Connect with us
Bhriguraj Singh Mehra dwarahat almora Preserves Uttarakhand Jagar Tradition
फोटो देवभूमि दर्शन Bhriguraj Mehra Jagar Preservation

UTTARAKHAND NEWS

उत्तराखंड: धूमिल होती जागर परंपरा को संजो रहे हैं द्वाराहाट के भृगुराज सिंह मेहरा…

Bhriguraj Singh Mehra dwarahat almora Preserves Uttarakhand Jagar Tradition: अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र के रहने वाले हैं भृगुराज, इंजीनियरिंग करने के पश्चात जुटे हैं पहाड़ी सभ्यता संस्कृति को बचाने के प्रयास में….

Bhriguraj Singh Mehra dwarahat almora Preserves Uttarakhand Jagar Tradition: उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर में जागर विधा का विशेष स्थान रहा है। समय के साथ जहाँ यह लोक परंपरा धीरे-धीरे धूमिल होती जा रही है, वहीं कुछ युवा इसे बचाने और नई पीढ़ी तक पहुँचाने के प्रयासों में लगे हैं। अल्मोड़ा जिले के पोस्ट ऑफिस असगोली, तहसील द्वाराहाट के ग्राम गुप्टली निवासी भृगुराज सिंह मेहरा उन्हीं युवाओं में से एक नाम है।

द्वाराहाट इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र रहे हैं भृगुराज

भृगुराज मेहरा इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से हैं, जोकि द्वाराहाट इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र रहे लेकिन उनका रुझान सिर्फ तकनीकी क्षेत्र तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने उत्तराखंड की पारंपरिक संस्कृति, खासकर जागर विधा से जुड़े रोचक तथ्यों को समाज के बीच प्रस्तुत करने का कार्य शुरू किया। उनकी यह पहल न केवल लोककला के संरक्षण की दिशा में सराहनीय है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने की प्रेरणा भी देती है।

पढ़िए देवभूमि दर्शन संवाददाता द्वारा इनके साक्षात्कार के प्रमुख अंश 

भृगुराज लगातार विभिन्न मंचों, सोशल मीडिया और संवाद के माध्यम से जागर की महत्ता और इससे जुड़ी परंपराओं को उजागर कर रहे हैं। उनकी कोशिशें इस तथ्य को सामने लाती हैं कि आधुनिक शिक्षा और तकनीकी पृष्ठभूमि होने के बावजूद यदि कोई युवा अपनी लोक संस्कृति से जुड़ा है, तो वह समाज को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। देवभूमि दर्शन के साथ भृगुराज सिंह मेहरा के एक साक्षात्कार से जुड़े हुए कुछ प्रश्न हम अपने पाठकों के साथ साझा कर रहे हैं।

प्रश्न 1: एक तकनीकी बैकग्राउंड के छात्र होने के बावजूद आप उत्तराखंड की लोक संस्कृति और विशेषकर जागर विधा के संबंध में अधिकतर वीडियो बनाते हैं और जानकारी देते हुए नजर आते हैं ऐसा क्यों?? जबकि आप तो एक अच्छे कॉलेज से निकले और तकनीकी छात्र हैं तो किसी बड़े शहर में बड़ी कंपनी में भी काम कर सकते थे इन सब चीजों को पीछे छोड़कर।

उत्तर:- कुछ मार्ग हम स्वयं नहीं बनाते हैं बल्कि यह ईश्वर आपके लिए पहले से ही निर्धारित कर देते हैं । जिसमें हमारे पूर्वजों का आशीर्वाद और माता-पिता का साथ अवश्य होता है।‌ बिना ईश्वरीय प्रेरणा के कुछ संभव नहीं है , यही कुछ अनुभूति और अलौकिक आभास ही जगत कल्याण एवं भविष्य की नींव रखने के लिए मील का पत्थर साबित होती है। कहते हैं सोने की परख एक जौहरी को ही होती है, ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी उसी को तरासते हैं, जो इस मार्ग के लिए अपना अमूल्य योगदान दे सकें।

प्रश्न 2: क्या आपको लगता है कि आपकी वीडियो और जानकारी के माध्यम से समाज के युवा वर्ग के लिए कुछ विशेष संदेश जा रहा है???
उत्तर:- बिल्कुल जा रहा है क्योंकि जिस तरीके से आज हमारी संस्कृति धीरे-धीरे विकास कर रही है जिसमें से हमारी प्रथाएं आज नई युवा पीढ़ी सीख रही है जो बाहर पलायन कर चुके हैं वह भी हमारी पितृ कुड़ी में आकर उन प्रथाओं को देख रहे हैं देवताओं की कहानी सुन रहे हैं, और हमारे वीडियो और जानकारी को साझा करते हुए एक सुगम मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।

यह भी पढ़ें- उत्तराखंड जागर में अवतरित होने वाले नरसिंह देवता और विष्णु अवतारी नरसिंह में क्या अंतर है??

