Uttarakhand Choliya Dance: गणतंत्र दिवस परेड पर उत्तराखंड की झांकी की शोभा बढ़ाएगा छोलिया नृत्य, जानिए इसके बारे में रोचक तथ्य….
गणतंत्र दिवस 2023 के अवसर पर कर्तव्य पथ पर आयोजित होने वाली परेड में उत्तराखण्ड की झांकी काफी खूबसूरत नजर आएंगी। विश्व प्रसिद्ध कार्बेट पार्क में विचरण करते खूबसूरत वन्य जीवों के साथ जहां सुप्रसिद्ध जागेश्वर धाम लोगों में प्राकृतिक रूप से अध्यात्म की अलख जगाने के लिए काफी है वहीं झांकी के साथ पारंपरिक लोक नृत्य छोलिया करते हुए कलाकारों का दल भी झांकी की शोभा बढ़ाएगा। बात छोलिया नृत्य की हो रही है तो चलिए आज आपको कुमाऊं कछ इस पारम्परिक लोक नृत्य की कुछ अनछुए पहलुओं से आपको रूबरू कराते हैं। अपनी नाम के ही अनुरूप पहाड़ का यह लोकनृत्य छल पर आधारित है। अर्थात छोलिया नृत्य के दौरान नर्तकों की भाव-भंगिमा में ‘छल’ दिखाया जाता है। नृत्य करते हुए कलाकार न केवल एक दूसरे को छेड़कर चिढ़ाने और उकसाने की कोशिश करते हैं बल्कि इस दौरान डर और खुशी के हाव भाव भी कलाकारों के चेहरे पर नजर आते हैं। आपको बता दें कि नृत्य देख रही भीड़ द्वारा जब इस दौरान कलाकारों पर रूपए उड़ाए जाते हैं तो इन कलाकारों द्वारा इन्हें सीधे अपनी जेब में नहीं डाल लिया जाता वरन नृत्य करते हुए सामने वाले छोल्यार को उलझाकर नोट को तलवार की नोक से उठाते हैं। यह दृश्य देखने में काफी मनमोहक होता है।
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बात अगर कुमाऊं के इस प्राचीनतम लोक नृत्य छोलिया के इतिहास की करें तो इसकी उत्पत्ति सैकड़ों वर्ष पूर्व की मानी जाती है। यहां तक कि इसे उत्तराखण्ड के सबसे प्राचीन लोकनृत्य होने का गौरव हासिल है। माना जाता है कि यह प्रसिद्ध नृत्य पीढ़ियों से उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान रहा है। हालांकि कुछ लोगों द्वारा इसे युद्ध में जीत के बाद किया जाने वाला नृत्य तो कुछ तलवार की नोक पर शादी करने वाले राजाओं के शासन से इसकी उत्पत्ति मानते हैं। ऐसा भी माना जाता है की छलिया नृत्य की शुरुआत खस राजाओं के समय हुई थी, क्योंकि उसी समय विवाह तलवार की नोक पर होते थे तथा इसके बाद चंद राजाओं के आगमन के बाद यह नृत्य क्षत्रियों की पहचान बन गया। आपको बता दें कि इस नृत्य की सबसे खास बात यह है कि इसमें श्रृंगार और वीर रस एक साथ अंगीकार होते हैं। छोलिया नृत्य में जहां पारम्परिक ढोल दमो काफी अहम भूमिका निभाते हैं वहीं नगाड़ा, मसकबीन, कैंसाल, भंकोरा और रणसिंघा जैसे वाद्य यंत्र इसकी शोभा बढ़ाते हैं। बात छोलिया नृत्य के पहनावे की करें तो पुरुष, चूड़ीदार पैजामा, एक लंबा-सा घेरदार कुर्ता और उसके ऊपर पहनी जाते वाली बेल्ट के अलावा सिर में पगड़ी, कानों में बालियां, पैरों में घुंघरू की पट्टियां और चेहरे पर चंदन और सिंदूर लगाए हुए काफी रंगीन अंदाज में नजर आते हैं।
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बताते चलें कि 22 लोगों की एक छोलिया दल में आठ नर्तक और 14 गाजे-बाजे वाले होते हैं। इस नृत्य की खूबसूरती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पुराने समय की शादियों की छोलिया नृत्य शान हुआ करता था। यही कारण है कि आज भी किसी बरात में छोलिया नृत्य करते हुए नजर आते हैं तो मौके पर देखने वालों की भीड़ उमड़ पड़ती है। इसके साथ ही छोल्यारों द्वारा गाई जाने वाली सुंदर छपेलियां इस नृत्य की शोभा को और भी अधिक बढ़ा देती है। आपको बता दें कि छोलिया नृत्य को आत्मसम्मान, आत्मविश्वास और चपलता का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि तलवार और ढाल के साथ इस नृत्य को युद्ध में जीत के बाद किया जाता था। कुछ लोग इसे पांडव नृत्य का हिस्सा भी मानते है। इतना ही नहीं ढोल दमो के साथ बजने वाले तमाम वाद्य यंत्रों नगाड़ा, मसकबीन, तुरही, रणसिंघा के विषय में भी कहा जाता है कि इन्हें सैनिकों के उत्साह वर्धन के लिए युद्ध के दौरान बजाया जाता था।
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