anadolu yakası escort - bursa escort - bursa escort bayan - bursa bayan escort - antalya escort - bursa escort - bursa escort -
istanbul escort - istanbul escorts -
ümraniye escort - bursa escort - konya escort - maltepe escort - eryaman escort - antalya escort - beylikdüzü escort - bodrum escort - porno izle - istanbul escort - beyliküdüzü escort - ataşehir escort - van escort -
Connect with us
Uttarakhand news: Garhwal Rifles History Hindi
फोटो: गढ़वाल राइफल्स (भारतीय सेना)

उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड विशेष तथ्य

Garhwal Rifles History Hindi: गढ़वाल राइफल्स का इतिहास है अपने आप में शौर्य और पराक्रम से ओतप्रोत

Garhwal Rifles History Hindi: गढ़वाल राइफल्स का इतिहास है अपने आप में बेहद गौरवशाली पूरे देशभर में छोड़ी जिसने अपनी अमिट छाप

उत्तराखंड की भूमि सदियों से वीरू और वीरांगनाओं की भूमि मानी जाती है। यहां तीलू रौतेली से लेकर गौरा देवी जैसी साहसी वीरांगना के साथ-साथ बलभद्र सिंह नेगी, जसवंत सिंह रावत और वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जैसे स्वतंत्रता सेनानी वीर जवान सदियों से रहते आ रहे हैं। यह भूमि जितनी अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जानी जाती है, उतने ही यह भूमि वीर गाथाएं और अपनी अमर कहानियों के लिए प्रसिद्ध है। आइए आज हम आपको ऐसे ही शौर्य और पराक्रम से भरे देश की सीमा पर तैनात उत्तराखंड के वीर जवानों के साहस, उनके शौर्य और पराक्रम से भरे थल सेना दल गढ़वाल राइफल और उससे जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में बताते हैं ।(Garhwal Rifles History Hindi)

गढ़वाल राइफल्स भारतीय सेना का एक सैन्य दल है जिसकी स्थापना 5 मई 1887 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा तथा बाद में 4 नवंबर 1887 में पौड़ी गढ़वाल के कालोडांडा (लैंसडाउन) में इसकी छावनी स्थापित की गई थी। गढ़वाल राइफल अपनी शौर्य और महान प्रक्रम के लिए जाना जाता है जिसका युद्ध नारा “बद्रीविशाल लाल की जय है“। इसमें गढ़वाल क्षेत्र के वीर नौजवान शामिल होते हैं। गढ़वाल राइफल एक नाम ही नहीं बल्कि दुश्मनों के आगे कभी ना झुकने वाला एक रेजिमेंट रक्षक है, जिसने हर बार अपनी महान साहस और वीरता से दुश्मनों के छक्के छुड़ाए हैं और पूरे देश और विश्वभर में अपनी एक अलग पहचान बनाकर अमिट छाप छोड़ी है। इसे देश के सबसे साहसी, ताकतवर और तेज तरार सेना माना जाता है जिसके खून में दुश्मनों को हर हाल में मार गिराने और देश के लिए मर मिटने का जुनून है।

दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले अपनी मातृभूमि के लिए हर हाल में मर मिटने वाले गढ़वाल राइफल्स के इतिहास के बारे में बात करे तो यह सबसे आजाद होने से पहले जब हमारा देश अंग्रेजों के अधिकार में था, तो उत्तराखंड भी ब्रिटिश सरकार के अधीन आ गया था। तब गढ़वाल राइफल्स बंगाल सेना की 39वीं रेजिमेंट के रूप मे स्थापित थी। सन 1887 में अफगानों के विरुद्ध कंधार का युद्ध हुआ था तो इस युद्ध में उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के वीर बलवान बलभद्र सिंह नेगी जो कि उस समय के बंगाल सेना के 39वीं रेजीमेंट में सम्मिलित थे उनके साहस, वीरता और शानदार प्रदर्शन के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारतीय सैनिकों को दिया जाने वाला सम्मान “ऑर्डर ऑफ मेरिट” और “ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश इंडिया” सम्मान दिया गया। उसके बाद जब बलभद्र सिंह नेगी द्वारा गढ़वाल बटालियन बनाने का प्रस्ताव ब्रिटिश सरकार के सम्मुख रखा गया तो इस युद्ध में उनके साहस, वीरता और युद्ध कौशल से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने इस पर हामी भर दी और साथ ही इस युद्ध में शामिल तत्कालीन कमांडर इन चीफ फील्ड नॉर्मल सर एफ़ एस रॉबर्ट्स ने टिप्पणी करते हुए भी कहा कि जो कॉम बलभद्र सिंह नेगी जैसा वीर सैनिक पैदा कर सकता है उसकी अपनी एक बटालियन तो जरूर होनी चाहिए।

