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HEERA SINGH RANA

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उत्तराखण्ड लोकसंगीत

उत्तराखंड संगीत जगत के लिए दुखद खबर, नहीं रहे प्रसिद्ध लोकगायक हीरा सिंह राणा

सुप्रसिद्ध लोकगायक हीरा सिंह राणा ( Heera Singh Rana) अब नहीं रहे हमारे बीच, दिल्ली में हृदय गति रुक जाने से हुआ निधन..

देश की राजधानी दिल्ली से उत्तराखंड के लिए बेहद दुखद खबर आ रही है जहां प्रसिद्ध लोकगायक हीरा सिंह राणा ( Heera Singh Rana) का देर रात ह्रदय गति रूक जाने से निधन हो गया। बता दें कि हीरदा कुमाऊंनी के नाम से मशहूर लोकगायक राणा 77 साल के थे। उनके निधन की खबर से न सिर्फ उनके प्रशंसकों में बल्कि पूरे उत्तराखंड संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ गई। बता दें कि लोकगायक राणा अपने सुप्रसिद्ध गीतों एवं मधुर आवाज से लोगों के दिलों में राज करते थे। महज 15 वर्ष की उम्र से गीत-संगीत की दुनिया से जुड़ जाने वाले हीरा सिंह राणा का पहाड़ की लोक संस्कृति को विश्व सांस्कृतिक मंच पर स्थापित करने में अहम योगदान था। अपने गीतों में संगीत से भेदभाव, राजनीति में उठापटक और वीरान होते पहाड़ के दर्द को उकेरने वाले लोकगायक हीरा सिंह राणा वास्तव में पहाड़ों की लोक आवाज़ थे। उनका चलें जाना उत्तराखण्ड संगीत जगत के लिए एक अपूर्णनीय क्षति है या यूं कहें कि उनके निधन से उत्तराखंड संगीत के एक युग का ही अंत हो गया। लोकगायक राणा वर्तमान में उत्तराखंड भाषा अकादमी दिल्ली के उपाध्यक्ष थे।


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मूल रूप से अल्मोड़ा के रहने वाले थे लोकगायक राणा, वर्तमान में दिल्ली में रहकर आगे ले जा रहे थे पहाड़ी संस्कृति को:-

प्राप्त जानकारी के अनुसार सुप्रसिद्ध लोकगायक हीरा सिंह राणा ( Heera Singh Rana) का बीती रात दिल्ली में निधन हो गया। उन्होंने रात ढाई बजे अंतिम सांस ली। लोकगायक राणा मूल रूप से राज्य के अल्मोड़ा जिले के मानिला के डंढोली गांव में हुआ था। बताते चलें कि रंगीली बिंदी जैसी सुपरहिट एल्बम (कैसेट्स) से लोगों के दिलों में अपनी खास पहचान बनाने वाले हीरा सिंह राणा की प्राथमिक शिक्षा मानिला में ही हुई। जिसके बाद वे नौकरी के लिए दिल्ली चले गए परंतु गीत-संगीत से खासा लगाव होने के कारण नौकरी में उनका मन नहीं लगा। जिसके बाद वह संगीत की स्कालरशिप लेकर कलकत्ता पहुंच गए। कलकत्ता से लौटने के बाद उन्होंने नवयुवक केंद्र ताड़ीखेत 1974, हिमांगन कला संगम दिल्ली 1992, पहले ज्योली बुरुंश (1971) , मानिला डांडी 1985, मनख्यु पड़यौव में 1987 में काम किया साथ ही अपने मधुर गीतों की छः कैसेट्स भी निकाली। उत्तराखंड लोक संगीत को आगे ले जाने में लोकगायक राणा का अमूल्य योगदान था जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।


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लोकगायक हीरा सिंह (Heera Singh Rana)  राणा एक परिचय:-

जन्म:- 16 सितंबर 1942 को अल्मोड़ा जिले के मानिला डंढ़ोली में
माता- स्व• नारंगी देवी
पिता- स्व• मोहन सिंह
प्राथमिक शिक्षा- मानिला
कैसेट्स- रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी’, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला’, ‘आहा रे ज़माना’
सुप्रसिद्ध गीत- रंगीली बिंदी घाघरी काई,’ ‘के संध्या झूली रे,’ ‘आजकल है रे ज्वाना,’ ‘के भलो मान्यो छ हो,’ ‘आ लिली बाकरी लिली,’ ‘मेरी मानिला डानी,’
मंच:- रामलीला, पारंपरिक लोक उत्सव, विवाहिक कार्यक्रम, आकाशवाणी नजीबाबाद, दिल्ली, लखनऊ के साथ ही देश-विदेश के अनैक मंचों पर अपने मधुर गीत सुनाकर उन्होंने पहाड़ी संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया।
“गढ़वाली-कुमाऊँनी-जौनसारी” भाषा अकादमी दिल्ली के पहले उपाध्यक्ष


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Sunil

सुनील चंद्र खर्कवाल पिछले 8 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राजनीति और खेल जगत से जुड़ी रिपोर्टिंग के साथ-साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपराओं पर लेखन करते हैं। उनकी लेखनी में क्षेत्रीय सरोकारों की गूंज और समसामयिक मुद्दों की गहराई देखने को मिलती है, जो पाठकों को विषय से जोड़ती है।

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