Ghughuti Festival Story Hindi : उत्तरायणी त्यौहार को कुमाऊं में घुघुतिया तो गढ़वाल मे मकरैंण के नाम से जाना जाता है, इस पर्व को मनाया जाता है धूमधाम से, इस बार 14 जनवरी 2025 को मनाया जाएगा घुघुतिया त्यौहार…..
Ghughuti Festival Story Hindi: उत्तराखंड को अपनी लोक संस्कृति रीति रिवाज और तीज त्योहारों के लिए पूरे विश्व भर में जाना जाता है क्योंकि यहां पर लोगों में हर त्यौहार के दौरान एक अलग ही हर्ष व उल्लास देखने को मिलता है जिसे सभी लोग एक साथ मिलकर धूमधाम से मानते हैं। ऐसा ही कुछ अनोखा व विशेष पर्व है उत्तरायणी जिसे मकर संक्रांति भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इस वर्ष मकर संक्रांति आगामी 14 जनवरी को मनाई जाएगी जिसे लेकर सभी लोग तैयारी में जुटे हुए हैं। उत्तराखंड में मकर संक्रांति कि अगर बात करें तो यहां पर कुमाऊं मंडल में मकर संक्रांति को घुघुतिया के तौर पर धूमधाम से मनाया जाता है जबकि गढ़वाल मंडल में इस त्यौहार को मकरैणी के नाम से जाना जाता है। इस दिन कुमाऊं मंडल के लोग घुघुतिया बनाते हैं जबकि गढ़वाल मंडल के लोग पूरी पकौड़ी समेत विशेष पकवान बनाते हैं।
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Ghughutiya Festival Uttarakhand बता दें उत्तरायणी त्योहार के दौरान उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के लोग एक दिन पहले आटे को गुड मिले पानी में गूंथते है तथा उससे देवनागरी लिपि के चार ढाल तलवार और डमरू जैसे कई कलाकृतियों के आकर देकर पकवान बनाते हैं। इसके बाद इन सब को एक संतरे समेत माला मे पिरोया जाता है जिसे पहनकर बच्चे अगले दिन घुघुतिया पर सुबह नहा धोकर कौओ को खाने का न्योता देते हैं। इसके लिए वह विशेष गाने का प्रयोग करते हैं।
काले कौआ काले, घुघुति मावा खा ले! लै कावा भात, मिकैं दिजा सुनौक थात!! लै कावा लगड़, मिकैं दिजा भै-बैणियों दगौड़। लै कावा बौड़, मिकैं दिजा सुनुक घ्वड़
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इसी दिन बागेश्वर में सरयू नदी के तट पर हुआ था कुली बेगार प्रथा का अंत:-
वहीं दूसरी ओर अगर गढ़वाल मंडल की अगर बात करें तो यहां पर मकर संक्रांति के दिन पूरी पकौड़ी समेत खिचड़ी जैसे विशेष पकवान बनाए जाते हैं। मकर संक्रांति को घुघुतिया समेत उत्तरायणी मकरैंण जैसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। आपको जानकारी देते चले कुमाऊं के बागेश्वर जिले में लगने वाले उत्तरायणी मेले को धार्मिक के साथ एक ऐतिहासिक मेला भी माना जाता है क्योंकि इस दिन 14 जनवरी वर्ष 1921 को बागेश्वर के लोगों ने कुली बेगार प्रथा का अंत कर दिया था। दरअसल यह प्रथा ब्रिटिश हुकूमत की ओर से थोपी गई थी। बागेश्वर का उत्तरायणी मेला स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी लोगों में स्वतंत्रता की अलख जगाने का काम करता था। क्योंकि आंदोलन के समय सभी आंदोलनकारी इस मेले के जरिए एक जुट होते थे जिन्होंने 1921 मे बंधुआ मजदूरों के खिलाफ इसी मेले में हुंकार भरी थी।
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वहीं दूसरी ओर उत्तरायणी मेले के बारे में ऐसी पौराणिक कथा प्रचलित है कि चंद राजाओं के समय राजा कल्याण चंद्र के पुत्र निर्भय चन्द का अपहरण राजा के मंत्री ने कर लिया था निर्भय को लाड प्यार से घुघुति कहां जाता था। इसलिए मंत्री ने जहां राजकुमार को छुपाया था उसका भेद एक कौवे ने कांव कांव कर बता दिया था इससे खुश होकर राजा ने कौवे को मीठा खिलाने की परंपरा शुरू की थी। जबकि कई लोगों का मानना है कि एक समय में कुमाऊं के एक राजा को ज्योतिषों ने बताया कि उन पर मारक ग्रह दशा है जिसके लिए उन्हें मकर संक्रांति के दिन बच्चों के हाथ से कौओं को घुघुतो का भोजन कराना होगा जिसके चलते उनका निराकरण हो जाएगा। ऐसा कहां जाता है कि राजा अहिंसा वादी थे इसलिए उन्होंने आटे के प्रतीकात्मक घुघुते तलवार बच्चों के हाथों कौओं को खिलाएं तब से यह परंपरा चली आ रही है।