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उत्तराखण्ड: स्कूली बच्चों को पोषण के नाम पर जहर पिलाया जा रहा 5 साल पुराना Expiry दूध
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uttarakhand School children are being fed 5-year-old expired milk Mid Day Meal PM Poshan Yojana Pithoragarh news today पिथौरागढ़ के स्कूलों में बच्चों की सेहत से खिलवाड़! मिड-डे-मील के तहत भेजा गया पांच साल पुराना एक्सपायरी दूध….
uttarakhand School children are being fed 5-year-old expired milk Mid Day Meal PM Poshan Yojana Pithoragarh news today: उत्तराखण्ड के सीमांत जिले पिथौरागढ़ से एक बेहद सनसनीखेज एवं हैरतअंगेज खबर सामने आ रही है जहां सरकारी स्कूलों में बच्चों की सेहत के साथ हैरान करने वाली लापरवाही बरती जा रही है। बताया गया है कि प्राइमरी स्कूल और जूनियर हाईस्कूल में मिड-डे-मील योजना के तहत स्कूली बच्चों को पिलाने के लिए जो दूध भेजा गया, वह पांच साल पुराना और एक्सपायरी निकला।। जब शिक्षकों ने पैकेट पर छपी तिथियां देखीं तो पूरा मामला सामने आया।
जांच में पता चला कि दूध के पैकेटों पर उत्पादन तिथि और उपयोग की अंतिम तिथि (expiry date) दोनों में बड़ा विरोधाभास है। उपयोग की अंतिम तिथि 21 मार्च 2020 जबकि उत्पादन तिथि 24 सितंबर 2020 लिखी गई है। यानी जिस दूध की एक्सपायरी पहले ही खत्म हो चुकी थी, उसका उत्पादन महीनों बाद दिखाया गया है। इस गंभीर त्रुटि ने पूरे सिस्टम की लापरवाही को उजागर कर दिया है।
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मिड-डे-मील के नाम पर बड़ी लापरवाही
आपको बता दें कि राज्य सरकार की मीड-डे-मील और पीएम पोषण योजना के तहत प्राथमिक से लेकर जूनियर हाईस्कूलों तक के विद्यार्थियों को सप्ताह में दो दिन दूध दिया जाता है। इसके लिए फोर्टिफाइड दूध पाउडर के पैकेट स्कूलों तक पहुंचाए जाते हैं, जिन्हें गर्म पानी में घोलकर बच्चों को पिलाया जाता है। बताते चलें कि पिथौरागढ़ जिले के करीब 12 हजार से अधिक विद्यार्थी इस योजना के तहत लाभान्वित होते हैं। लेकिन इस बार जब दूध की नई खेप पहुंची तो अधिकांश स्कूलों में एक्सपायरी दूध मिला।
कुछ शिक्षकों ने दूध के पैकेट की तारीखें जांचीं तो वे दंग रह गए। उन्होंने तुरंत दूध को बच्चों को देने से रोक दिया और अधिकारियों को मामले की सूचना दी। शिक्षकों का कहना है कि यदि दूध वितरण से पहले यह जांच नहीं की जाती, तो इसका सीधा असर बच्चों की सेहत पर पड़ सकता था।
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अभिभावकों में आक्रोश – “बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं”
मामले के बाद अभिभावकों में भारी आक्रोश है। उनका कहना है कि यह लापरवाही सीधे तौर पर बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ है। ग्रामीण इलाकों में अभिभावक अपने बच्चों को स्कूलों में इस भरोसे भेजते हैं कि उन्हें पौष्टिक भोजन मिलेगा, लेकिन यहां तो बच्चों को बीमार करने वाला दूध भेज दिया गया। उन्होंने एक सुर में कहा कि बच्चों की जिंदगी से किसी भी तरह का खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जा जाएगा। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर इतनी बड़ी गड़बड़ी के बावजूद दूध की सप्लाई कैसे पास कर दी गई और किस स्तर पर जांच की जिम्मेदारी निभाई जा रही है?
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कंपनी ने दी सफाई – “प्रिंटिंग की गलती”
मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए जिला शिक्षा अधिकारी (बेसिक) तरुण कुमार पंत ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि दूध आपूर्ति करने वाली कंपनी से वार्ता की गई है। कंपनी ने इसे प्रिंटिंग मिस्टेक बताया है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों की सेहत के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। पंत ने कहा कि पूरे मामले की जांच के लिए उच्चाधिकारियों को रिपोर्ट भेजी गई है, ताकि दोषियों की जिम्मेदारी तय की जा सके।
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खाद्य सुरक्षा विभाग करेगा दूध की जांच
मामले की गंभीरता को देखते हुए खाद्य सुरक्षा विभाग ने भी स्वत: संज्ञान लिया है। इस संबंध में सहायक आयुक्त (खाद्य सुरक्षा) डॉ. आर.के. शर्मा ने मीडिया से बातचीत में बताया कि वर्तमान में दीपावली अवकाश के कारण स्कूल बंद हैं, लेकिन विद्यालय खुलते ही दूध के सैंपल लेकर लैब जांच कराई जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक जांच रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक विद्यार्थियों को यह दूध नहीं दिया जाएगा।
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प्रिंटिंग गलती या सिस्टम की पोल खुली?
अब सवाल यह उठ रहा है कि यदि यह वास्तव में सिर्फ “प्रिंटिंग गलती” थी, तो क्वालिटी कंट्रोल जैसी अहम प्रक्रिया कहां गई? दूध जैसे संवेदनशील खाद्य पदार्थ की आपूर्ति से पहले कई स्तरों पर जांच होती है, फिर भी पांच साल पुरानी एक्सपायरी तिथि वाला पैकेट स्कूलों तक कैसे पहुंच गया — इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
कुल मिलाकर यह मामला सिर्फ एक “प्रिटिंग मिस्टेक ” तक सीमित नहीं है, बल्कि सरकारी योजनाओं की निगरानी और जवाबदेही पर भी गहरे सवाल उठा रहा है। सीमांत इलाकों के स्कूल पहले से संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। अब जब बच्चों के पोषण से जुड़ी योजनाओं में भी इस तरह की लापरवाही सामने आ रही है, तो इसने शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर गहरा धब्बा लगाया है। यह मामला साफ तौर पर बताता है कि सरकारी योजनाओं की जमीनी निगरानी कितनी कमजोर हो चुकी है। अब देखना यह होगा कि जांच के नाम पर यह मामला दबा दिया जाएगा या वास्तव में किसी की जवाबदेही तय की जाएगी।
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