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Uttarakhand Government Happy Independence Day
Uttarakhand narsingh devta jagar story of joshimath and katyuri dynasty

उत्तराखण्ड विशेष तथ्य

देवभूमि दर्शन

संपादकीय

साधु-बाबा की शर्त अगर फोड़ दिया इस जोशीमठ में मैंने पानी तो छोड़ना पड़ेगा तुम्हें जोशीमठ

Joshimath Narsingh Devta story जनश्रुतिओं के अनुसार एक साधु ने जब ललकार दिया 9 लाख कत्यूरो को अगर फोड़ दिया इस जोशीमठ में मैंने पानी तो छोड़ देना इस जोशीमठ को

उत्तराखंड में कत्यूरी वंश या कार्तिकेयपुर राजवंश की स्थापना 700 ईसा पूर्व में हुई। कार्तिकेयपुर राजवंश की पहली राजधानी जोशीमठ चमोली थी। जिसका उल्लेख तालेश्वर व पांडुकेश्वर के दानपात्रों में मिलता है। आपको बता दें कि कार्तिकेयपुर राजवंश के शासनकाल में ही उत्तराखंड में आदि गुरु शंकराचार्य का आगमन हुआ। इन्होंने बौद्ध धर्म को समाप्त कर पुनः हिन्दू धर्म की  पुनर्स्थापना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्होंने बद्रीनाथ तथा केदारनाथ मंदिर का पुनरुद्धार कराया तथा ज्योतिरमठ की स्थापना की। कत्यूरी राजवंश की तीन शाखाओं ने 300 वर्षों तक ( 700 ईo से 1030 ईo) तक शासन किया‌। (Joshimath Narsingh Devta story)

उस समय नाथपंथी साधु भी मिलकर जगह जगह मठों में दीक्षा और सिद्धियां प्राप्त कर रहे थे। जैसे कि आपको विदित ही हैं देवभूमि उत्तराखंड में अनेक लोक देवता हैं और उनसे जुड़ी विभिन्न लोककथाएं और जनश्रुतियां हैं। ऐसी ही एक जनश्रुती उत्तराखंड जागरो में अवतरित होने वाले नरसिंह देवता के विषय में भी है। दरअसल उन्हें एक सिद्ध योगी नाथपंथी बाबा के रूप में पूजा जाता है।

उत्तराखंड नरसिंह देवता जागर और जनश्रुतियों के अनुसार कथा: कहा जाता है कि एक सिद्धि योगी नाथ पंथी साधु जब तिलक चंदन लगाएं हाथ में तिमुर का सौठा (लठ्ठा), हरवे की झोली और कान में कुंडल पहने हुए भिक्षा मांगने निकले तो हरिद्वार होते हुए भी भिक्षा मांगते मांगते जोशीमठ (कार्तिकेयपूर) पहुंच गए जहां पर उस समय कत्यूरी शासकों का साम्राज्य था। साधु बाबा कत्यूरी शासकों से कहते हैं मुझे इस जोशीमठ में नाथ संप्रदाय के साधु-संतों को बसाना है और हिंदू धर्म का प्रचार प्रसार करना है। इसलिए तुम्हें यह जोशीमठ छोड़ना पड़ेगा। इस पर जब वहां के लोग कहते हैं कि अरे साधु तू इस जोशीमठ में क्या करेगा यहां तो पानी ही नहीं है। इस पर जोगी बाबा कहते हैं अगर मैंने इस जोशीमठ में पानी फोड़ दिया तो तुम्हें ये जोशीमठ छोड़ना पड़ेगा। वहां के लोग बाबा के इस बात पर खूब ठहाके लगाकर हंसने लगते हैं की एक साधु इस जोशीमठ में पानी फोड़ेगा जहां के लोग 3 दिन और 3 रात चलकर देवप्रयाग से पानी लाते हैं। साधु बाबा अपना दो धारी चिमटा जैसे ही जोशीमठ की धरती पर मारते हैं तो पानी की धारा फूट पड़ती है। शर्त हारने के बाद कत्यूरी शासक जोशीमठ से बैजनाथ बागेश्वर चले गए और वही अपनी राजधानी बना ली।
Uttrakhand katyuri dynasty