फिर जब भारतीय सैनिकों की एक बटालियन को वर्मा भेजा गया तो इसमें अधिकतर गढ़वाली और गोरखा सैनिक थे। इस युद्ध में गढ़वाली सैनिकों ने फिर अच्छा प्रदर्शन किया जिसके चलते उनका एक अलग बटालियन बनाया गया। तत्पश्चात इस बटालियन का नाम गढ़वाल रायफल्स रख दिया गया। गढ़वाल राइफल्स को अपनी बहादुरी और साहस के लिए कई बार सम्मानित किया जा चुका है। यह देश की सबसे अधिक ब्रेवरी अवार्ड को प्राप्त करने वाली सेना है।

यह भी पढ़िए: कुमाऊं रेजिमेंट भी करता है नमन : कुमाऊं रेजिमेंट और माँ हाट कालिका की विजय गाथा

तो इस प्रकार गढ़वाल राइफल्स की स्थापना हुई। हर बार प्रत्येक युद्ध में गढ़वाली सैनिकों के वीरता, साहस, बहादुरी और वफादारी के चर्चों के बाद 4 नवंबर 1887 में पौड़ी गढ़वाल के कालौडांडा में की गई। बाद में जगह का नाम बदलकर लैंसडाउन रखा गया। अपनी बहादुरी के लिए जाने वाला गढ़वाल राइफल की भूमिका की बात करें तो इसकी भूमिका कई युद्धों में जैसे 1919 में होने वाला प्रथम विश्वयुद्ध , 1939 में होने वाला द्वितीय विश्व युद्ध में, 1965 के भारत–पाकिस्तान युद्ध में, 1962 में होने वाला भारत–चीन युद्ध तथा 1999 पाकिस्तान और भारत के बीच होने वाला कारगिल युद्ध में रही है। जिनमें लगभग गढ़वाल राइफल के 700 से भी ज्यादा नौजवान सैनिक शहीद हुए थे। वर्तमान में गढ़वाल राइफल्स का कार्यालय लैंसडाउन में है जो कि उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में स्थित है। हर बार हजारों की संख्या में गढ़वाली नौजवान इस राइफल्स में भाग लेकर देश के लिए अपना योगदान देते हैं। इस राइफल्स के अंतर्गत उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के 7 जिले चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, पौड़ी गढ़वाल, देहरादून, हरिद्वार और उत्तरकाशी सम्मिलित हैं।

Nikita Negi

UTTARAKHAND NEWS, UTTARAKHAND HINDI NEWS (उत्तराखण्ड समाचार) Devbhoomi Darshan site is an online news portal of Uttarakhand through which all the important events of Uttarakhand are exposed. The main objective of Devbhoomi Darshan is to highlight various problems & issues of Uttarakhand. spreading Government welfare schemes & government initiatives with people of Uttarakhand

More in उत्तराखण्ड

Advertisement

UTTARAKHAND CINEMA

PAHADI FOOD COLUMN

UTTARAKHAND GOVT JOBS

UTTARAKHAND MUSIC INDUSTRY

Lates News

deneme bonusu casino siteleri deneme bonusu veren siteler deneme bonusu veren siteler casino slot siteleri bahis siteleri casino siteleri bahis siteleri canlı bahis siteleri grandpashabet
To Top