखिरकार आज अपने मूल स्थान पर विराजमान होंगी मां धारी देवी, नवनिर्मित मंदिर में की जाएगी मां की मूर्ति….

करीब नौ साल बाद शनिवार 28 जनवरी को गढ़वाल की प्रसिद्ध मां धारी देवी अपने मूल स्थान में नवनिर्मित मंदिर में विराजमान होने जा रही है। इसके लिए बीते कई दिनों से मंदिर में शतचंडी यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। आपको बता दें कि मां धारी देवी को उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में विराजमान चारों धामों की रक्षक माना जाता है। यहां तक कि यह बातें भी कहीं जाती है कि नौ वर्ष पूर्व जब मां धारी देवी की मूर्ति को उनके प्राचीन मंदिर से प्रतिस्थापित किया गया था तो उसी समय 16 जून 2013 को केदारनाथ में भीषण आपदा आई थी। हालांकि अभी भी कुछ लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं परन्तु यह भी एक कटु सत्य है कि आस्था, भक्ति और श्रद्धा के सामने सारे तर्क बौने साबित हो जाते हैं।
(dhari devi new temple)

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आपको बता दें कि श्रीनगर जल विद्युत परियोजना बनने के कारण करीब नौ वर्ष पहले मां धारी देवी के पौराणिक मंदिर को प्राचीन स्वरूप से हटाकर नदी की झील के बीच पिल्लरों में बनाए गए अस्थाई मंदिर में मां धारी देवी की मूर्ति को शिफ्ट किया गया था। बीते नौ वर्ष से मां धारी देवी की पूजा आराधना इसी मंदिर में होती थी। स्थानीय मान्यताओं के मुताबिक मां धारी देवी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती है। सुबह के समय जहां यह एक कन्या के रूप में नजर आती है वहीं दोपहर में औरत एवं रात्रि को एक बुढ़िया के रूप में नजर आती है। स्थानीय मान्यताओं में ऐसा भी कहा जाता है कि श्रीनगर से 15 किमी दूर मां धारी के सिद्धपीठ में काली माता की एक मूर्ति बहकर आई थी। मान्यताओं के मुताबिक यह कलियासौड़ नामक स्थान पर रूक गई और इसकी जानकारी मां ने स्वयं कुंजु नामक एक सुनार के सपने में आकर दी। मां ने उसे मूर्ति को अलकनंदा नदी से बाहर निकालकर उसी स्थान पर विधि विधान से एक मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया था।
(dhari devi new temple)

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Sunil

सुनील चंद्र खर्कवाल पिछले 8 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राजनीति और खेल जगत से जुड़ी रिपोर्टिंग के साथ-साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपराओं पर लेखन करते हैं। उनकी लेखनी में क्षेत्रीय सरोकारों की गूंज और समसामयिक मुद्दों की गहराई देखने को मिलती है, जो पाठकों को विषय से जोड़ती है।

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