इस संबंध में कुछ जनश्रुतिया इस प्रकार से प्रचलित हैं जिनका आवाहन कुमाऊं और गढ़वाल के जागर में दुधाधारी नरसिंह देवता के अवतरण में होता है। कहा जाता है कि राजा आसंती देव आखेट खेलने के लिए जंगल गए और घर पर बोखसार की विद्या रूपी रेखा खींची हुई थी जिसके अंदर और बाहर कोई नहीं आ सकता था। साधु बाबा भिक्षा मांगने के लिए आसंती देव के घर पहुंचते हैं और कहते हैं भिक्षाम देही माई भिक्षाम देही। प्योला रानी किसी बच्ची को भिक्षा देने के लिए भेज देती है तब साधु कहते हैं किसी बच्चे के हाथ से भिक्षा नहीं लेनी है घर में जो सयाना है वही भिक्षा देगा। प्योला रानी बाहर आई और बोली कि आप अंदर तो नहीं आ सकते हैं मैं यहीं से आपको भिक्षा दे देती हूं। इस पर साधु बाबा बोलते हैं नहीं माता मैं आज एक दिन यहीं रुकूंगा और एक छाट का भोजन करूंगा। लेकिन प्योला रानी कहती है घर के आगे तो बोखसार की विद्या की हुई है इसके अंदर आप कैसे आएंगे तो बाबा अपने तिमुर के सौठे से उस विद्या और जादू को खत्म कर देते हैं। जोगी बाबा अंदर आते हैं और अब भोजन बनाने का आग्रह करते हैं तो प्योला रानी कहती है कि भोजन बनेगा कैसे हमारे यहां तो देवप्रयाग से पानी आता है 3 दिन और 3 रात आने जाने में लग जाते हैं। इस पर साधु बाबा बोलते हैं मैं इस जोशीमठ में पानी फोड़ के दिखाऊंगा। साधु बाबा अपना दो धारी चिमटा जैसे ही जमीन में मारते हैं उसकी चोट लगती है पाताल में जाकर देवप्रयाग में और वहां का सारा पानी फूट जाता है जोशीमठ में जिसपर पूरे जोशीमठ में हर हर गंगे हर हर गंगे के स्वर गूंजने लगते हैं। इसी पानी के स्रोत को वसुरधार नाम दिया गया। साधु बाबा ने भी इस पानी के इस स्रोत में स्नान किया और माता को छाट का भोजन बनाने के लिए कहा। आपको बता दें कि हमारी लोक परंपरा जागर मैं भी कहा जाता है की नरसिंह देवता का स्नान सिर्फ वसुरधार में ही होता है। जैसे किसी अन्य देवता का हरिद्वार तो किसी का झाकर सेम (अल्मोड़ा) होता है।

