OM parvat uttarakhand: उत्तराखण्ड में विराजमान अद्भुत पर्वत प्राकृतिक रूप से बनता है ॐ
कैलाश मानसरोवर के बाद है सबसे पवित्र एवं धार्मिक स्थल
पश्चिम नेपाल के दरचुला जिले तथा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के मध्य स्थित ॐ पर्वत को आदि कैलाश, छोटा कैलाश, बाबा कैलाश और जोंगलिंगकोंग आदि नामों से भी जाना जाता है। इस पर्वत पर ॐ भारत की ओर दिखाई देता है, जबकि इसका पृष्ठ भाग नेपाल की ओर पड़ता है। इस पर्वत में ॐ के दर्शन कैलाश मानसरोवर यात्री लिपुलेख दर्रे के शिविर से कर सकते हैं। सूर्य की पहली किरणें जब कैलाश पर्वत पर पड़ती हैं, तो यह पूर्ण रूप से सुनहरा हो जाता है। इतना ही नहीं, कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान आपको पर्वत पर बर्फ़ से बने साक्षात स्वर्णिम ‘ॐ’ के दर्शन हो जाते हैं। कई यात्री ॐ पर्वत के दर्शन के लिए नाभिधांग कैंप के रास्ते से जाते हैं। जहां हिन्दु धर्म में ॐपर्वत यात्रा को कैलाश मानसरोवर यात्रा के बाद सबसे प्रमुख व पवित्र यात्रा माना गया है, वहीं बोद्ध धर्म एवं जैन धर्म में भी इसे विशेष धार्मिक महत्व का स्थान माना गया है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा में हर कदम बढ़ाने पर दिव्यता का अहसास होता है। ऐसा लगता है मानो एक अलग ही दुनिया में आ गए हों। मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति मानसरोवर (झील) की धरती को छू लेता है, वह ब्रह्मा के बनाये स्वर्ग में पहुंच जाता है और जो व्यक्ति झील का पानी पी लेता है, उसे भगवान शिव के बनाये स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है।
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ॐपर्वत को छोटा कैलाश तो इसके समीपवर्ती पार्वती सरोवर को मानसरोवर झील के समतुल्य माना जाता है। पार्वती सरोवर को गौरी कुण्ड के नाम से भी जाना जाता है, मान्यताओं के अनुसार यहां मां पार्वती स्नान करती थीं। इसलिए यहां की यात्रा पर आने वाली महिलाएं इस गौरी कुंड के पवित्र जल में स्नान कर अनेक कष्टों से मुक्ति पाती हैं। ओम पर्वत एवं यहां की तीर्थयात्रा का वर्णन पुराणों में भी मिलता है। वृहद विष्णु पुराण में लिखा है कि यह स्थान देवों के देव महादेव को अत्यंत प्रिय रहा है। पौराणिक कथाओं में भी इस पवित्र स्थल के महत्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। पुराणों में कहा गया है कि विश्व में आठ स्थानों पर प्राकृतिक रूप से ऊं बना हुआ है। परंतु अभी तक एकमात्र इसी ओम पर्वत को ढूंढा जा सका है। जहां ॐ को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
सुनाई देती है ॐ की ध्वनि : कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जा चुके यात्रियों के अनुसार इस पर्वत के दर्शन से अलोकिक शांति की अनुभूति होती है। यहां ॐके दर्शन के साथ-साथ ॐकी ध्वनि भी स्पष्ट रूप से सुनाई देती है। इससे शरीर में एक अद्भुत एवं सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है जो पूरे मन एवं मस्तिष्क को आध्यात्मिकता से भर देती है, और नास्तिक को भी आस्तिक बना देती है।
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बरकरार है प्रयास, धार्मिक महत्व के कारण कोई नहीं पा सका है फतह
पर्वतारोहियों के ऊं पर्वत पर फतह के प्रयास जारी है, लेकिन धार्मिक महत्व का सम्मान करते हुए कोई भी इस पर्वत को जीत नहीं पाया, जो कि एक अच्छी बात है। सबसे पहला प्रयास भारतीय दल ने ब्रिटिश पर्वतारोहियों के साथ मिलकर किया था। धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करते हुए इस दल ने चोटी से 30 फीट नीचे रूकने का फैसला किया था, परंतु वे यहां तक भी नहीं पहुंच पाए और खराब मौसम की वजह से उन्हें शिखर से 660 फीट नीचे से ही वापस लोटना पड़ा। 8 अक्टूबर 2008 को एक दूसरे दल ने चोटी को फतह करने का सफल प्रयास किया, यहां उन्होंने पर्वत के प्रति अपना सम्मान दिखाया और शिखर से कुछ मीटर नीचे से वापस आ गए।