Purnagiri Temple History Hindi: पूर्णागिरि मंदिर है मां सती का वह धाम जहां माता सती की गिरी नाभि
Purnagiri Temple History Hindi: उत्तराखंड में अनेक धार्मिक व पौराणिक स्थल मौजूद है जिन स्थलों पर हर वर्ष लाखों श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है और इतना ही नहीं यहाँ पर बहुत सारे मन्दिर देवी माँ को समर्पित है जिन मंदिरों में अक्सर श्रद्धालु माता के दर्शन करने देश-विदेश से आते हैं। आपको बता दे ऐसा ही एक पौराणिक मंदिर उत्तराखंड राज्य के चंपावत जनपद मे स्थित माँ पूर्णागिरि का मन्दिर है जो अन्नपूर्णा शिखर पर 5,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और इस मन्दिर की दूरी टनकपुर से लगभग 21km है। आपको यह भी बताते चले की माता पूर्णागिरी का मंदिर देवी भगवती के 108 शक्तिपीठों में से एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है जिसका पूर्ण वर्णन स्कंदपुराण में भी किया गया है। दरअसल इस मन्दिर की यह खासियत है की यह मंदिर भी मां दुर्गा को समर्पित प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।
यह भी पढ़ें- Surkanda Devi Story Hindi: उत्तराखंड में माता सती का नाम कैसे पड़ा सुरकंडा देवी?
पूर्णागिरि मंदिर की पौराणिक कहानी (Purnagiri Temple story):
प्रत्येक मंदिर का अपना एक इतिहास होता है और इतिहास के साथ उस मंदिर के विशेष रहस्य भी जुड़े होते हैं। ऐसा ही एक रहस्य और इतिहास चंपावत जिले मे स्थित पूर्णागिरि मन्दिर का है जिसके बारे मे आज हम बात करने वाले है । तो चलिए आपको बताते है इस मन्दिर से जुड़े इतिहास के बारे में ऐसा कहा जाता है कि राजा दक्ष ने सभी देवों के लिए यज्ञ रखवाया था लेकिन उस यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया और इस बात से माता सती को बहुत अपमानित होना महसूस हुआ और इतना ही नही माता सती के भीतर क्रोध भी उत्पन्न हुआ जिससे उन्होंने अपने प्राणों की आहुति अग्नि कुंड में झोंक दी। जब यह सूचना भगवान शिव को प्राप्त हुई तो वह अपनी पत्नी के शव को उठाकर हिमालय की ओर अग्रसर होने लगे और मां सती के वियोग के कारण उत्पात मचाने लगे यह देखकर सभी देवता भयभीत हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। आपको बताते तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र का प्रयोग कर माता सती के मृत शरीर के 52 टुकड़े किए जो अलग-अलग स्थान पर गिरे ऐसा कहा जाता है की इस स्थान पर माता पर माता सती की नाभि का भाग अन्नपूर्णा की श्रृंखला पर गिरा जिसके पश्चात इस मंदिर का नाम पूर्णागिरि पड़ा।
यह भी पढ़ें- Dhari Devi Story Hindi: मां धारी देवी दिन में बदलती हैं तीन बार अपना रूप….
इतना ही नहीं पूर्णागिरी मंदिर विशेष चमत्कारों के लिए भी जाना जाता है ,ऐसा माना जाता है की 1632 मे गुजरात के एक व्यापारी चन्द्र तिवारी ने चम्पावत के राजा ज्ञानचंद के यहां शरण ली थी इसके पश्चात उनके स्वप्न में मां पूर्णागिरि ने अपने दर्शन दिये थे और अपने मंदिर का निर्माण करने के लिए बोला था। आपको बता दे तब से लेकर आज तक मन्दिर में जोरों शोरों से पूजा करने का व्यवधान चल रहा है और ऐसा कहा जाता है की जो भी भक्त माता की सच्चे दिल से पूजा करता है माँ पूर्णागिरि उन भक्तों की मनोकामना अवश्य पूर्ण करती है।