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Chitra Kandpal Poem
फोटो देवभूमि दर्शन Chitra Kandpal Poem

उत्तराखण्ड

काव्य संकलन

कुमाऊंनी कविता- “उत्तराखंडा देवा भूमी, पैलाग बारम्बारा…” चित्रा काण्डपाल (काव्य संकलन देवभूमि दर्शन)

कुमाऊंनी कविता- उत्तराखंडा देवा भूमी, पैलाग बारम्बारा….Chitra Kandpal Poem

तारनहार गंगज्यू की जै हो, दैना रैया बदरी केदारा;
उत्तराखंडा देवा भूमी, पैलाग बारम्बारा।
एक बारी म्यस करी बेर, नैनीताल बाट लागयूं;
घाम मस्त लागी रौ देशन, वां पड़ी रौ नल ह्यूं ।
कालढूंगी पार करी लागीं, ट्यड़ म्यड़ बाटा;
एक बोर्डम लिखी रौ छी, हिटो माठ़ू मांठा।
मी चकाचौंध भयूं , देखी डानूं की धारा;
उत्तराखंडा देवा भूमी, पैलाग बारम्बारा।
खाहूं -पीहूं चिप्स कोला, गाव में डी एस एल आर;
मैगी खै बेर मौज उड़ाई, चहा पी ली कतु बार।
जां लै भला सीन लागीं, वां फोटो खींची;
कबै होंठ क पाउट बढ़ाया, कबै आंख मींची।
जस्सै मी जांण लागयूं,कैले भेटी नमस्कारा ;
उत्तराखंडा देवा भूमी, पैलाग बारम्बारा।
और सब ठीक है रौ छा, कस चली रौ कारोबार?
कस गेयीं पौ परबा,कस है रौ परिवार?
मी लै कौ सब छू बढ़िया, वां आई रौ भौतै घामा;
ठंडी हवा खाहूं ऐ रैयूं, जूल नैना देवी धामा।
पर तुम माफ करिया हो, को छा मील पछाड़ैं नै;
आवाज़ सुनन लागी रै, इत्ती तो कोई ठाडै नै।
कैं कोई भूत मसाड़ तो नी छू, मन में आयौ विचारा;
उत्तराखंडा देवा भूमी, पैलाग बारम्बारा।
अरे मी बांज क बोट, पहाड़ में रूनूं ;
तुम कसिकै पछाड़ला, मी देशन नी ऊंनू।
तुम्हारा य पन्नी बोतल, यैं छुटी गेईं;
के करूं यनीलै म्यारा भांटा टूटी गेईं।
मी जरा झेपीं गेयूं, पूछौ ठीक नाना-तीना;
उनीलै कयी – ज्यूनै नी रौया नौना हाव बिना।
यौ पौलीथीन हमर दम घोंटी जा छौ;
मी पूछूं परमेश्वरा हमर जाग कां छौ।
मन पट्ट जेटी जै गोय, भरौ भीतर गुबारा, उत्तराखंडा देवा भूमी, पैलाग बारम्बारा।
तबै मील परण करौ, कभैं नी फेंकुल पालीथीन ;
बोट हमार जीवनदाता, उनां बिना हम छियां दीन।
मीलै तब साफ करौ, फैली छी जो कच्यारा;
उत्तराखंडा देवा भूमी, पैलाग बारम्बारा।
यौ बन, गाण, गध्यारा, हमार असल शाना;
इनैं के शुद्ध धरुंल, खुश हौल पराना।
इनरी मुस्कान लै बहूं , विकास की सच्ची बयारा;
उत्तराखंडा देवा भूमी, पैलाग बारम्बारा।
रचना- चित्रा काण्डपाल, ग्राम व पोस्ट – हरिपुरा हरसन, बाजपुर, पिन कोड – 262401, जिला- उधमसिंह नगर (उत्तराखण्ड)
Chitra Kandpal Poem

यह भी पढ़ें- कुमाऊंनी कविता- “मैं पहाड़ क टीस कसिक लेखू…” राजेन्द्र सिंह बिष्ट (काव्य संकलन देवभूमि दर्शन)

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