martyr commander Captain Nishant dehradun: बलिदानी निशांत की मां के पास नहीं जीवन जीने का कोई सहारा, ना ही कमाई ना ही कोई जरिया, बहू अपने पति निशांत की सभी यादें अपने साथ ले गई…..
martyr commander Captain Nishant dehradun: गौरतलब हो कि इन दिनों कीर्ति चक्र से सम्मानित शहीद कैप्टन अंशुमान का मामला सुर्खियों में बना हुआ है। जिनके माता-पिता का दर्द सुनकर हर कोई भाव विहीन है। ऐसा ही कुछ दर्द है राजधानी देहरादून की प्रोमिला सिंह का जिनका अपने पति से तलाक़ होने के बाद उनकी जीवन की हर उम्मीद अपने कमांडर बेटे निशांत से थी मगर भगवान ने उनकी आखिरी इस उम्मीद को भी उनसे दूर कर लिया। दरअसल निशांत एयरक्राफ्ट क्रैश के दौरान ट्रेनी पायलट को बचाने के चलते शहीद हो गए थे। उनकी शादी को महज 4 माह हुए थे उनकी पत्नी निशांत की सभी यादें लेकर चली गई इतना ही नहीं बल्कि पेंशन का पूरा लाभ भी सिर्फ बहू को दिया जाता है जिसके चलते निशांत की मां के पास जीवन जीने का कोई सहारा नहीं बचा है ना ही उनके पास कोई कमाई का जरिया है। 68 वर्षीय प्रोमिला देवी का कहना है कि अंशुमान के माता-पिता की आवाज जायज है बलिदानी बेटे की पेंशन में माता-पिता को भी अंश मिलना चाहिए। ऐसे अगर हर मां की उपेक्षा हुई तो तब कोई भी मां अपने बेटे को सेना में नहीं भेजेगी ।
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uttarakhand martyr captain Nishant बता दें नौसेना कमांडर यशवीर सिंह के बेटे कमांडर निशांत ने अपने पिता के नक्शे कदमों पर चलते हुए गोवा और विशाखापट्टनम में नेवी चिल्ड्रन स्कूल से पढ़ाई की तत्पश्चात उन्होंने नौसेना के करियर में नींव रखी थी और एक जुलाई 2008 को मात्र 22 साल की उम्र में वह भारतीय नौसेना में कमीशन हुए थे। दरअसल देहरादून सहस्त्रधारा रोड पर गंगागंज अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर बी 302 में प्रवेश करते ही कमरे की दीवारें नौसेना कमांडर निशांत सिंह के शौर्य पुरस्कारों से सजी हुई है। जो उनकी मां प्रोमिला देवी की एकमात्र जमा पूंजी है जिसके सहारे वह जी रही हैं। निशांत की 68 वर्षीय बुजुर्ग मां कहती है कि उनका बेटा युवा पायलट को भी ट्रेनिंग देता था। वर्ष नवंबर 2020 में वह मिग 29 एयरक्राफ्ट क्रैश उड़ान पर था तथा अरब सागर में उनका प्लेन क्रैश हो गया जिसके चलते उनका बेटा शहीद हो गया।
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uttarakhand martyr commender Nishant बता दें कि भारतीय नौसेना के कमांडर निशांत सिंह को मरणोपरांत नौसेना पदक से नवाजा गया था। उनके बेटे निशांत की शादी को नायाब रंधावा के साथ 4 महीने ही हुए थे कि तब तक बेटे का बलिदान हो गया। बेटे के बलिदान के बाद उनकी बहु को एक लाख 80 हजार रुपए पेंशन मिलती है जिसमें से निशांत की मां को कुछ भी नहीं मिलता। उनका कहना है कि मैंने अपने बेटे का 35 साल तक पालन पोषण किया उसे सेना में भेजा लेकिन बावजूद इसके उसकी पेंशन तक पर मेरा कोई अधिकार नहीं है। इसके लिए वह रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी मिली और अपनी पीड़ा बताई जिस पर उन्होंने भरोसा दिलाया था कि उनकी मदद की जाएगी लेकिन अब तक कोई मदद नहीं हो सकी। प्रोमिला का कहना है कि उनके बेटे के बलिदान के बाद बहु उनका हाल तक पूछने नहीं आई। प्रोमिला देवी गर्दिश में दिन गुजार रही है जिनका ध्यान उनके गरीबी लोग रखते हैं वह बताती हैं कि तलाक के दौरान उनके बेटे ने पिता से गुजर बता नहीं लेने दिया था इसलिए उनके पास आय कोई स्रोत नहीं है। उनका कहना है कि बेटे की पेंशन पर 50% हिस्सा मां को मिलना चाहिए ताकि स्वाभिमान के साथ वह जीवन यापन कर सके इसके साथ ही सैन्य अस्पतालों में भी उपचार की सुविधा दी जाए।
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पिछले वर्ष 19 जुलाई को सियाचिन ग्लेशियर में जवानों की जान बचाते हुए कैप्टन अंशुमान शहीद हो गए थे जिनकी वीरता और शौर्यता के लिए पिछले दिनों राष्ट्रपति ने मरणोपरांत उनकी पत्नी स्मृति को कीर्ति चक्र प्रदान किया था। बेटे की जाबांजी पर मिले कीर्ति चक्र को उनकी मां मंजू सिंह केवल छु सकी जबकि उनके पिता रवि प्रताप सिंह तो उस चक्र को देख तक नहीं सके क्योंकि उनकी बहू स्मृति उनके बेटे की सारी यादों को समेट कर मायके चली गई। अंशुमान के पिता ने स्मृति को कई बार फोन किया लेकिन स्मृति ने कोई जवाब नहीं दिया और ना ही फोन उठाया। कैप्टन अंशुमान सिंह के पिता रवि प्रताप सिंह सेना मे सेवा दे चुके है। उन्होंने बताया कि बेटे की शादी 5 माह पहले ही धूमधाम से कराई थी। अंशुमान की बहन नोएडा में बीडीएस की पढ़ाई कर रही थी जिसके चलते शादी के बाद स्मृति भी उनके पास नोएडा जाकर रहने लगी लेकिन जैसे ही अंशुमान की शहीद होने की खबर उन्हें मिली तो उन्होंने अपनी बेटी और बहू स्मृति को नोएडा से लखनऊ बुलाया और गोरखपुर में कैप्टन अंशुमान का अंतिम संस्कार किया गया। इसके तुरंत बाद उनकी बहू स्मृति 13वीं के अगले ही दिन वापस घर जाने की जिद करने लगी और अपनी मां के साथ नोएडा चली गई। इतना ही नही बल्कि नोएडा में अंशुमान की तस्वीर शादी के एल्बम सर्टिफिकेट कपड़े और सभी सामान लेकर ससुराल छोड़ गई। कीर्ति चक्र मिलने के बाद अंशुमान की मां ने अधिकारियों के कहने पर फोटो खिंचवाई और इसके बाद स्मृति कीर्ति चक्र लेकर अपने साथ चली गई उनके पिता का कहना है की बहू स्मृति ने बेटे के स्थाई पते को बदल दिया है।