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architect Sachinand Semwal of Tehri Garhwal AI portal for Kumaoni, Garhwali, Jaunsari Pahari language uttarakhand latest news
Image : social media ( Sachinand Semwal AI Portal)

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टिहरी के सचिनानंद सेमवाल का माटी प्रेम झलका टेक्नोलॉजी में, अब AI बोलेगा कुमाऊंनी गढ़वाली

Sachinand Semwal AI Portal: टिहरी के बेटे ने किया कमाल, गढ़वाली, कुमाऊंनी जौनसारी भाषाओं को जोड़ा AI युग से, AI आर्किटेक्ट सच्चिदानंद सेमवाल की सराहनीय पहल ..

architect Sachinand Semwal of Tehri Garhwal AI portal for Kumaoni, Garhwali, Jaunsari Pahari language uttarakhand latest news: उत्तराखंड समेत विश्वभर में ऐसे कई सारे देश ,राज्य मौजूद है,जिनकी अपनी विशेष संस्कृति और बोली भाषाएं होती है। इतना ही नहीं बल्कि किसी भी व्यक्ति की बोली भाषा संस्कृति परंपरा ही उसकी पहली पहचान होती है। ऐसी ही कुछ बोली भाषा है उत्तराखंड की जहाँ पर विशेष रूप से गढ़वाली, कुमाऊँनी, जौनसारी भाषाएँ बोली जाती है। हालांकि धीरे धीरे इन बोली भाषाओं का अस्तित्व अब खतरे में पड चुका है,जिससे लोगो को अपने अस्तित्व की चिंता सताने लगी है। ऐसी ही कुछ कहानी है यूएस मे बसे उत्तराखंड के AI आर्किटेक्ट सच्चिदानंद सेमवाल की जिन्होंने अपने बेटे से अपनी भाषा सीखने को कहा, लेकिन जब बेटे ने इसकी शुरुआत करनी चाही तो उसे अपनी भाषा सीखने का सही माध्यम नहीं मिला। जिसके बाद सच्चिदानंद ने AI पोर्टल बनाया जिस पर उन्होंने गढ़वाली ,कुमाऊनी ,जौनसारी भाषा को जोडा। सच्चिदानंद के इस महत्वपूर्ण सराहनीय योगदान के कारण उनकी चर्चा आज पूरे देश दुनिया में हो रही है।

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Sachinand Semwal maletha tehri garhwal: अभी तक मिली जानकारी के अनुसार AI आर्किटेक्ट सच्चिदानंद सेमवाल मूल रूप से उत्तराखंड के टिहरी जिले के मलेथा के रहने वाले हैं। जो वर्तमान मे यूएस मे बसे हुए है। दरअसल सच्चिदानंद ने अपने बेटे को अपनी भाषा सीखने के लिए कहा तो उनके बेटे ने अपनी भाषा सीखने का प्रयास किया ,लेकिन उसे भाषा सीखने का कोई उचित माध्यम नहीं मिला। इसके बाद उसने अपने पिता से सवाल किया लेकिन उनके पास भी इसका कोई जवाब नहीं था। बेटे की बात सच्चिदानंद को इतनी चुभ गई की उन्होंने AI पर भाषा का पोर्टल ही बना डाला, जिसमे गढ़वाली कुमाऊनी जौनसारी भाषाओं को AI युग से जोड़ा गया। जो आज देश दुनिया में चर्चा का विषय बन गया है।

सच्चिदानंद ने ठानी भाषा को सुरक्षित रखने की (AI portal pahari language) 

सच्चिदानंद बताते हैं कि उनकी मां ठीक से हिंदी नहीं बोल पाती है जो बच्चों से गढ़वाली में ही बात करती है। हालांकि इस बात का फायदा यह हुआ कि सच्चिदानंद के बच्चों को अपनी बोली समझ में आने लगी। मगर स्विट्जरलैंड और यूएस मे रहने के कारण उनके बच्चों को अपनी बोली भाषा बोलने का माहौल नहीं मिला जिसके कारण वह अपनी भाषा बोल नहीं पाते हैं। वही एक दिन उनके बेटे ने chatgpt से अपनी भाषा के बारे में पूछा लेकिन उसे वहां पर उत्तराखंड की बोली भाषा का कोई डेटा नहीं मिला। इसके बाद सच्चिदानंद के बेटे ने उनसे सवाल किया कि हमारी बोली का तो कोई डेटा ही नहीं है। यदि कोई सीखना चाहें तो कैसे सीखेगा जिसके बाद सच्चिदानंद ने फैसला किया कि वह अपनी भाषा को सुरक्षित रखने की पहल करेंगे।

सच्चिदानंद ने अपनी कमाई के पैसे से उठाया पूरा खर्च

सच्चिदानंद ने उत्तराखंड की भाषाओं पर रिसर्च करना शुरू किया क्योंकि वह उत्तराखंड की भाषाओं को AI से जोड़ना चाहते थे। जिसके चलते वह उत्तराखंड आकर लोक गायक प्रीतम भरतवाण से मिले जिन्हे सच्चिदानंद का आईडिया बेहद पसंद आया और अन्य लोगों ने भी इस पर अपनी सहमति दी। जिसके बाद सच्चिदानंद वापस यूएस लौटे जिन्होंने उत्तराखंड की गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी भाषाओं के डेटा पोर्टल पर काम करना शुरू किया। इतना ही नहीं बल्कि इसके लिए एक टीम भी बनाई जिन्होंने दिन-रात मेहनत करके सच्चिदानंद के साथ भाषा डेटा कलेक्शन पोर्टल तैयार किया। जिसका पूरा खर्चा सच्चिदानंद ने अपनी कमाई के पैसे से उठाया।

