Harela festival date 2025 : उत्तराखंड में 16 जुलाई को मनाया जाएगा हरेला पर्व, जाने क्या है इसकी खासियत, किसका प्रतीक माना जाता है हरेला पर्व….
Harela festival date 2025 : उत्तराखंड अपनी संस्कृति और रीति रिवाजो समेत विभिन्न त्योहारों के लिए पूरे विश्व भर में एक अनोखी पहचान रखता है जिसके चलते यहां पर अक्सर ऋतुओं के आवागमन पर भी कई प्रकार के त्यौहार मनाए जाते हैं जो लोगों के मनो में हर वर्ष नया हर्षोल्लास व नवीन ऊर्जा लेकर आते है। ठीक इसी प्रकार का कुछ त्यौहार है हरेला पर्व जिसे उत्तराखंड का लोकप्रिय पर्व माना जाता है जो विशेष रूप से कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र के लोगों द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हरेला पर्व 16 जुलाई को मनाया जाएगा जिसको लेकर लोगों में उत्सुकता बनी हुई है।
यह भी पढ़े :Happy harela wishes 2024: जानें लोकपर्व हरेला की खासियत, किसकी पूजा होती है इस दिन
बता दें हरेला पर्व मुख्य रूप से हरियाली खेती और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक माना जाता है जिसे सावन के आवागमन पर मनाया जाता है इस पर्व के दौरान लोग अपने घरों और खेतों में पेड़ पौधे लगाकर उनकी देखभाल करते हैं। दरअसल यह महीना भगवान शिव का विशेष महीना होता है इसलिए हर वर्ष सावन माह के प्रथम दिन यानी सावन संक्रांति को यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इतना ही नहीं बल्कि इस दिन हरियाली और प्राकृतिक संरक्षण संवर्धन के प्रतीक लोगों द्वारा अपने इष्ट देवता और मंदिरों में हरेला चढाने की परंपरा होती है जिसके साथ लोग धन-धान्य और परिवार की सुख शांति की कामना करते हैं।
जानें कब कब बोया जायेगा हरेला ( Know when Harela will be sown)
11 दिन वालो का हरेला : 6 जुलाई 2025 को बोया जाएगा
10 दिन वालो का हरेला : 7 जुलाई 2025 को बोया जाएगा।
हरेला पर्व पर बनाई जाती है भगवान की मूर्तियां ( Harela festival)
हरेला के पूर्व संध्या पर हरकाली पूजन यानी डेकर पूजा की परंपरा होती है। इस पूजा में घर के आंगन से ही शुद्ध मिट्टी लेकर उसमें भगवान शिव और माता पार्वती समेत भगवान गणेश और कार्तिकेय की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाई जाती है इसके बाद इन मूर्तियों को सुंदर रंगों से रंगा जाता है।हरेला के सामने इन मूर्तियों को रखकर उनका पूजन किया जाता है ।
भगवान शिव को समर्पित किया जाता है हरेला
परंपरा के अनुसार हरेला 9 दिन पहले 7 या 9 अनाजों को मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रखकर अनाज को बोया जाता है जिसे मंदिर के कक्ष में रखा जाता है तथा दो से तीन दिन में हरेला अंकुरित होने लगता है इसके पश्चात हरेले की विधि विधान से पूजा कर इष्ट देवता और भगवान शिव को समर्पित किया जाता है।
पर्व के दौरान होती है डिकर पूजा
डिकर का मतलब होता है पूजा के लिए बनाई जाने वाली देव मूर्तियां जिनका निर्माण वनस्पतियों से किया जाता है कुमाऊं मंडल में हरेला त्यौहार और सातू आठु जन्माष्टमी पर किया जाता है।
उत्तराखंड की सभी ताजा खबरों के लिए देवभूमि दर्शन के व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़िए।।