प्रश्न 3: क्या आपको ऐसा लगता है कि उत्तराखंड की परंपरागत जागर शैली वर्तमान जागर विधा से अलग थी , आप इसे किस नजरिए से भिन्न देखते हैं?

उत्तर:- यह सब गुरु धर्मदास जी और डांगरी लोगों पर निर्भर करता है, क्योंकि आजकल के युग में लोभ लालच और मोह माया भी बढ़ती देखी जा रही है। कई जगहों पर विद्याएं पुराने तरीके से चली आ रही हैं लेकिन कुछ जगहों पर गुरु और डांगरी द्वारा ही गलत तरीके से जगह-जगह पर इसका प्रचार प्रसार होना शुरू हो रहा है। जो अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा भविष्य के लिए घातक सिद्ध होगा। यह विद्याएं हमारी मूल जड़ है अगर इस मूल जड़ को हम मॉडर्न युग से जोड़ना शुरु करेंगे तो यह शक्तिपुंज को खत्म करके सिर्फ नर विद्या को ही दिखाएगा, और नर विद्या में ज्यादातर सिर्फ दिखावा और फरेब मौजूद होता है।

प्रश्न 4:- क्या उत्तराखंड के कुल देवी देवताओं को शहरों में स्थापित करना उचित है? आजकल इसका तेजी से चलन बढ़ गया है। आप इसे किस दृष्टिकोण से देखते हैं?

उत्तर:- बिना गुरु ज्ञान नहीं बिना धूनी ध्यान नहीं
आप अपने देवी देवताओं को कहीं पर भी स्थापित कर सकते हैं लेकिन जगह साफ-सुथरी हो साथ ही साथ उनका पूरा परिवार और गुरु धूनी उनके साथ में विराजमान हो, कोई भी कार्य करने से पहले वह देवी देवताओं के डांगरी से परामर्श लेना आवश्यक है और पूरे कार्य में उनका योगदान बहुत जरूरी है। उसके बाद भी अगर देवी देवता स्थापित हो भी जाते हैं फिर भी आपको अपने पितृ कुड़ी के देवी देवताओं को नहीं भूलना है क्योंकि जो जिस जगह से होता है उसकी मूल जड़ वही होती है चाहे आप देवी देवता कहीं पर भी स्थापित करते हैं। अपनी पितृ कुड़ी के देवी देवताओं के लिए हर साल या 6 महीने में एक बार भोग और जागर की व्यवस्था जरूर करनी चाहिए।

प्रश्न 5 : भविष्य में क्या जागर विधा पूर्ण रूप से विलुप्त हो जाएगी या फिर आधुनिक समाज में भी इसकी प्रासंगिकता बनी रहेगी?? इस पर आप क्या सोचते हैं?
उत्तर:- हर सिक्के के दो पहलू हैं, अगर आप अच्छा करेंगे तो यह भविष्य के लिए अच्छी नींव तैयार करेगा और अगर आप आप बुरा करेंगे तो यह भविष्य में घातक सिद्ध होगा। विधाओं और प्रथाओं का आधुनिकरण हमारी पारंपरिक रीति रिवाज और शक्ति को धूमिल कर रहा है जो हो सकता है भविष्य में विलुप्त हो जाएं।

भृगुराज अपने ऑफिशल यूट्यूब चैनल के माध्यम से और इंस्टाग्राम के माध्यम से जागर विधा से संबंधित वीडियो साझा करते हैं।

यह भी पढ़ें- उत्तराखंड: कुछ युवाओं ने फॉलोवर्स के चक्कर में दांव पर लगा दी अपनी लोक परंपरा ‘जागर’

उत्तराखंड की सभी ताजा खबरों के लिए देवभूमि दर्शन के WHATSAPP GROUP से जुडिए।

👉👉TWITTER पर जुडिए।

More in UTTARAKHAND NEWS

To Top
हिमाचल में दो सगे नेगी भाइयो ने एक ही लड़की से रचाई शादी -Himachal marriage viral पहाड़ी ककड़ी खाने के 7 जबरदस्त फायदे!