Almora dairy farm: समाज के तानों को दरकिनार कर लिखी स्वरोजगार की नई दास्तां, महानगरों की नौकरी की छोड़ गांव में शुरू किया गौ—पालन, गाय के गोबर से धूप निर्माण के प्रोजेक्ट पर भी कर रहे हैं काम…
Almora dairy farm
जहां एक ओर राज्य के अधिकांश युवा रोजगार की तलाश में बड़े शहरों का रूख कर रहे हैं वहीं राज्य के कुछ होनहार युवा ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत लगन के बलबूते न केवल स्वरोजगार की राह अपनाई है बल्कि यह इससे अपने परिवार का भरण पोषण करने के साथ ही राज्य के अन्य युवाओं के लिए भी प्रेरणास्रोत बनकर उभरे हैं। आए दिन हम आपको स्वरोजगार के प्रेरणास्रोत ऐसे युवाओं से रूबरू कराते रहते हैं आज हम आपको स्वरोजगार की ऐसी ही एक और अलग जगाने वाले दो उच्च शिक्षित युवाओं से रूबरू कराने जा रहे हैं जिन्होंने न केवल अपने शुरुआती दौर में समाज के तानों को नजरंदाज कर अपने लक्ष्य पर फोकस किया बल्कि अपने सपनों को हकीकत में बदलकर आलोचना करने वाले लोगों को भी करारा जवाब दिया है। जी हां… हम बात कर रहे हैं मूल रूप से राज्य के अल्मोड़ा जिले के अल्मोड़ा जनपद के हवालबाग विकासखंड अंतर्गत रैलाकोट गांव निवासी नवजोत जोशी और वेदांत गोस्वामी की, जिन्होंने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ कर गौ पालन का कार्य शुरू किया और अपनी कड़ी मेहनत के बलबूते आज प्रतिदिन करीब 100 लीटर दूध का उत्पादन कर रहे हैं।
(Almora dairy farm)
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Uttarakhand Self Employment
आपको बता दें कि नवजोत जोशी और वेदान्त गोस्वामी की यह जोड़ी दूध के साथ ही देशी घी भी बना रहे हैं। उनकी शानदार सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जहां देशी घी के लिए लोग उनके यहां एडवांस बुकिंग करा रहे हैं वहीं यह दोनों होनहार युवा गाय के गोबर से धूप निर्माण के प्रोजेक्ट पर भी कार्य कर रहे हैं। सबसे खास बात तो यह है कि उनका यह स्वरोजगार महज एक वर्ष में इस मुकाम पर पहुंचा है कि आज वह अपनी आजीविका अच्छे से चलाने के साथ ही क्षेत्र के अन्य लोगों को भी रोजगार मुहैया करा रहे हैं। बात स्वरोजगार की अलख जगाने वाले इन दोनों होनहार की करें तो नवजोत जोशी ने जहां उच्च शिक्षित होने के साथ ही मास कम्यूनिकेशन एवं समाज शास्त्र, योग व अर्थशास्त्र से एमए भी किया हैं। वहीं वेदांत गोस्वामी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा—दिक्षा रानीखेत से प्राप्त करने के उपरांत अल्मोड़ा से एम कॉम की डिग्री हासिल की तदोपरांत उन्होंने दिल्ली से लगे गुरुग्राम में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कई सालों तक कार्य किया। गौ पालन को स्वरोजगार के रूप में अपनाने की बात पर वह कहते हैं कि कोई भी काम छोटा नहीं होता। यदि आप हिम्मत करें तो अपने घर में ही पशु पालन से आय के स्रोत बढ़ा सकते हैं। वह कहते हैं कि गौ—पालन से जहां एक ओर गौ—सेवा का कार्य होता है, वहीं आपके लिए अपने ही घर में यह रोजगार का एक बड़ा जरिया भी बन सकता है।(Almora dairy farm)
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dairy farm employment
बताते चलें कि अच्छी खासी नौकरी और सैलरी होने के बावजूद वेदांत का मन सदैव अपने पहाड़ अपने गांव में ही रमा रहता था। वह अपने गांव अपने पहाड़ में ही रहकर कुछ करना चाहते थे। अपने दोस्त नवजोत को जब वेदान्त ने अपने दिल की बात बताई तो नवजोत ने इन्हें सुझाव दिया कि क्यों न गांव में गाय पालें और इसी को अपने रोजगार बना लें। वेदांत को नवजोत का यह सुझाव पसन्द आया, जिसके बाद दोनों ने इस दिशा में अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए। सर्वप्रथम उन्होंने गांव के पुराने भवन की मरम्मत कराई। फिर करीब पांच नाली भूमि को गौ—पालन के लिए चुन लिया। अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए नवजोत बताते हैं कि इन्होंने पहले एक गाय से शुरुआत की। इसी बीच उन्हें एक अन्य बीमार गाय भी कहीं से मिल गई जिस पर वह उसे अपने घर रैलाकोट ले आये। जिस पर क्षेत्र के तमाम लोगों ने यह कहकर उनका मजाक भी उड़ाया कि बीमार गाय को गढ्ढे में दफ़नाने के लिए लाये है। इसके साथ ही लोगों द्वारा उनकी हिम्मत को तोड़ने के लिए यह बात तक कहीं गई कि गौ—पालन में कुछ नहीं रखा। बावजूद इसके नवजोत और वेदान्त के बुलंद हौसले नहीं टूटे और न केवल बीमार गाय की सेवा पूरी ईमानदारी से की। जिससे यह अस्वस्थ गाय भी फिर पूरी तरह स्वस्थ हो गई। बल्कि गौ—वंश में वृद्धि होने से वर्तमान में उनके पास 10 दुधारू गायें और 08 बछिया हैं।
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