पिता की शहादत से बेखबर है बेटा हर्षित, मां अंतिम शब्दों को याद कर बार-बार हो रही बेसुध..(indian army image)
गुमसुम बैठा पांच साल का मासूम बेटा, रोती बिलखती पत्नी इंदू और बार-बार बेसुध होती मां जानकी देवी.. इन सबके बीच अपना दर्द छुपाकर खुद के साथ ही परिवार को संभालने की नाकाम कोशिश करते सेवानिवृत्त पिता मोहन सिंह.. ऐसी ही कुछ स्थिति इस समय शहीद शंकर सिंह महरा के घर की है। मां जानकी देवी को तो यकीन ही नहीं हो रहा कि उसका बेटा अब इस दुनिया में नहीं है। अभी शुक्रवार दिन में ही तो शंकर से जानकी की बात हुई थी, फोन पर उसकी कुशल जानी थी, मां-बेटे की बातें अभी चालू ही थी कि तभी बार्डर पर गोलीबारी शुरू हो गई। जिस पर शंकर ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि “मां अभी फायरिंग शुरू हो गई है, बाद में फोन करूंगा..” यही उसके अंतिम शब्द थे। मां जानकी ने शंकर को दुश्मनों का मुंहतोड़ जवाब देने को कहा और उसे सदा विजयी होने का आशीर्वाद दिया। परंतु उसे क्या पता था कि इस शंकर उसकी इस आशीर्वाद की लाज रखते हुए न सिर्फ विजयी होगा बल्कि सदा सदा के लिए अमर हो जाएगा। उसकी वीरता की कहानी सारा संसार गायेगा। शहीद के मासूम बेटे हर्षित को तो इस बात की खबर ही नहीं कि उसके पिता ने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान कर दिया।(indian army image)
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर के बारामूला में पाकिस्तानी सेना की नापाक हरकतों का जबाव देते हुए 21 कुमाऊं रेजिमेंट के चार जवान गम्भीर रूप से घायल हो गए थे। जिनमें पिथौरागढ़ निवासी दो वीर जवानों ने अस्पताल में इलाज के दौरान वीरगति प्राप्त की। शहीदों में गंगोलीहाट तहसील के नाली गांव निवासी शंकर सिंह महरा भी शामिल हैं, शंकर की शहादत की खबर मिलने से परिवार में कोहराम मचा हुआ है। बता दें कि शहीद शंकर का जन्म जन्म पांच जनवरी 1989 को हुआ था और वह जीआईसी चहज से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 23 मार्च 2010 को सेना की 21 कुमाऊं रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। बताते चलें कि शहीद शंकर एक सैन्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जहां उनके दादा भवान सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा था वहीं शंकर राष्ट्रीय राइफल से 1995 में सेवानिवृत्त हुए हैं। शंकर का छोटा भाई नवीन सिंह भी सात कुमाऊं रेजिमेंट में अपनी सेवा दे रहा है और इन दिनों जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं। शहीद शंकर सिंह का पार्थिव शरीर आज दोपहर तक पिथौरागढ़ पहुंचने की उम्मीद है।