बच्चों और प्रकृति से जुड़ा उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई का विशेष महत्व PHULDEI FESTIVAL
फूल देई…..छम्मा देई
देणी द्वार….भर भकार…
उसके बाद घर के मालिक द्वारा बच्चों को चावल, गुड़, भेंट या अन्य उपहार देते हैं जिसे पाकर बच्चे बहुत प्रसन्न होते हैं, भेंट के रूप में मिले चावल और गुड़ के बच्चों के लिए अनेक पकवान बनाए जाते है।
फूलदेई त्योहार में द्वारपूजा के लिए एक जंगली पीले फूल का इस्तेमाल होता है, जिसे “प्योली” कहते हैं। इस फूल और फूलदेई के त्योहार को लेकर उत्तराखंड में कई लोक कथाएं मशहूर हैं। जिनमें से एक लोककथा कुछ यूं है ,जो कि प्योली के पीले फूलों से जुड़ी हैं, कहा जाता हैं कि प्राचीन काल में एक वनकन्या थी, जिसका नाम था प्योली। प्योली जंगल में रहती थी। जंगल के पेड़ पौधे और जानवर ही उसका परिवार भी थे, जिसकी वजह से जंगल और पहाड़ों में हरियाली और खुशहाली थी। एक दिन दूर देश का एक राजकुमार जंगल में आया। प्योली को राजकुमार से प्रेम हो गया। उसने राजकुमार से शादी कर ली और पहाड़ों को छोड़कर उसके साथ महल चली गई।
प्योली के जाते ही पेड़-पौधे मुरझाने लगे, नदियां सूखने लगीं और पहाड़ बरबाद होने लगे ओर उधर महल में प्योली भी बहुत बीमार रहने लगी। उसने राजकुमार से उसे वापस पहाड़ छोड़ देने की विनती की, लेकिन राजकुमार उसे छोड़ने को तैयार नहीं था…और एक दिन प्योली मर गई। मरते-मरते उसने राजकुमार से प्रार्थना की, कि उसका शव पहाड़ में ही कहीं दफना दे।