प्यौला रानी साधु बाबा के लिए पत्ते में भोजन लाती है तो बाबा बोलते हैं मैं पत्ते में भोजन नहीं करता हूं सिर्फ कांसे के बर्तन मैं ही भोजन करता हूं । रानी बोली जो कांसे की थाली है वह सिर्फ आंसती और बासंती की है उसमें मैं आपको भोजन कैसे दे दूं। इस पर साधु बाबा क्रोधित हुए और बोले अगर मुझे कांसे के बर्तन में भोजन नहीं दिया तो मैं तुम्हें फटकार देता हूं। यह सुनकर रानी भयभीत हुई और बोली आप शांत हो जाइए साधु महाराज मैं आपके लिए कांसे के बर्तन में ही भोजन लाती हूं। उसी समय जंगल में आकाशवाणी होती है जहां पर आंसती और बासंती आखेट के लिए गए थे। आकाशवाणी होती है कि है! आंसती – बांसती तुम्हारे घर में कोई साधु बाबा घुस गया है और तुम्हारे थाली में भोजन कर लिया है अब वह तुम्हारे बिस्तर पर सोने की जिद करेगा। उधर जैसे ही साधु बाबा ने भोजन किया तो बोले अब मुझे इस बिस्तर पर थोड़ा विश्राम करना है। इतने में आसंती देव घर पहुंच जाते हैं और क्रोधित होकर साधु बाबा को युद्ध के लिए ललकार बैठते हैं। अनुश्रीओं के अनुसार 9 लाख कत्यूरो की फौज साधु बाबा से लड़ने को तैयार हो जाती है। लेकिन कोई भी साधु बाबा का बाल भी बांका नहीं कर पाता है। लेकिन राजा आसंती देव साधु बाबा का एक जांघ पर तलवार से प्रहार कर उसे काट देता है जिसमें से खून की बजाए दूध की धारा निकल पड़ती है। जिस पर राजा समझ जाते हैं यह कोई मामूली साधु नहीं है कोई ईश्वरी अंश हैं। साधु महाराज से पूछने पर वह बताते हैं मैं विष्णु रुपी नरसिंह हूं और तेरा जोशीमठ में राजकाज देखकर बहुत खुश हुआ था इस पर परीक्षा लेने आ गया।


वही इस संबंध में दूसरी के कथा यह भी प्रचलित है कि

जब राजा आखेट से लौटकर आये तो उन्होंने अपने रनिवास में किसी पर पुरुष को सोया देखा तो क्रोधित हो गए और अपने तलवार से साधु की बांई भुजा काट दी। जिस पर साधु के हाथ से दूध निकलने लगा। तब आश्चर्यचकित होकर राजा ने रानी से पूछा ,” ये कौन है ? ” तब रानी बोली , ‘ ये कोई देवपुरुष प्रतीत होते हैं , बड़े परहेज से भोजन करके पलंग पर सो गए थे। तब राजा को अपनी गलती का अहसास हुवा। उन्होंने उस देवपुरुष से माफ़ी मांगी और कहा कि उससे गलती हो गई है। जिसके लिए उन्हें जो भी दंड मिलेगा उन्हें स्वीकार्य है। तब उस देवपुरुष ने कहा , ‘ मै नरसिंह हूँ। मैं खुश था ,इसलिए तेरे द्वार पर आया था। लेकिन तूने मुझे घाव देकर दुखी कर दिया। तेरा दंड यह है कि तू मेरे क्षेत्र जोशीमठ से दूर चला जा। वही जाकर अपनी राजधानी बसाना। याद रखना मेरा यह घाव मेरी इस मूर्ति में भी दिखाई देगा। जब मेरी मूर्ति टूट जाएगी तब तेरा वंश भी नष्ट हो जायेगा। ऐसा कहकर वे देव रूपी नरसिंह भगवान अन्तर्ध्यान हो गए।

भू वैज्ञानिकों का कत्यूरी राजाओं को अपनी राजधानी जोशीमठ को छोड़ने का कारण –

कत्यूरी राजाओं को अपनी राजधानी जोशीमठ को छोड़ने के संबंध में शोधकर्ताओं और भू- वैज्ञानिको के अपने अपने मत  है। अगर बात करें भू – वैज्ञानिको की तो उन्होंने पहले ही बता दिया था कि जोशीमठ शहर एक प्रकार की भूस्खलन वाली मिटटी या सामग्री पर बसा है। 1939 में प्रोफ़ेसर Heim and Gansser ने पुस्तक सेंट्रल हिमालया में जोशीमठ के बारे में लिखा था कि ,यह नगर बहुत बड़े भुस्खलनीय मटेरिल पर बसा है। जोशीमठ के बारे 1996 में गढ़वाल कमिश्नर M C मिश्रा और 18 सदस्यों के एक पैनल ने रिपोर्ट बनाई थी ,जिसमे यह स्वीकार किया था कि जोशीमठ शहर एक भुस्खलनीय मिटटी पर बसा शहर है। इसमें ज्यादा विकास की होड़ में दौड़ना बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।

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