Connect with us
Shubbi Bhole Bhandari poem
फोटो देवभूमि दर्शन Shubbi Bhole Bhandari poem

उत्तराखण्ड

गढ़वाली कविता- “भूली बिसरी गयी…” शुब्बी भोले भण्डारी (बाडुली) (काव्य संकलन देवभूमि दर्शन)

गढ़वाली कविता- भूली बिसरी गयी…Shubbi Bhole Bhandari poem

भूली बिसरी गयी अपर बार त्यौहार ना पंचमी याद आंदि
ना मकरेणि गंगा स्नान कु जांदी ।
ना बग्वाली का भेला याद छंन ना तांदी झुमेलों ।
ना अब गुलाबन्द ना आपरी थौल मेलु की याद गौला की हंसुली ना हातियों की धगुली ।
ना याद चा शिव कु मैती रोण कु
ना याद चा नन्दा की धियाण होण कु
ना याद चा चैत का फुलारी कु
ना याद चा ब्यो मा की मांगली कु।
ना अब गौं मा रामलीला होंदी
ना अब पण्डों का पवाडा लग्दिन।
ना नरसिंग अब दोष लगदु
ना नगर्जा अब गौं मा नाचदु।।
ना माधो भण्डारी अब बीर भड़ रे
ना जीतू बगड़वाल अब बाँसुरिया रे
ना घसेरी अब गीतु भौंण पुरेन्दिन
ना घुघुती हिलांश डालियों बासदन
ना तीलू रौतेली जणि क्वी बाला ह्वे
ना रामी जणि क्वी नारी ह्वे
५२ गढ़ भी अब सुनपट विरान छंन
घौर कुड़ियों मा मूसा बिराला भी नि छंन
ना ग्वेरु कु बाँसुरी सुणेन्दी ना हल्या कु हलकरु भी नि चित्यदु
ना दे-दादी की कथा-कहानी रे
ना बाटा-घाटा भुत भेरू रें।।
ना औजी अब बारू त्यौहारु पर ढोल बजोंदीन
ना क्वी अब दाना-स्याणों मुख लगोंदीन ।।
ना गढ़वाली भाषा बोली समझ औंदी ।।
ना हम तें अब गौं मुल्के सुध-बुध रौंदी।।
अरे औंदी किले नि याद पर बस ग तब याद औंदी गौं की जब केमु कुछ गौं बाटिन कुछ मंगोंण हो ।।
या पलायन पर जब दिल्ली , मुम्बई , देहरादून मा गोष्ठि करोंण हों।।
अरे ना रे ना पंजाबी त हम तब ही बणि छा जब पंजाबी हमारा उत्तराखंड मा बसी छा।
अब नेपाली बिहारी बसणा छं तें रंग भी रंगी ल्योला।।
कुछ नि धरयु ये गौं पहाड़ मा हम भी भेर बसी जौला।।
बाकि हमुन अपर बार त्यौहार भूले की पंजाबी त्योहार अपणेलिन ।।
करवाचौथ त गौं गौं मा आयी गी छठ पूजा अभी बाकी च ।।
पंजाबन बणि बिहारन बण बाकी च।।
क्या च ये पहाड़ मा तन भी रूखा सूखा डॉण्डा कांठा।।
जौंन तेरा ब्वे बूब्बा दे-दादा पेट नि भोरी तेरु क्या भन।।
जु डाँडा अफु तें नि आपदा सी बचे सकणा तवे क्या बचोला।।
कर ली ब्बा पलायन जतग्य कर सकदी । एक दिन त्वे वापस औंण पडलु ।।
ब्वे सी दिन भर कतगा दूर रौ ब्याखनी घौर बोड़ण पडलु।।
नरसिंग भी दोष देलु नगर्जा(नागराजा) भी नाचलु ।।
पण्डों का पवाडा भी लगला
रामलीला भी होली।।
बस तब्दील कुछ इनी रोली तू पहाड़ मा रोण पर ब्वे-बूबा छे कोसणु ।।
तेरा नाती नातेंणा इतिहास पौढ़ी त्वे निर्भगी रे रोंला।।
त्वे निर्भगी तें रोंला।।
वक़्त त च अभी भी संभल जा
सुबेरियों भुलयूँ छे राती सी पैली बोडी जा ।
तेरी माँ तेरी जग्वाल कनि रे लाटा लाटी अभी अंधेरु नि ह्वे संक्वाली बौडी जा ।
संक्वाली घौर बौडी जा।।।
रचना- शुब्बी भोले भण्डारी (बाडुली), रिगोली तल्ली,लोस्तु बडियारगढ़, जिला- टिहरी गढ़वाल (उत्तराखण्ड)
Shubbi Bhole Bhandari poem

यह भी पढ़ें- कुमाऊंनी कविता- “हाय य असोज…” खुशी भाकुनी (काव्य संकलन देवभूमि दर्शन)

उत्तराखंड की सभी ताजा खबरों के लिए देवभूमि दर्शन के WHATSAPP GROUP से जुडिए।

👉👉TWITTER पर जुडिए।

More in उत्तराखण्ड

To Top
हिमाचल में दो सगे नेगी भाइयो ने एक ही लड़की से रचाई शादी -Himachal marriage viral पहाड़ी ककड़ी खाने के 7 जबरदस्त फायदे!