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Pandukholi Cave almora History Hindi

अल्मोड़ा

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Pandukholi Cave History Hindi: अल्मोड़ा जिले के पांडुखोली में है आध्यात्मिक गुफा

Pandukholi Cave History Hindi: कौरवों से छिपकर यहां अज्ञातवास में रहे थे पांडव, पांडव के रहने के कारण ही कहलाता है पांडु खोली….

Pandukholi Cave History Hindi
देवभूमि उत्तराखंड मे ऐसे विभिन्न स्थान मौजूद है जहां पर स्वयं देवताओं ने भी रहने के लिए आश्रय लिया था। ऐसा ही एक स्थान पांडु खोली भी है जो (पांडव खोली) के नाम से भी जाना जाता है और यह स्थान अल्मोड़ा जनपद से 27 किलोमीटर की दूरी पर दूनागिरी के द्रोण पर्वत पर स्थित है। यह क्षेत्र विभिन्न गुफाओं के लिए भी प्रसिद्ध है जो की द्वाराहाट और चौखुटिया के बीच में पड़ता है। पांडुखोली नाम का शाब्दिक अर्थ है पांडु ( पांडव), खोली ( आश्रय) ऐसा कहा जाता है कि पांडवों ने 14 वर्ष के वनवास को पूर्ण करने पर अज्ञातवास के पूर्व वर्ष के दौरान इसी स्थान पर निवास किया था इसके पश्चात इसका नाम पांडव खोली पड़ा। आपको जानकारी देते चले महाभारतकालीन पांडु पुत्रों ने अज्ञातवास के दौरान देवभूमि यानी उतराखंड में अनेक स्थानों पर अपने दिन गुजारे थे और इसके तमाम ऐतिहासिक साक्ष्य वह कथाएं इस बात का प्रमाण है। आपको बताते चलें उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद के प्रसिद्ध द्रोणागिरी पर्वत श्रृंखला पर पांडव खोली नामक स्थान स्थित है और इसके बारे में ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में पांडू पुत्रों ने अज्ञातवास का आखिरी दौर यही गुजरा था।
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पौराणिक लोक कथाओं के अनुसार जब पांडव द्युत क्रीड़ा में सब कुछ हार गए थे तो उन्हें अज्ञातवास भी झेलना पड़ा था। ऐसा कहा जाता है कि पांडव अपनी राजधानी हस्तिनापुर की सीमा पार कर जब उत्तराखंड पहुंचे तो साधु वेश में गार्गी नदी जो वर्तमान में गोला नदी के नाम से जानी जाती है उसको पार कर पहाड़ की सीमा को लांघ कर ( कत्यूर व चंदवंशजों का कोटखर्रा का किला) यानी कुमाऊं में मौजूद वर्तमान प्रवेश द्वार काठगोदाम से आगे रानीखेत होते हुए पांडवो ने पहाड़ी चढ़ना शुरू किया। पांडवों का पीछा करते-करते कौरव भी उनके पीछे पहुंच गए तभी पांडवों ने अचानक तेजी से अपना मार्ग बदल दिया और वह सीधा ऋषि गार्गी की तपोस्थली भरत कोर्ट की चोटी की ओर बढ़ गए और कौरव थक ,हारकर बग्वाली पोखर में ही रुक गए और वहां द्युत क्रीड़ा मे मस्त हो गए। दूसरी ओर पांडव महाराजा भरत की तपोस्थली भरतकोट की शिखर से होकर दूनागिरी कि उस चोटी की ओर बढ़ गए जहां से वैदिक काल में महाबली हनुमान लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लेकर लंका के लिए आगे बढे थे। तभी इस बीच कौरवों के गुप्तचरों ने 5 साधुओं के दूनागिरी पर्वतमाला की तलहटी पर मौजूदगी का संदेश कौरवों को दिया और गार्गी नदी को पार कर कौरव पीछा करते हुए दूनागिरी की तलहटी पर पहुंचे मगर वहां से आगे नहीं बढ़ सके और भ्रमित हो गए। तभी पांडव महाऔषधि वन यानी दूनागिरी वन क्षेत्र से ब्रह्मापर्वत के जिस पर्वत शिखर पर पहुंचे वह पांडव की खोली अर्थात पांडु खोली कहलाया।

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