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Rajendra singh Bisht poem
फोटो देवभूमि दर्शन Rajendra singh Bisht poem

उत्तराखण्ड

काव्य संकलन

कुमाऊंनी कविता- “मैं पहाड़ क टीस कसिक लेखू…” राजेन्द्र सिंह बिष्ट (काव्य संकलन देवभूमि दर्शन)

कुमाऊंनी कविता- मैं पहाड़ क टीस कसिक लेखू…Rajendra singh Bisht poem

मैं पहाड़ क टीस कसिक लेखू
मैं आपन मनेकि रीस कसिक लेखू
नानछन मैं वन वोट देख बेर झसकि जाछि
अब उन डाव वोटक नाम नि रेगे।
मैं उन नानु क शिक्षा क बात कसिक करु
जू के कामेकि नि रेगे
ऊधरन पड़ रयी पहाड़ ले और पहाड़ क आदिम ले
कै आदिम क भीतर कै प्यारे नि रेगे
म्यार द्यापत म्यार ईष्ट हिरे जस गई
पैलि वाई शक्ति भक्ति नि रेगे
उ लम्बी बाखई उ उच्ची धार में क्वे नि यौन अब
गौरू बाछ क नाम नि रेगे
उ बाजक पानिक रूख ले सुखी गौ बल
यानि की नौई पानिक‌ धार ले‌ सुखि‌ लौ बल
कैके मन में त्यार नि रेगे
काफल किरमड़ च्यूर सरकार खै गे
नानूक बचपन उज्याड़ खै गे
पहाड़ क पानि पहाड़ क जवानि
बर्बादे भै यश साप जानि कै खैगे
आम बूबू क प्यार घुघुतिक त्यार
जानि कति ढुंग में रेगे
उ धाद दिनि ढुंग कैलि फोड़ दे बल
ऊ आमक ढाव टुटिगो बल
मेरि दैवि मैय्या रोज सपन में‌ दिखें बल
ईष्ट आफु हुनि पूजारि हेरनी बल
गौ में नौई रोड ए रे बल
रोजगार लिजी चेलि शहर जै रि बल
अब काकुनि कै बानर खानि बल
अब तौड़, गेठि क खेत बजर पडि रो बल
पिनाऊक गुटक लिंगुड़क साग
सौव क गुद मालुक टाट क्वे नि खान बल
बजार बटी सेरेलैक्स आ रो बल
आब फैशनक टैम चलि रो बल
मडूव पौखीन त आफि पोखीन
लाल धान ले खतम है रो बल
मलसारिक खेत बजरे छन ईजा
बल्दों व्यापारी काव लि जै रो बल
कसिक के द्यौ म्यर पहाड़ नि रड़ि रौ
मल बाखई गुसै ले भाबर कै जै रो बल
बाकर क पाठ सो पीस के लै हगौ में
कतु दिनों बे बाग पड़ी रो बल
सरकारे ली पर्यटन गौ घोषित कर दिन छ म्यर गौ
कभै आपन घर होम स्टे में जान छ बल
उदेख किले नि लागल हमर गौ में
सिनक क साग काकुनि रव्ट हिरे रौ
आदक चहा मिसरिक क डाब हिरे गौ
कुहेड़िक तेल ठैकिक छा बिले गै
घिनौड़िक क चे चे पानिक छै छै
बाकरेकि मैं मै नानुकि कै कै
सब हिरे रौ म्यर गौ पना
होलिक गीत नानछनाक मीत
गिदारोक गीत पहाड़ोक रीत
कि रे रौ अब म्यर पहाड़ पना
उन डान उधर रई कुड़ बाढ़
क्वे घस्यारी पानि नि मांगन
क्वै चुलक आग नि मांगन
क्वै कैथे बाट नि मांगन
क्वै कैथे हाथ नि मांगन
जानि कि हिरै रौ जानि कै बिति गौ
एकै चीज रेगे पहाड़न में
गरीबक दुख नि जै रौ
क्वे घर बे भुख नि जै रौ
क्वै केके मुख नि जै रौ
फिर लै आस बचि रे बल पहाड़ो में
माल डानो में बरफ पडै़ बल
मध्वै चेलि स्कूल पढै़ बल
खर्क सारन दाद भाय औनि बल
गौरू भैंस दुधारू छे बल
ब्या काजों में रंग लागौ बल
परदेश गया च्याल घर औनि बल
भाबर पना प्लाट हेरनी बल
घटक पानि ए नै सुखि रौ बल
द्यौ दयाप्त खुशि है रि बल
एलौं साल भल द्यो है रो बल
अघिल साल जग्य ह्वल बल
चेलि बेटि खुशि छन बल
लौड मौड काम करनी बल
तीन च्याल फौजि बनि री बल
मल स्कूल बन्द है गौ बल
गौरू भैंस बहि जानि बल
यसे छन पहाड़
यसे पहाड़क पहाड़ जस दुख छ
कदिय लाग्याक खुट छे
कांढ़ा बूढ़ियाक हाथ में
हावालि फाट्याक लाल मुख
कामेलि फाट्याक लुकुड़
नानतिनाक फाढ़ायाक खतड़ि
आसमानुक फाढ़ायाक ठण्ठ
गरम काप्ड़ नि जानन मैं
मेरि किस्मत में जाड़ छू
तभै त मि पहाड़ छू
नै क्वै सुननि छ
नै क्वै सुनोनिय छ
म्यर जीवन ले पहाड़ छ
मेरी धाद त म्यर द्याप्त नि सुनन
तुम कै सुनला
पैस वाव शहर वाव कार वाव
नौकरि वाव प्लाट वाव
सरकार वाव विदेश वाव
मैके तुमर इन्तजार छू
किलै कै मैं पहाड़ छू
गरम दिनों ए जाया घुमन हुन के
अच्यालों या जाड़ छू
मैं ता नि आ सेकनू
मैं तुमरे पहाड़ छू
मैं उसे छू जस तुम छोड़ी गौछा
मैं तुमरे रंगिल पहाड़ छू
यौ गरीब म्यर भीतर कुकैल लगा द्यौ
यौ पहाड़क किड़िक ब्वज दबै द्यौ
यौ अमीरीक टैम म्यर मजैक बनूछ
यौ नानतिनाक काम म्यर कलैजि खै द्यौ
यौ लकाड़ाक ब्वज म्यर कमर तौड़ौ
यौ किसमतक खैल म्यर ख्वर फौड़ौ
इन नगाड़ नान ने देखीन मैथै अब
इन बंजर पड़ी खेत मेरि झिकुड़ि खैछ
इन कामदार सैनि कि साप लागि गौछ
तभै त मैं बिछड़नौ छौ
तभै त मैं उजड़नौ छौ
तभै त मैं निमड़नौ छौ
तभै त मैं उधरनौ छौ
मैं डाम भितेर डुबि जौल
मैं विकास लिबेर टुटि जौल
मैं किताब लिबेर छूटि जौल
मैं हिसाब लिबेर मिटि जौल
मैं तुमु लिबेर जीती जौल
मैं सबु लिबेर हिटि जौल
याद धरिया मैं के
पहाड़ छू मैं
रचना- राजेन्द्र सिंह बिष्ट, गौलापार, हल्द्वानी, जिला- नैनीताल (उत्तराखण्ड)
Rajendra singh Bisht poem

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