29 अक्टूबर को AI पोर्टल का शुभारंभ

29 अक्टूबर 2025 को भाषा AI पोर्टल का अमेरिका के सिएटल और कनाडा की सरे वैंकूवर मे भव्य शुभारंभ किया गया। इस दौरान उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लोक गायक प्रीतम भरतवाण समेत अन्य कई जाने-माने लोग और हजारों उत्तराखंडी इस इवेंट में ऑनलाइन जुड़े। सच्चिदानंद ने बताया कि उन्हें 20 वर्षों से अधिक इंजीनियरिंग अनुभव और 4 वर्षों से अधिक AI का अनुभव है वो खुद को भाग्यशाली समझते हैं कि उनके अनुभव का उपयोग उनकी मातृभाषा के संरक्षण हो रहा है। सच्चिदानंद का कहना है कि वह इस पहल को सामाजिक आंदोलन के रूप में चलाना चाहते हैं ताकि भाषा विशेषज्ञ लोक कलाकार समाजसेवी बिजनेसमैन इससे जुड़े और अपना सहयोग भी प्रदान करें।

10 लाख शब्द, वाक्य, कहावतें और कहानियां AI मे एकत्र

सच्चिदानंद बताते हैं कि वह राज्य की बोली भाषा को लुप्त होने से बचाना चाहते हैं। इसलिए एआई पोर्टल के माध्यम से गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी भाषाओं के लगभग 10 लाख शब्द, वाक्य, कहावतें और कहानियां AI मे एकत्र करेंगे। एआई प्लेटफार्म द्वारा इन्हें सीखकर आने वाली पीढ़ी अपनी भाषा को आसानी से सीख सकेगी।

सच्चिदानंद के चाचा ने दी इंजीनियरिंग करने की सलाह

बताते चले सच्चिदानंद टिहरी गढ़वाल जिले के मलेथा के रहने वाले हैं। जिन्होंने अपनी इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई अपने गांव से की है। सच्चिदानंद बताते हैं कि गांव से उनका स्कूल 6 किलोमीटर दूर था जिसके लिए वह पैदल स्कूल जाते थे। सच्चिदानंद के दादा और पिता समेत चाचा तीनो ज्योतिषी थे। हालांकि पहाड़ के अधिकांश युवा उस समय फौज और होटल में काम करते थे लेकिन सच्चिदानंद के परिजनों को यह नहीं पता था कि बच्चों को किस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए कहा जाए। हालांकि सच्चिदानंद के चाचा चाहते थे कि वह अन्य लोगों से कुछ अलग करें। इसलिए उन्होंने सच्चिदानंद के करियर को लेकर काफी रिसर्च की। जब सच्चिदानंद ने 12वीं की तो उसके बाद वह बीएससी करने के लिए ऋषिकेश चले गए तब उनके चाचा ने सलाह दी की बीएससी नहीं इंजीनियरिंग करो।

सच्चिदानंद के चाचा ने इंजीनियरिंग के लिए भेजा भोपाल

सच्चिदानंद के चाचा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए उन्हें भोपाल भेजा। इसके बाद सच्चिदानंद ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स किया। वहीं एमसीए की पढ़ाई पूरी करके सच्चिदानंद को केंपस प्लेसमेंट में पहला प्रोजेक्ट दुबई में मिला। जहां पर उन्होंने तीन चार साल तक मिडल ईस्ट और यूरोप की कंपनियों के लिए सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम किया।

दुबई में प्रीतम भरतवाण से हुई थी सच्चिदानंद की मुलाकात

सच्चिदानंद बताते हैं कि दुबई में उनकी मुलाकात उत्तराखंड के लोक गायक प्रीतम भरतवाण से हुई थी। इस दौरान उन्होंने सच्चिदानंद से कहा कि तुम जैसे पढ़े-लिखे युवाओं को अपने राज्य के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। उसे आगे बढ़ाने में सहयोग करना चाहिए। जिस पर सच्चिदानंद ने उनकी बात मानी और उत्तराखंड की सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों में हमेशा खुद को आगे रखा। हालांकि परिवार की तरफ से शादी करने का दबाव बढ़ने लगा तो वर्ष 2008 में सच्चिदानंद ने भारत लौटकर शादी कर ली जिनकी पत्नी आईटी कंपनी में एचआर हैं। उस दौरान सच्चिदानंद विदेशों में प्रोजेक्ट के लिए जाते थे लेकिन उनका बेस इंडिया था।

सच्चिदानंद को विदेश मे मिली सफलता मगर, नही भूले राज्य और देश को

वर्ष 2018 में सच्चिदानंद अपनी पत्नी और बच्चों के साथ स्विट्जरलैंड शिफ्ट हो गये थे। जिसके बाद 2022 में वो यूएस शिफ्ट हुए लेकिन उसी दौरान सच्चिदानंद के पिता का निधन हो गया। फिर वो अपनी मां की देखभाल के लिए पत्नी और बच्चों के साथ देहरादून लौट गए हालांकि सच्चिदानंद अभी भी यूएस में काम कर रहे है। लेकिन छुट्टियों में कभी उनके बच्चे उनके पास चले जाते हैं और कभी सच्चिदानंद समय मिलने पर घर चले जाते है। सच्चिदानंद बताते हैं कि उन्हें विदेश में खूब सफलता मिली लेकिन वह अपने राज्य और देश से गहरा लगाव रखते हैं।

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