अब देश-विदेश में भी पहुंचेगी रामगढ़ (Ramgarh) के फलों की खुशबू, फ्रूट प्रोसेसिंग यूनिट (Fruit Processing Unit) लगने के बाद मिलेगी एक नई पहचान..
नैनीताल जिले का रामगढ़ ब्लाक (Ramgarh) वैसे तो फलों के लिए हमेशा से ही सुप्रसिद्ध रहा है। जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगर हम रामगढ़ ब्लाक के बारे में कोई बात करें तो हमें फलों के अलावा उसे कोई दूसरी पहचान देने की आवश्यकता नहीं है। रामगढ़ अंग्रेजी हुकूमत के दिनों से ही फलों के गढ़ के रूप में जाना जाता रहा है। हालांकि संसाधनों की कमी के कारण इसकी यह पहचान केवल एक क्षेत्र तक ही सीमित है। परन्तु अब वह दिन दूर नहीं जब रामगढ़ को देश-विदेश में भी प्रसिद्धि मिल जाएगी। जी हां.. ऐसा संभव होने जा रहा है राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के एक बेहतरीन प्रोजेक्ट के जरिए, जिसमें सरकार की योजना रामगढ़ में एक फ्रूट प्रोसेसिंग यूनिट (Fruit Processing Unit) लगाने की है। बताया गया है कि यह नैनीताल जिले की सबसे बड़ी फ्रूट प्रोसेसिंग यूनिट होगी, जिसे 1.75 लाख रुपए की लागत से पुराने ब्लाक के एक भवन में लगाया जाएगा। सबसे खास बात तो यह है कि ग्रोथ सेंटर के रूप में विकसित होने वाली इस योजना का प्रस्ताव ब्लाक मुख्यालय से शासन को भेज दिया गया है।
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फ्रूट प्रोसेसिंग यूनिट के माध्यम से फलों से जैम, अचार, चटनी आदि तैयार कर बिक्री के लिए भेजा जाएगा देश-विदेश में:-
प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य के नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लाक में जल्द ही एक फ्रूट प्रोसेसिंग यूनिट लगने जा रही है। इस संबंध में रामगढ़ की बीडीओ चंदा राज का कहना है कि यह रामगढ़ के लिये एक महत्वपूर्ण योजना है। जिससे एक ओर तो क्षेत्र का एक भी फल खराब नही होगा और फल उत्पादकों को उनके फल का उचित दाम भी मिल सकेगा, जिससे उनकी आर्थिकी सुधरेगी वहीं दूसरी ओर स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार भी मिलेगा। बता दें कि इस फ्रूट प्रोसेसिंग यूनिट के जरिए पहले फलों को पल्प में बदल दिया जायेगा, जिसके बाद इससे जैम, अचार, चटनी आदि का उत्पादन होगा। जिसे पैकिंग के बाद देश-विदेश में ब्रिक्री के लिए भेजा जाएगा। बताया गया है कि इस यूनिट के स्थापित होने के बाद यहां रामगढ़ के 17 स्वयं सहायता समूहों के 186 लोगों को सीधा रोजगार भी मिलेगा। उधर रामगढ़ में इस यूनिट के स्थापित होने की खबर से स्थानीय ग्रामीण काफी खुश हैं। उनका कहना है कि अभी तक फलों जैसे खुमानी, पुलम, सेब आदि का उत्पादन अधिक होने पर ग्रामीणों को इसे कम दाम पर मंडी में बेचना पड़ता था जिससे कई बार उनकी उत्पादन की लागत भी नहीं निकल पाती थी। यूनिट के स्थापित होने के बाद उन्हें किसी भी प्रकार की हानि होने की संभावना नहीं रहेगी।
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