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कुमाऊं के प्रसिद्ध देवता कलबिष्ट को जाना जाता है गैराड़ गोलू के रूप में जानिए उनकी गाथा

Kalbisht Devta story Hindi: अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से 20 किमी0 की दूरी पर स्थित है डाना गोलू देवता का मंदिर, जाने जाते हैं गैराड गोलू देवता के नाम से भी…..

Kalbisht Devta story Hindi
देवभूमि उत्तराखंड मे ऐसे बहुत सारे प्राचीन मंदिर स्थित है जिनमें मौजूद देवी- देवताओं की गाथा लोगों को आश्चर्य में डाल देती है। ऐसे ही कुछ गाथा है कुमाऊं के प्रसिद्ध देवता कलबिष्ट की, जिन्हें गैराड़ गोलू के नाम से भी जाना जाता है और इनके बारे मे ऐसा कहा जाता है कि यह पीड़ितों के सहायक देवता है। आपको जानकारी देते चलें अल्मोड़ा जिले से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गैराड़ गोलू देवता का मन्दिर जिन्हें कलबिष्ट डाना गोलू देवता कल्याण सिंह बिष्ट के नाम से भी जाना जाता है। इस मन्दिर में आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि कलबिष्ट डाना गैराड़ गोलू देवता को छल कपट से चन्द वंशी राजाओं के दीवान रहे सम्राट नौखल्या पांडेय ने मरवाया था।जब वह अपनी भैंसों को चराने के लिए जंगल गए थे तब उन्हें मारा गया था और इसी स्थान पर उनका सिर करीब ढाई किलोमीटर दूर कबाड़खाने में जा गिरा उनके धड़ के साथ उनकी भैंसों ने पत्थर का रूप ले लिया। इस मंदिर में विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु पहुंचते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण होने के पश्चात यहां आकर घंटी चढ़ाते हैं।
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कलविष्ट देवता की गाथा:-

कहा जाता है कि कलविष्ट देवता का जन्म कुमाऊं के निकटवर्ती गांव कोट्यूड़ा मे हुआ था उस समय इन्हें कल्याण सिंह बिष्ट के नाम से जाना जाता था। इनके पिता का नाम केशव बिष्ट तथा माता का नाम दुर्पाता था। बताया जाता है कि कलविष्ट देवता मानव योनि में वीर रंगीले जवान थे जो राजपूत होने के बावजूद भी ग्वाले का काम किया करते तथा बिनसर के जंगलों में गाय व भैंस चराया करते थे। दरअसल कलविष्ट प्रतिदिन बिनसर में सिद्ध गोपाल नाथ नामक व्यक्ति के यहां दूध देने जाया करते थे। जिनके पड़ोस में श्री कृष्ण पांडे नाम के व्यक्ति हुआ करते थे जो एक राजा के दरबारी थे उनके घर भी कलविष्ट का आना जाना लगा रहता था। बता दें श्री कृष्ण पांडेय का किसी नौलखिया पांडेय से बैर भाव था जिसके चलते श्री कृष्ण व कलबिष्ट (कलुवा) के बीच फुट डालने के लिए नौलखिया पांडेय ने श्री कृष्ण पांडेय की पत्नी और कलबिष्ट (कलुवा) के बीच अवैध संबंध की झूठी कहानी लोगो तक प्रचारित कर दी। यह झूठी कहानी सुनने के पश्चात श्री कृष्ण पांडे को क्रोध आ गया और उन्होंने कलविष्ट को मारने की योजना बनाई किंतु उनकी वीरता और साहस के आगे कोई उन्हें मार तक नहीं पाया। इसी बीच कलबिष्ट ने अल्मोड़ा के राजदरबार में सबसे शक्तिशाली योद्धा जय सिंह टम्टा को मल युद्ध में हराकर राजा के सामने अपनी धाक जमा दी थी और इससे चलते कई दरबारी उनसे द्वेष भाव रखने लगे थे तथा उन्हें राजा की नजरों से दूर रखना चाहते थे।
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कहा जाता है कि दरबारियों एवं श्री कृष्णा पांडेय की प्रेरणा से राजा का एक दरबारी पालीपछाव के दयाराम पछाईं के प्रस्ताव स्वरूप राजा ने कलबिष्ट (कलुवा) को अपनी भैंसे चौरासी माल के जंगलों में चराने ले जाने के लिए उन्हें आज्ञा दी। वहां जंगल में कलविष्ट का सामना मुगल सेना से हुआ और कलविष्ट ने मुगलों को युद्ध में परास्त कर उन पर विजय प्राप्त कर पुन: अपने भैंसों को लेकर चौरासी मल के घने जंगलों में ले गए और वहां उन्होंने 84 शेरों को मार गिराया जिसके पश्चात वह जंगल पशु पालको के लिए अभय बन गया। इसके बाद कलविष्ट भैंसो को लेकर वापिस गांव लौट गए जिन्हें देखकर श्री कृष्णा पांडे और दयाराम आश्चर्यचकित हो गए और तब उसको धोखे से मारने के लिए उसके साडू भाई लक्कड़योडि को प्रबोलन दिया। तब लकड़योड़ी ने एक दिन षड्यंत्र के तहत कलबिष्ट की एक भैंस के पांव में कील ठोक दी और जब कलबिष्ट (कलुवा) भैंस के पैर से कील निकालने के लिए झुका तो लकड़योड़ी ने कलबिष्ट (कलुवा) की गर्दन काट दी पर कलबिष्ट (कलुवा) ने प्राण त्यागने से पहले लकड़योड़ी को भी मार दिया। जिसके पश्चात लकड़योड़ी के पाप के कारण उसके संपूर्ण वंश का ही नाश हो गया था और मरणोपरांत कलबिष्ट प्रेत की योनि में चला गया और प्रेत बनकर उन्होंने सर्वप्रथम अल्मोड़ा स्थित पांडपांडेय खोला के श्री कृष्ण पांडे के पुत्र आक्रांत किया पूछताछ करने पर जब कलविष्ट के प्रेत बनने की बात सामने आई तो श्री कृष्ण पांडे ने कपड़खान में उनका मंदिर बनवाया जहां पर कलविष्ट के नाम से उनकी पूजा अर्चना आरंभ हुई।

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