Haru Mehra Uttarakhand: अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया निवासी हरू मेहरा ने संवारा पहाड़ के युवाओं का भविष्य
वैसे तो उत्तराखंड के कई प्रेरणादायक व्यक्तित्व से आए दिन हम आपको रूबरू कराते रहते हैं लेकिन आज जिस खास शख्सियत कि हम बात करने जा रहे हैं वे हैं उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया विकासखण्ड के सुदूरवर्ती गांव तड़ागताल निवासी हरू मेहरा। जिन्होंने पहाड़ के युवाओं को सशक्त बनाने के लिए बेहद सराहनीय कार्य किया है।(Haru Mehra Uttarakhand)
हरु मेहरा की शिक्षा: हरु मेहरा के पिताजी एक सरकारी विभाग मे कार्यरत थे तो बचपन में हरु की पढ़ाई में दिलचस्पी देखकर उनके पिता उन्हें अपने साथ दिल्ली लेकर आए जिससे उनकी प्रारंभिक शिक्षा केंद्रीय विद्यालय न. 2 दिल्ली कैंट से हुई और इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से स्नातक किया साथ ही पर्यटन अध्ययन में दोहरा स्नातक डिग्री और DMI-आयरलैंड से डिप्लोमा प्राप्त की। हरू की संघर्ष और सफलता तक की कहानी युवाओं के लिए एक प्रेरणा भरी है। उनका पालन-पोषण दिल्ली के द्वारका क्षेत्र में एक सामान्य परिवार में हुआ जहां पर वह अपने पिता के साथ रहते थे पर गर्मी की छुट्टियों में अक्सर वो गांव जाया करते थे।वो लिखते हैं कि गांव से जुड़े बहुत सारी सुनहरी यादें उन्होंने एकत्रित की हैं। जो आज भी उनके मन मे तरोताजा हैं।हरु मेहरा के दो भाई और एक बहिन है ,एक भाई रोहिणी में अपने परिवार के साथ रहते है, और छोटी बहन और छोटा भाई भी अपने – अपने परिवार के साथ अमेरिका में रहते हैं। हरू मेहरा भी अपने परिवार के साथ फ्रांस के ल्यों शहर में रहते हैं ।
आयुर्वेदिक सौंदर्य केंद्र:
हरु मेहरा की पत्नी लक्ष्मी मेहरा फ्रांस में आयुर्वेदा को प्रोत्साहित करने के लिए निरंतर सफल प्रयास करती हैं। जिसके लिए वो ल्यों में एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक सौंदर्य और स्वास्थ्य केंद्र चला रही हैं। वोल्वो और मिचलिन टायर जैसी प्रमुख ब्रांड्स के साथ मॉडल के रूप में भी काम करने में सफल रही हैं।उनकी बेटी “मान्या “फ्रांस के एक श्रेष्ठ विश्वविद्यालय में अपने इंजीनियरिंग में अध्ययन कर रही हैं। जबकि उनका बेटा “महिमन ” ल्यों में एक फ्रेंच स्कूल में 10वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहा है।हरु मेहरा ने अपने करियर की शुरुआत में वित्तीय सेवाओं और निवेश में से एक बैंकी के साथ अधिक से अधिक प्रशिक्षण सत्र आयोजित करके लाखों भारतीय छात्रों को वित्तीय ज्ञान का बोझ कम करने की तरफ एक प्रयास किया है। लेकिन यूरोपीय संघ के ERASMUS कार्यक्रम के एक अनूठे अनुभव ने उन्हें शिक्षा और विश्वविद्यालयों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया।वर्तमान में “फ्रेहिंदी” के संस्थापक के रूप में मान्यता प्राप्त हुए हरू को दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य पूर्व के छात्रों को अनुभव पर आधारित सीखने का अवसर प्रदान करने के लिए मान्यता प्राप्त हुआ है।
शिक्षा में योगदान :
विद्यार्थियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुभव प्रदान करने के लिए एक उदार विचार के प्रतीक बने हरू मेहरा के नेतृत्व में चल रहे संस्था ‘फ्रेहिंदी’ ने दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य पूर्व के 30,000 से अधिक छात्रों को लाभ पहुंचाया है, जिन्हें विश्वस्तरीय अनुभव का आनंद मिला।उनके द्वारा आयोजित की जा रही 500 से अधिक रचनात्मक भाषा कार्यशालाओं और 15 वर्ष के रचनात्मक प्रशिक्षण सत्रों से विद्यार्थियों को शिक्षा में योगदान किया जा रहा है। हरू ने युवाओं से बातचीत करके एक नवाचारी कक्षा का निर्माण किया है, जो सीखने को आनंदमय बनाता है।उनके अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा में योगदान के अलावा, हरू ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में उधार उठाया है। विश्वविद्यालय, स्कूल, और दूतावासों में अधिकांश शिक्षार्थियों, शिक्षकों, और अभिभावकों को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा के महत्वपूर्ण तत्वों पर ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने चार पाठ्यपुस्तकों को लिखा और कक्षा के खेल और गतिविधियों के लिए एक मार्गदर्शिका बनाई है, जो प्राकृतिक शिक्षा को प्रोत्साहित करती है।उनकी पेपोएट्री कॉन्सेप्ट के सफल परीक्षण के बाद, हरू इसे 2024 में वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करने की तैयारी में हैं।
कौशल विकास संस्थान: मिस्टर हरू मेहरा अब कुमाऊँ के छात्रों के लिए कौशल विकास के एक परियोजना पर काम कर रहे हैं ।वे अगले 6 महीने में हल्द्वानी में एक कौशल विकास और प्रशिक्षण केंद्र विकसित करने की योजना बना रहे हैं। जिसके लिए उन्होंने उत्तराखंड के हल्द्वानी और रुद्रपुर क्षेत्र में कई संस्थानों के साथ मिलकर कौशल प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के लिए समझौते किए हैं। उनका यह मानना है कि पहाड़ों के युवाओं में हुनर की कमी नही है बल्कि पहाड़ के युवा बहुत ही समर्पित और ईमानदार कर्मचारी के रूप में काम करते हैं, लेकिन आज के उच्च प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण में उन्हें आधुनिक महत्वपूर्ण कौशलों की कमी होती है जिसके कारण उनकी विकास और प्रदर्शन क्षमताओं में बाधाएं आती हैं। उनका कहना है कि इस योजना के पीछे उनका एकमात्र उद्देश्य पहाड़ों के युवाओं को तकनीकी ज्ञान व कौशल विकास जैसे प्रशिक्षण देकर उन्हें एक स्वावलंबी और शसक्त करियर देना है ।