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अल्मोड़ा: बग्वालीपोखर की कविता कैड़ा का ऐपण हुनर देखिए बनाती हैं एक से एक खूबसूरत उत्पाद…
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Kavita Kaira bagwalipokhar binta almora aipan art : नोएडा में रहकर पहाड़ की विलुप्तप्राय लोककला ऐपण का प्रचार-प्रसार कर रही है अल्मोड़ा की कविता…
Kavita Kaira bagwalipokhar binta almora aipan art: विलुप्तप्राय हो चुकी पहाड़ की प्राचीनतम लोककला ऐपण को आज उत्तराखंड के युवा स्वरोजगार का माध्यम बनाकर न पुनजीर्वित करने का प्रयास कर रहे हैं बल्कि अपनी आर्थिकी भी मजबूत कर रहे हैं। पहाड़ के ऐसे युवाओं से हम आपको अक्सर रूबरू कराते रहते हैं परंतु आज हम आपको पहाड़ की जिस बेटी से रूबरू कराने जा रहे हैं ऐपण कला ने उनके जीवन को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। यहां तक की उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को भी बेहतर करने में लोककला ऐपण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
दरअसल यह कहानी है मूल रूप से राज्य के अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट विकासखण्ड के बिंता बग्वालीपोखर गांव की रहने वाली कविता अरविंद कैड़ा की, जिन्होंने गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य बिगड़ने पर न केवल ऐपण कला के माध्यम से खुद को एकाग्रचित्त किया, बल्कि ऐपण बनाने से उनका स्वास्थ्य भी दिन प्रतिदिन बेहतर होने लगा। यही कारण है कि कविता आज भी नोएडा में रहकर ऐपणकला का प्रचार-प्रसार कर रही है ।
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देवभूमि दर्शन से खास बातचीत:-
देवभूमि दर्शन से खास बातचीत में कविता अरविंद कैड़ा ने बताया कि उन्होंने ऐपणकला अपने घर से ही सीखी। शुरुआत में वे अपने घर की देहरी, मंदिर, चौकी आदि में ऐपण उकेरने में परिजनों का हाथ बंटाती थी। जिसके बाद धीरे-धीरे वह इसमें परिपक्व हो गई। इस संबंध में विस्तार से जानकारी देते हुए कविता बताती है कि शादी के बाद जब वो नोएडा चली गई तो गर्भावस्था के दौरान उनका स्वास्थ्य बेहद खराब रहने लगा, जिससे वे बहुत परेशान रहती थी और किसी काम में भी मन नहीं लगता था। तब उन्हें एकाएक रूचिकर ऐपणकला का ख्याल आया, जिसको बनाने में वो इधर उधर की सारी बातें भूलकर पूरी तरह मगन हो जाती थी।

जिसके पश्चात उन्होंने घर पर ऐपण का कार्य करना शुरू कर दिया। इससे उनका मस्तिष्क भी व्यस्त रहने लगा और समय का सदुपयोग भी हुआ। इसके साथ ही उनके जीवन में आश्चर्यजनक बदलाव भी देखने को मिले। उनकी तबीयत में लगातार सुधार होने लगा। यही कारण है कि अपने जीवन में आए इन आश्चर्यजनक बदलावों को देखकर वे आज भी कहती हैं कि, “कला एक ऐसा माध्यम है जिससे हम अपने मन को एकाग्र तो करते ही है साथ ही शारीरिक व मानसिक रूप से भी स्वस्थ्य रहते है और यह हमें हर दिन नयी ऊर्जा भी प्रदान करता है।”
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कविता अपने सोशल मीडिया पेज “मेरे हिस्से का पहाड़ ” के जरिए लोगों तक पहुंचाती है अपनी आकर्षक ऐपणकला….
समय का सदुपयोग करते हुए उन्होंने अपने गर्भावस्था के दौरान ही अलग-अलग ऐपण डिजाइन से निर्मित कुशन कवर, कलश, थाल, फोटो फेम, ओम, गणेश चोकी, आदि चीजे बनाई। उनकी कार्यकुशलता एवं सुन्दर ऐपणकला को देखकर उन्हें अन्य जगहों से भी ऐपण निर्मित इन उत्पादों के आर्डर मिलने लगे। कविता बताती है कि उनकी इस मुहिम में सोशल मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान रहा। जिसके लिए उन्होंने सोशल मीडिया पर अपना एक पेज “मेरे हिस्से का पहाड़ ” बनाया। जिसके द्वारा अपने इन सुंदर ऐपण उत्पादों को लोगों तक पहुंचाना बेहद आसान हो गया और इसी के जरिए उन्हें देश-विदेश में रहने वाले लोगों के नए नए आर्डर भी मिलने लगे।

यही कारण है कि डिलीवरी के बाद भी वह नोएडा में रहकर आज भी अपने पहाड़ की इस विलुप्तप्राय लोक कला के प्रचार-प्रसार हेतु प्रयासरत हैं। वर्तमान में उनका बच्चा महज 5 माह का है, परंतु फिर भी वह अपनी इस रूचिकर ऐपणकला के लिए समय निकाल ही लेती है। जो कि वाकई बेहद काबिले-तारीफ है। कविता कहती हैं कि उन्हें अपने इस पहाड़ी कार्य को करने मे बेहद खुशी मिलती है और अपने पहाडी होने पर गर्व है।
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