उत्तराखंड: प्रेरणादायक है इंदिरा की कहानी, कोरोना में गई नौकरी, ऐपण कला बना स्वरोजगार का माध्यम
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यह सर्वविदित तथ्य है कि राज्य के कुमाऊं-मंडल मे ऐपण का बहुत ही महत्व माना जाता है। किसी भी मांगलिक कार्य, शादी समारोह, या त्यौहार सभी में ऐपण को शुभ माना जाता है। एक समय था जब ऐपण कला महज घर की देहली दरवाजों तक ही सीमित थी लेकिन आज यह स्वरोजगार का भी एक सशक्त माध्यम बन चुका है जिससे एक ओर जहां लोक संस्कृति और लोक कला को तो बढ़ावा मिल ही रहा है वहीं दूसरी ओर इससे स्वरोजगार को भी बढ़ावा मिल रहा है। पहाड़ की कई बेटियां आज कुमाऊं की इस पारम्परिक लोककला के माध्यम से न केवल आत्मनिर्भर बन रही है बल्कि अपने हुनर के बलबूते उन्होंने इसे अपनी आजीविका का एक महत्वपूर्ण साधन बना लिया है। आज हम आपको राज्य की एक और ऐसी ही बेटी से रूबरू कराने जा रहे हैं। जी हां… हम बात कर रहे हैं हमारी इसी ऐपण कला को संजो कर रखने वाली अल्मोड़ा की इंदिरा अधिकारी की जिन्होंने अपनी ऐपण कला को व्यवसाय का जरिया बनाकर न केवल खुद के साथ-साथ अन्य महिलाओं को भी रोजगार का अवसर प्रदान किया है बल्कि वह पहाड़ की अन्य बेटियों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन गई है।
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प्राप्त जानकारी के अनुसार मूल रूप से राज्य के अल्मोड़ा जिले रानीखेत तहसील के मजखाली निवासी इंदिरा अधिकारी नोएडा के एक कॉरपोरेट ऑफिस में कार्यरत थी। बताया गया है कि लॉकडाउन में नौकरी छूट जाने के बाद इंदिरा अपने गांव अल्मोड़ा लौट आई। बता दें कि नौकरी जाने के बावजूद भी इंदिरा ने हिम्मत नहीं हारी बल्कि अपने बचपन की रूचि को अपनाकर अपनी आय का जरिया स्वयं खोज निकाला। इंदिरा को बचपन से ही ऐपण बनाने में रुचि थी। अपनी इस रुचि को इंदिरा ने अपने आय का जरिया बना लिया। उन्होंने अपने साथ-साथ अन्य महिलाओं को भी रोजगार के अवसर प्रदान किए। बताते चलें कि इंदिरा ने मई 2020 में अपने पति भूपेंद्र सिंह अधिकारी के सहयोग से इंद्रा कलारंभ आर्ट्स नामक संस्था की शुरुआत की। अपने साथ-साथ इंदिरा ने 150 अन्य महिलाओं को रोजगार दिया। इंदिरा ने रोजगार के साथ ही जहां एक ओर अपनी विलुप्त होती हुई कुमाऊं की ऐपण संस्कृति को भी बढ़ावा दिया है वहीं दूसरी ओर उन्होंने पारंपरिक ऐपण और होम डेकोर, वाल पेंटिंग आदि को सीधे बाजार और सोशल मीडिया से जोड़कर लोकप्रियता हासिल की है।
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