मानसी जोशी जिसने पहाड़ी खेतो से क्रिकेट खेलकर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का सफर तय किया
आइए जानते हैं पहाड़ से क्रिकेट विश्व कप तक का सफर तय करने वाली मानसी जोशी की कहानी – उत्तराखण्ड का सुदूरवर्ती जिला है उत्तरकाशी। यहां डुंडा ब्लॉक के गेंवला ब्रह्मखाल गांव मानसी जोशी का मूल जन्म स्थान है। मानसी की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही सुमन ग्रामर स्कूल में हुई। मानसी का बचपन से ही क्रिकेट से बेहद लगाव रहा। मानसी के पिता भूपेन्द्र जोशी होटल व्यवसाय से जुड़े हैं। पिता भूपेन्द्र जोशी बताते हैं कि मानसी गांव के खेतों में बच्चों के साथ क्रिकेट खेला करती थी। कक्षा पांच पास करने के बाद मानसी अपनी आगे की पढ़ाई के लिए मां के साथ रुड़की चली गई। जहाँ उन्होंने दिल्ली रोड पर सरस्वती विद्या मंदिर में प्रवेश लिया। पहाड़ की असुविधाओ से बाहर निकलने के बाद मानसी को एक अच्छा प्लेटफार्म मिला। मानसी ने विद्यालय में होने वाली गोला फेंक, चक्का फेंक समेत खेलों में भी अपना जलवा दिखाया। उन्होंने विद्यालय की टीम से दिल्ली और मुम्बई में खेलते हुए कई मेडल अपने नाम कर लिए थे।
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क्रिकेट को ही चुना अपना कॅरियर – मानसी ने स्पोट्स कॉलेज फरीदाबाद से एमए की शिक्षा ग्रहण की और क्रिकेट की ओर बढ़ती रुचि को देखते हुए मानसी ने क्रिकेट में अपना कॅरिअर बनाने का फैसला लिया। उन्होंने सेंट जोजफ में कार्यरत कोच पीयूष रौतेला से क्रिकेट का प्रशिक्षण लिया। पीयूष रौतेला ने उन्हें क्रिकेट की हर बारीकियों से रूबरू करवाया। मानसी जिस मुकाम पर पहुंची है वह इसका श्रेय हमेशा से अपने कोच रौतेला को देती आयी है।
मानसी जोशी ने उत्तराखंड सरकार की नौकरी ठुकराई- जब मानसी जोशी को उत्तराखण्ड के खेल विभाग से पत्र मिला जिसमे चिह्नित सात विभागों में 4600 व 4800 ग्रेड पे पर ज्वाइनिंग की बात लिखी थी। मानसी को पता था की राज्य में न तो क्रिकेट को मान्यता है और न ही यहां से आगे खेलने के अच्छे मौके मिलेंगे। अपने क्रिकेटर के कॅरियर के चलते मानसी जोशी ने उत्तराखण्ड में सरकारी नौकरी का प्रस्ताव ठुकरा दिया। लेकिन मानसी जोशी ने इसके बदले देहरादून में घर देने की मांग जरूर की थी।