uttarakhand: देश के विभिन्न राज्यों में जगह-जगह फंसे हैं उत्तराखंडी तो कई राज्य में पहुंचकर भी है अपने घर अपने पहाड़ से दूर..
लाॅकडाउन से हर कोई परेशान हैं कोई घरों में कैद होने को मजबूर हैं तो कोई घर से दूर परदेश में फंसा हुआ है और किसी को शासन-प्रशासन द्वारा सुरक्षा की दृष्टि से रास्ते में क्वारंटाइन किया हुआ है। सबसे ज्यादा कठिन परिस्थिति तो उन लोगो के सामने उत्पन्न हुई है जो रोजगार की तलाश में अपने घर-अपने पहाड़ से कोशो दूर गए थे। उनकी परिस्थिति ऐसी है न तो आज रोजगार ही बचा और ना ही घर तक वापस आने का कोई रास्ता। ऐसी ही एक तस्वीर नैनीताल जिले के हल्द्वानी से सामने आ रही है जहां विभिन्न राज्यों से आए पहाड़ के करीब 400 लोगों को प्रशासन द्वारा स्टेडियम में रखा गया है। ये सभी वे लोग हैं जो अपने घर-परिवार-पहाड़ से दूर रोजगार की तलाश में गए थे और लाॅकडाउन होने के कारण जब कोई काम-धंधा नहीं बचा अपने घर-परिवार की याद इन्हे अपने पहाड़ की ओर खींच लाई परन्तु प्रशासन ने इन्हें सुरक्षा की दृष्टि से हल्द्वानी में ही रोक लिया। अब इन सभी को स्टेडियम में अपने पहाड़ की यादें सता रही है। इनमें से कुछ युवा तो अब हैरान और परेशान होकर यह कहने को मजबूर हैं कि “आब कभै निजूं आपण पहाड़ छोड़ि भेर, आब वाई के करी बेर पाली ल्यूण आपणू परिवार“
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सभी जिलों में प्रशासन द्वारा बनाए गए हैं राहत सेंटर, हल्द्वानी में रखें गए है 400 लोग:-
बता दें कि राज्य के हर जिले में ऐसे सभी मजदूरों और प्रवासियों के लिए राहत शिविरों में रहने-खाने की व्यवस्था प्रशासन द्वारा की गई है जो या तो उस जिले को छोड़कर अपने राज्य को जा रहे थे या फिर दूसरे राज्यों से आकर अपने पहाड़ जाने की सोच रहे थे। हर जिले की तरह ही राज्य के नैनीताल जिले के हल्द्वानी में भी यह व्यवस्था की गई है, यहां स्पोर्ट्स स्टेडियम और एमबी इंटर कॉलेज में बनाए राहत सेंटरों में करीब 400 लोगों को रखा गया है। इनमें से कुछ बस से उतरकर पहाड़ जाने के लिए दूसरी गाड़ी की राह देख रहे थे। तो कोई पैदल ही गांव को जाने वाला रास्ता नाप रहा था। यहां मौजूद लोगों के चेहरों पर दर्द की अलग-अलग लकीरे थी। सभी अपनों से दूर रोजी-रोटी की तलाश में बड़े शहरों की तरफ तो गए लेकिन मौजूदा हालात में वहाँ ठहरना मुश्किल हो गया था ऐसे में इनमें से अधिकांश लोग अपने पहाड़ को लौट रहे थे। इनमें नैनीताल जिले के पदमपुरी निवासी दीपक, अल्मोड़ा लमगड़ा निवासी नरेंद्र एवं पिथौरागढ़ के कई अन्य कई युवा भी थे जो आपस में बात करके अपना दुःख-दर्द बांटते हुए कहते हैं कि आब कभै निजूं आपण पहाड़ छोड़ि भेर, आब वाई के करीब बेर पाली ल्यूण आपणू परिवार’ अर्थात अब अपने घर-पहाड़ को छोड़कर कभी नहीं जाएंगे, अब जब भी यहाँ से गांव पहुँचेंगे तो वहीं छोटा-मोटा कोई भी काम करके परिवार को पाल लेंगे।
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