12 वर्षो में किसी ने कोई खबर नहीं ली हंसी प्रहरी (Hansi Prahari)की, आज जब सोशल मीडिया में सुर्खियों में आयी हंसी तब अपने साथ ले जाने भाई पंहुचा हरिद्वार(Haridwar)
वक्त बड़ा बलवान होता है यह हंसी के जीवन में चरितार्थ हो रहा है, सोशल मीडिया से चर्चा में आई, हंसी प्रहरी(Hansi Prahari) जो वर्ष 2000 में कुमाऊं यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ में उपाध्यक्ष चुनी गई और फिर 4 सालों तक वहीं की लाइब्रेरी में भी काम किया, लेकिन बदलते वक्त ने हंसी की पूरी पहचान ही बदल दी, वह दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो गई, हरिद्वार(Haridwar) की घाटों के किनारे भीख मांग कर अपने बेटे का पालन पोषण करती हैं, इतने लम्बे समय के बाद भी हंसी के ससुराल और मायके पक्ष ने उनकी खबर लेना भी उचित नहीं समझा और उन्हें उन्ही के हाल पर अकेला छोड़ दिया। बता दें कि हंसी उस समय सुर्खियों में आई, जब वह अपने बेटे को फराटेदार अंग्रेजी तथा संस्कृत पढ़ा रही थी जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक स्थित गाँव रणखिला की रहने वाली हंसी ने कुमाऊं विश्वविद्यालय अल्मोड़ा से अंग्रेजी तथा राजनीति जैसे विषयों पर डबल एम् ए किया हुआ है। इतनी शिक्षित होने के बावजूद भी वर्तमान में उनकी स्थिति दयनीय है, पढ़ाई में अव्वल तथा सुशिक्षित होने के बाद भी आज हंसी सड़कों पर रहने के लिए मजबूर हो चुकी है लेकिन हौसला नहीं हारा और अपने बेटे को पढ़ा कर प्रशासनिक अधिकारी बनाना चाहती है।
भिक्षावृत्ति करने को मजबूर हंसी का भाई अब पंहुचा हरिद्वार संग चलने की कही बात तो हंसी ने ठुकरा दिया प्रस्ताव:
इसे नियति का खेल हीं कहेंगे कि कुमाऊं विश्वविद्यालय अल्मोड़ा में छात्रा उपाध्यक्ष पद पर चुने जाने तथा सुशिक्षित होने के बाद भी आज हंसी हरिद्वार की सड़कों पर अपना गुजारा करने को मजबूर है , लेकिन आज तक परिवार के किसी भी सदस्य ने हंसी की सुध भी नहीं ली, वही जब सोशल मीडिया पर हंसी चर्चा का विषय बनी तो इसी बीच उनका भाई आनंद राम अनुराग अल्मोड़ा में रह रहे परिजनों से जानकारी लेकर देर शाम नोएडा से हरिद्वार पहुंचे तथा उन्होंने अपनी बहन से मुलाकात कर उसे घर चलने की जिद की लेकिन हंसी ने उनकी एक न सुनी और उनकी इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। कुछ देर हंसी के साथ रहने के बाद आनंद नोएडा लौट गए। आनंद नोएडा में ही प्राइवेट जॉब करते हैं। बताते चलें कि बीते मंगलवार को राज्यमंत्री रेखा आर्या भी हंसी से मिलने पहुंची तथा उनका हालचाल जाना और हंसी के सामने सरकारी नौकरी और आवास का भी प्रस्ताव रखा, वही हंसी पुराने दिनों को याद कर बताती है कि ससुराल की कलह से परेशान होकर वर्ष 2008 में वह लखनऊ से हरिद्वार चली आई। यहां शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण वह नौकरी नहीं कर पाई और रेलवे स्टेशन, बस अड्डा आदि स्थानों पर भीख मांगने लगी। इस हाल में भी हंसी की हिम्मत डिगी नहीं है, वह कई बार अपनी दयनीय स्थिति के लिए सचिवालय और विधानसभा के चक्कर काट चुकी है , वो कहती है अगर सरकार मदद करे तो वह अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देकर उनका भविष्य अच्छा करना चाहती है।
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