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Jauljibi mela History Hindi ( Image Source: social media)

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उत्तराखंड: जौलजीबी मेले का इतिहास है बेहद पौराणिक जानिए कब और कहां लगता है यह मेला

Jauljibi mela History Pithoragarh: पिथौरागढ़ में लगने वाला जौलजीबी मेला है अपने आप में बेहद खास 

Jauljibi mela History Pithoragarh : उत्तराखंड अपनी धार्मिक और पौराणिक संस्कृति के लिए पूरे देश दुनिया में जाना जाता है। इसके साथ ही यहां पर कुछ विशेष शुभ अवसरों के दौरान प्रसिद्ध मेलों का भव्य आयोजन भी किया जाता जो तमाम देशों के लोगों को अपनी ओर बेहद आकर्षित करता है। ऐसा ही एक विश्व प्रसिद्ध पौराणिक मेला जौलजीबी भी है जो उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जनपद की काली- गोरी नदियों के संगम पर मार्गशीर्ष महीने की संक्रान्ति को आयोजित होता है।
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जौलजीबी मेले का इतिहास:-(History of jauljibi mela)

आपको जानकारी देते चलें इस मेले का इतिहास बेहद पौराणिक है जिसका आगाज 1871 में एक धार्मिक मेले के तौर पर हुआ था ऐसा कहा जाता है कि अस्कोट रियासत के राजा पुष्कर पाल ने 150 वर्ष पूर्व जलेश्वर महादेव के मंदिर की स्थापना की थी और तभी से इस धार्मिक मेले की शुरुआत हुई थी। बता दें कि जौलजीबी का यह पौराणिक ऐतिहासिक मेला उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद की काली और गोरी इन दो नदियों के संगम पर आयोजित होता है।20 वीं सदी की शुरुआत में अस्कोट के राजा गजेंद्र बहादुर पाल ने 1914 में जौलजीबी मेला प्रारंभ किया था। तब यह क्षेत्र अति दुर्गम था और यहां से सामान खरीदने के लिए लोगों को पैदल अल्मोड़ा या टनकपुर जाना पड़ता था जिसके चलते स्थानीय जनता को मेले में एक साथ वर्ष भर के लिए जरूर का सामान आसानी से मिल सके इसके लिए गजेंद्र पाल ने तल्ला – मल्ला अस्कोट के केंद्र बिंदु जौलजीबी मे मेला आयोजित करने का निर्णय लिया था।
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बताया जाता है कि उस दौरान इस मेले के लिए आगरा,मथुरा, बरेली दिल्ली, रामपुर, मेरठ, काशीपुर रामनगर, हल्द्वानी ,अल्मोड़ा, टनकपुर के व्यापारियों को आमंत्रित किया गया और साथ ही मित्र राष्ट्र नेपाल और पड़ोसी देश तिब्बत के व्यापारियों को भी आमंत्रित किया गया नेपाल तिब्बत से भी व्यापारियों और मेलार्थियों के पहुंचने से यह मेला अंतर्राष्ट्रीय स्तर का हो गया और देखते ही देखते यह मेला उत्त्तर भारत के प्रमुख मेले में शामिल हो गया। यह मेला एक माह तक आयोजित होता था। दरअसल 1962 से पहले इस मेले मे तिब्बत के लोग शिरकत करने के लिए पहुंचते थे लेकिन भारत चीन युद्ध के बाद तिब्बती लोगों का यहां आना बंद हो गया और तिब्बत का सामान इस मेले में अब नेपाल के रास्ते आता है जो जौलजीबी मेले के मुख्य आकर्षण में से एक माना जाता है पूर्वकाल मे इस मेले के दौरान नेपाल से आए घोड़ो की भी खूब बिक्री हुआ करती थी।

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