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उत्तराखण्ड बुलेटिन

उत्तराखण्ड की शैर पर आये कुमार विश्वास पहाड़ की हसीन वादियों और पहाड़ी व्यंजन के हुए कायल

फोटो वाया -इंस्ट्राग्राम




उत्तराखंड की हसीन वादियों और यहाँ के पहाड़ी व्यंजनों का कायल कोन नहीं हुआ ,भला कविता और शायरिओ के सम्राट कुमार विश्वास कैसे बच पाते। अभी कुमार विश्वास कुमाऊ मंडल की शैर करने आये हुए थे, जहाँ उन्होंने उत्तराखण्ड की पहाड़ियों का ही लुफ्त नहीं उठाया बल्कि यहाँ के पहाड़ी व्यंजन का भी भरपूर लुफ्त उठया और इनकी फोटो अपने प्रशंषको के लिए इंस्ट्राग्राम अकॉउंट पर शेयर की हुई है।

पर्वत पत्र-८ मुझे वे लोग सचमुच उपक्रम-हीन आत्ममुग्धता के शिकार लगते हैं जो पहाड़ पर जाकर भी खाने में दाल मक्खनी और मसाला-डोसा जैसी मुँहलगी भोज्य-व्यवस्था की माँग करते हैं ! अरे भई ये तो आपको न चाहते हुए भी मैदानी इलाक़ों में रोज़ ही खाना है तो फिर ज़रा लज़ीज़ व पौष्टिक गढ़वाली/कुमाँऊनी खाना खाकर, क्यूँ नहीं अपने संस्मरण-संसार को सुस्वादु बना लेते ! 😳 ख़ैर हमारे जबर अतिथि-सेवी महाराज/ख़ानसामा/कुक/शैफ, श्रीमान जीतबहादुर जी ने आज हमें शुद्ध पहाड़ी व्यंजन परोसे हैं ! उड़द की दाल से बनाकर सुर्ख़ पहाड़ी धूप में सुखाई बड़ियों की आलूमिश्रित सब्ज़ी है, “गहत” की दाल है जिसके बारे में लोकश्रुति है कि अंग्रेज़ बहादुर इस दाल के पानी का प्रयोग पहाड़ में दरार डालने के लिए किया करते थे ! चौलाई की भुर्जी है जो पीठ-दर्द का अचूक इलाज है ! जिन्हें प्रकृति के सुकुमार कवि अग्रज सुमित्रानंदन पंत ने बचपन में अपने आँगन में बोया था उन्हीं पहाड़ी सेम की फलियाँ हैं ! धनिए की चटनी है ! यानि पुण्यफल से प्राप्त संपूर्ण प्रभुप्रसाद है ! आइए जीमिए साथ ! ❤🍲🍛🍵🍴🥣🍽

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क्या कहते है कुमार विश्वास बुरांश के फूल के बारे में

पर्वत-पत्र- (१) 🌄 इनसे मिलिए ! ये है, शंकर-प्रिय गुड़हल के पर्वतवासी अग्रज “बुराँस” ! प्रस्फुटन की ऊँचाई पर है इसीलिए कला के आदिदेव महादेव को अधिक प्रिय है ! पीड़ाहर हर-शंकर की कृपा से, ये जोड़ो के दर्द की अचूक दवा का रूप होकर, चिकित्सा-शास्त्र में Rhododendron नाम से भी आदर पाते है ! आज पर्वतों के रास्ते ऊर्ध्व की यात्रा में इनके दर्शन हुए तो प्रणाम हुआ ! सोचा आप सब से भी, वनराजि के इस नवल-नरेश का परिचय कराता चलूँ ! ❤🙏🇮🇳

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क्या अंतर है पहाड़ और मैदानी बकरियों में बतायंगे कुमार विश्वास

पर्वत पत्र-४ पहाड़ी बकरी में समतलों की बकरियों जैसा दैन्य-कातर भाव नहीं होता ! मुफ़ीद खाद्य की खोज में पहाड़ों की फुनगी तक की लगातार शोध-यात्राओं और इस पत्थरीली राह में बिडाल-वंशी गुलदार जैसे ख़तरों को जमकर छकाते रहने से इनमें एक अनोखा आत्मविश्वास पैदा हो जाता है ! अब इन्हें ही देखिए, राह के किसी धूसर मोड़ पर चाय पीते मुझ जैसे शालीन पर्वत-प्रेमी के हाथ से कैसे बलात बिस्कुट का महसूल वसूल रही हैं ! 😳😜

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नेटवर्क की तलाश पहाड़ के चीड़ और देवदार के जंगलो में

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