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Neeraj jukaria became a govt teacher after 14 years returned home jhulaghat Pithoragarh success story uttarakhand latest news today
Image : social media ( Neeraj jukaria teacher Pithoragarh)

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पिथौरागढ़: नीरज जुकरिया बने सरकारी शिक्षक 14 साल पहले लिया था प्रण वनवास खत्म कर लौटे घर

Neeraj jukaria teacher Pithoragarh  : सरकारी नौकरी पाने के लिए नीरज जुकरिया ने भोगा वनवास, शिक्षक बन प्रण किया पूरा, अब दिवाली पर घर लौटे नीरज, ग्रामीणों में खुशी की लहर… 

Neeraj jukaria became a govt teacher after 14 years returned home jhulaghat Pithoragarh success story uttarakhand latest news today  : उत्तराखंड के मेहनतकश युवाओं के जज्बे और काबिलियत की हमेशा से एक अनोखी कहानी रही है। जिनके जज्बे से न सिर्फ उनके परिजन बल्कि प्रदेश के अन्य लोग भी उन पर बेहद गर्व महसूस करते हैं। ऐसी ही कुछ अनोखी कहानी है पिथौरागढ़ जिले के नीरज जुकरिया की जिन्होंने यह प्रण लिया था कि जब तक उनकी सरकारी नौकरी नहीं लगेगी तब तक वह गांव नहीं जाएंगे। इस प्राण को पूरा करने के लिए नीरज को काफी समय लगा। हालांकि आखिरकार नीरज की 14 वर्षों की कड़ी मेहनत रंग लाई और अब वो शिक्षक बन वापस अपने गांव लौटे हैं।

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अभी तक मिली जानकारी के अनुसार सीमांत जिले पिथौरागढ़ के झूलाघाट के निवासी नीरज जुकरिया ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू की लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। जिससे आहत होकर उन्होंने करीब 35 किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने का निर्णय लिया। इतना ही नहीं बल्कि वर्ष 2011 मे नीरज ने संकल्प लिया कि था की जब तक उनकी सरकारी नौकरी नहीं लग जाती तब तक वह वापस अपने गांव नहीं लौटेंगे। आखिरकार नीरज की कड़ी मेहनत और लगन रंग लाई जिसकी बदौलत वो वर्तमान में पौड़ी गढ़वाल के एक प्राथमिक स्कूल में बतौर सहायक अध्यापक सेवाएं दे रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि अपने सरकारी शिक्षक बनने के प्रण को पूरा करने के पश्चात नीरज लंबे समय बाद अपने गांव वापस लौटे। इस दौरान उनके परिजनों समेत समस्त ग्रामीणों की आंखें भी खुशी से छलक उठी। दिवाली से पहले नीरज के घर लौटने व शिक्षक बनने की खुशी में ग्रामीणों ने जमकर आतिशबाजी करते हुए खूब जश्न मनाया।

बिना शिक्षक बने गांव न लौटने का लिया था नीरज ने प्रण, माता -पिता जाते थे बेटे को मिलने

नीरज बताते हैं कि जब वह परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे ,तब वो अपने प्रण के कारण बीच में गांव तक नहीं गए। यदि जब कभी उनके पिता रेवाधर जुकरिया और माता देवकी से मिलना होता था तो वह दोनों स्वयं पिथौरागढ़ आया करते थे। इसके अलावा फोन पर ही वह अपने माता-पिता से बात किया करते थे।

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