Ghughuti Festival Story Hindi : घुघतिया त्यौहार से जुड़ी कहानी है बेहद रोचक
Ghughuti Festival Story Hindi : देवभूमि उत्तराखंड में वैसे तो अनेक त्योहार मनाए जाते हैं जिनका अपना कुछ विशेष महत्व तो होता ही है साथ में उनके यहां की लोक संस्कृति लोग परंपराओं से भी विशेष संबंध रहता है। आज हम आपको कुमाऊं मंडल के सबसे खास त्यौहार घुघुती पर्व और उत्तरायणी से जुड़ी एक कथा बांटने जा रहे हैं। आपको बता दें कि यह पर्व मकर संक्रांति(Makar sankranti )के दिन 14 जनवरी को मनाया जाता है। प्राचीन काल में कुमाऊं में चंद वंश का शासन था। जहां के राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। संतान की प्राप्ति के लिए राजा ने बागेश्वर जाकर भगवान बागनाथ की पूजा की जिसके बाद राजा को मकर संक्रांति के दिन पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। राजा ने पुत्र का नाम निर्भयचंद रखा। राजा की पत्नी अपने बेटे को प्यार से घुघुती कहकर बुलाती थी। घुघुती के गले में एक मोतियों की माला हुआ करती थी जिसे माला को देखकर घुघुती बहुत खुश रहता था। जब कभी भी वह रोता तो उसकी मां उसे चुप कराने के लिए कहती थी ‘ काले कौवा काले, घुघुती की माला खाले ‘ रानी की आवाज सुनकर इधर-उधर से कौवे आ जाते थे और उसकी मां कौओं को पकवान बनाकर खिलाती थी। धीरे-धीरे कौओ और घुघुती की दोस्ती हो गई । राजा का एक मंत्री राजा के वंशज को खत्म करने के लिए घुघुती को मारना चाहता था। इसलिए एक दिन मंत्री ने घुघुती का अपहरण कर लिया और घुघुती को उठाकर दूर जंगल में ले गया। कौवों ने मंत्री को घुघुती को लेकर जाते हुए देख लिया। जिसके बाद कौवे घुघुती के गले की माला छीनकर राजा के पास लाए। इससे राजा को लगा कि घुघुती की जान खतरे में है। राजा तथा उसके अन्य मंत्री जंगल की ओर गए उन्होंने देखा कि पेड़ के नीचे घुघुती अचेत पड़ा था। राजा ने मंत्री को मृत्युदंड दिया। इस प्रकार कौवों ने घुघुती की जान बचाई। इसके बाद घुघुती की मां ने पकवान बनाकर कौओं को खिलाएं और उनका धन्यवाद किया। तभी से कुमाऊं मंडल में घुघुती त्यौहार पर बच्चों के गले में घुघुती की माला पहनाने और कौवों को घुघुती बनाकर खिलाने की प्रथा चली आ रही है।
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Uttrayani festival Uttarakhand: दूसरी मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में घुघुतिया नाम का एक राजा हुआ करता था। जो कि ज्योतिषियों में बहुत विश्वास रखता था।एक दिन राजा ने अपनी मृत्यु के बारे में जानना चाहा। ज्योतिषियों ने ग्रह नक्षत्रों की स्थिति को देखकर राजा को बताया कि मकर संक्रांति के दिन कौवे के चोंच मारने के कारण राजा की मृत्यु हो जाएगी। जिसके बाद सभी चिंतित हो गए। जिसके बाद विचार आया कि मकर संक्रांति को आटे के डिकरे बनाकर कौवों को खिलाए जाएं और दिनभर उनको व्यस्त रखा जाय ताकि राजमहल की ओर कोई कौवा नहीं आए।सभी ने आटे के पकवान और घुघुते बनाए और बच्चे प्रातःकाल से ही काले कौवा काले, घुघुती की माला खाले की आवाज लगाने लगे। जिससे कौवे दिनभर घुघुते खाने में व्यस्त रहे और महल की ओर कोई भी कौवा नहीं आया और राजा की मृत्यु टल गई।