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Uttarakhand news: Phool Dei festival Uttarakhand celebration method childern with flowers
Image : सांकेतिक फोटो ( Phool Dei festival Uttarakhand)

UTTARAKHAND NEWS

उत्तराखंड में फुलदेई( phooldei) त्यौहार क्यों मनाया जाता है? जानिए विशेष तथ्य….

Phool Dei festival Uttarakhand   : चैत्र संक्रांति को मनाया जाने वाला विशेष पर्व माना जाता है फूलदेई, रंग बिरंगे फूलों से बच्चे सजाते है लोगों की घर की दहलीज….               Phool Dei festival Uttarakhand : उत्तराखंड अपनी लोक संस्कृति लोक परंपराओं के लिए देशभर में जाना जाता है यहां की संस्कृति देश समेत विदेश के प्रत्येक नागरिक को अपनी ओर आकर्षित करती है। खासकर उत्तराखंड में मनाए जाने वाले लोकपर्व लोगों के लिए बेहद खास होते है क्योंकि इन त्योहारों को लोग उत्साह के साथ एकजुट होकर मानते हैं। ऐसा ही कुछ महत्वपूर्ण लोकपर्व माना जाता है फूलदेई जो चैत्र मास की संक्रांति को मनाया जाता है। यानी हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास ही हिंदू नववर्ष का पहला महीना होता है और इसी दिन से नए साल की शुरुआत मानी जाती है। दरअसल फूलदेई का त्योहार बच्चों द्वारा मनाया जाता है जिसमें सभी छोटे बच्चे त्योहार शुरू होने से एक दिन पहले रंग बिरंगे फूलों को तोड़कर लाते हैं तथा अगली सुबह लोगो के घरों की दहलीज पर जाकर इन फूलों को रखते हैं।यह भी पढ़े :UTTARAKHAND : HAPPY PHULDEI फुलदेई की शुभकामनाएं PHOOLDEI FESTIVAL IMAGE

बता दें फूलदेई से जुड़ी कई सारी पौराणिक कथाएं हैं जिनमें से एक कथा यह भी है कि बहुत समय पहले पहाड़ों में घोघाजीत नाम के एक राजा रहते थे जिनकी एक पुत्री थी जिसका नाम घोघा था। ऐसा कहा जाता है कि घोघा प्रकृति प्रेमी थी जो एक दिन घर से अचानक लापता हो गई जिसके चलते उसके पिता यानी राजा घोघाजीत उदास रहने लगे। इसके बाद वे अपनी उदासी लिए मन्दिर पहुँचे जहाँ पर उनकी कुलदेवी ने उन्हें सुझाव दिया कि राजा गांव भर के बच्चों को बसंत चैत्र की अष्टमी पर बुलाए और बच्चों से फ्योंली बुरांश जैसे रंग बिरंगे सौगंधिक पुष्प अपनी देहरी पर रखवाए ऐसा करने पर उनके घर में खुशहाली आएगी तत्पश्चात राजा ने ऐसा ही किया और तब से लेकर आज तक फूलदेई का त्यौहार मनाया जाता है। बताते चलें उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में चैत्र संक्रांति से इस पर्व की शुरुआत हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि कुमाऊं मंडल के लोग इस त्यौहार को 8 दिन तक मानते हैं जबकि गढ़वाल मंडल के अधिकांश हिस्सों में यह पर्व एक महीने तक चलता है। पर्व के दौरान बच्चे लोकगीत गाते हैं फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार, ये देली स बारंबार नमस्कार’ जिसका अर्थ है भगवान देहरी के इन फूलों से सबकी रक्षा करें और घरों में अन्न के भंडार कभी खाली न होने दें। आपको जानकारी देते चलें फूलदेई त्योहार के अंतिम दिन सभी लोग बच्चों को चावल मिठाई टाफी गुड और भेंट मे रुपये प्रदान करते हैं। विशेष रूप से बच्चों को इसी अंतिम दिन का इंतजार होता है क्योंकि उस समय उनकी अच्छी खासी कमाई हो जाती है। हालांकि धीरे-धीरे अब यह पर्व भी फीका पड़ने लगा है क्योंकि पहले की तुलना में अब बच्चों मे इस त्यौहार को लेकर इतनी रुचि नहीं रही है जितनी पहले रहती थी। एक समय था जब बच्चों को इस त्यौहार का बेसब्री से इंतजार रहता था इतना ही नहीं बल्कि बहुत सारे बच्चों की टोलियां लोगों के घरों में फूल डालने के लिए जाया करती थी।

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