champawat: भूखे पेट साइकिल से तय किया 375 किमी का सफर, तीन दिन बाद थाली में देखी रोटी तो नम हो गई सुनील की आंखें..
रोजी-रोटी और सुनहरे भविष्य के सपने लिए उत्तराखण्ड के लाखों लोगों ने देश-विदेश में पलायन किया परंतु लॉकडाउन के इस दौर ने प्रवासियों के सपने को तहस-नहस कर दिया। आलम यह है कि लॉकडाउन में ढील मिलने के बाद अब प्रवासी एक दिन भी परिवार से दूर रहना नहीं चाहते, यही कारण है कि सरकारों की लाख अपीलों के बाद भी प्रवासियों ने घर पहुंचने के लिए हाथ-पांव मारने नहीं छोड़े, कुछ लोग ट्रक में भरकर जल्द से जल्द अपने घर पहुंचना चाहते हैं तो किसी ने अपना सफर पैदल ही शुरू कर दिया। आज हम आपको राज्य के एक ऐसे ही प्रवासी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे अपने परिवार की चिंता ने 375 किमी का सफर बिना कुछ खाए-पिए साइकिल से पूरा करने को मजबूर कर दिया। जी हां.. हम बात कर रहे हैं राज्य के चम्पावत (champawat) जिले के रहने वाले सुनील जोशी की, जिन्होंने आगरा से पहाड़ तक का सफर तीन दिन में साइकिल से पूरा किया, इस दौरान उन्हें दो दिन भूखा भी रहना पड़ा, तीसरे दिन जब शनिवार को घर में पहुंचकर रोटी खाई, तो खाने की थाली देखकर ही सुनील की आंखें नम हो गई।
3000 रूपए में खरीदी सेकेंड हैंड साइकिल, फिर चल पड़ा पहाड़ की ओर:-
प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य के चम्पावत (champawat) जिले के बाजरीकोट निवासी सुनील जोशी गोवा में रहकर अपनी आजिविका चलाते थे और वहीं से कुछ पैसा घर भेजकर अपने परिजनों का पालन-पोषण करते थे। घर पर उनकी पत्नी, दिव्यांग सांस के साथ रहती थी। सुनील का कहना है कि कोरोना के कारण 22 मार्च से काम बंद होने की आंशका के कारण वह 21 मार्च को गोवा से घर के लिए निकल गए, गोवा से कर्नाटक के बेलगांव पहुंचने के बाद उन्होंने 23 मार्च को बेलगांव से 1995 किलोमीटर दूर आगरा तक का सफर उन्होंने यही सोचकर पूरा किया कि लॉकडाउन का यह समय अपने परिजनों के साथ व्यतीत करूंगा। बेलगांव से आगरा तक वो एक क्लर्क में आएं, जिसके लिए उन्हें तीन हजार रुपया किराया भी देना पड़ा। अब वह घर से मात्र 375 किमी दूर थे, तभी देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद उन्हें 25 मार्च से आगरा में ही अपनी बहन के किराए के घर रहना पड़ा। बीते 13 मई को उन्होंने आगरा से पहाड़ के लिए सफर एक सेकंड हेंड साइकिल में शुरू किया, जो उन्होंने हाल में ही घर जाने के लिए खरीदी। बताते चलें कि 13 मई की रात को वह बदायूं के एक मंदिर में रूके जहां उन्होंने बहन के घर से लाया हुआ खाना खाया परंतु 14 मई की रात ऊधमसिंह नगर तथा 15 मई की बस्तियां में बिना खाए-पिए ही गुजारी।