Uttarakhand Rawat Caste: उत्तराखंड में कौन हैं रावत क्या है इनका इतिहास?
Uttarakhand Rawat Caste: क्या है उत्तराखंड में रावत जाति का इतिहास जानिए कुछ विशेष रोचक तथ्य
आपने उत्तराखंड और इसके इतिहास के बारे में तो सुना और पढ़ा ही होगा। पर क्या आपने कभी सोचा है कि उत्तराखंड में निवास करने वाली विभिन्न जातियां जैसे नेगी, बिष्ट, असवाल, पंवार, पटवाल, ममगाईं और रावत जैसी जातियों का इतिहास क्या है और ये जातियां उत्तराखंड में कैसे आयी। तो चलो आज इन्हीं जातियों में से हम आपको उत्तराखंड के रावत जाति के बारे में बताएंगे कि उत्तराखंड की रावत जाति का इतिहास क्या है। साथ ही ये जाति कहां से उत्तराखंड में आयी है और इस जाति की विशेषता क्या है।(Uttarakhand Rawat Caste)
रावत जाति तीन शब्दों से मिलकर बना है। रा -राजपुताना, व-वीर, त-तलवार जिसका सीधा अर्थ है बलशाली, पराक्रमी और किसी के सामने घुटने न टेकने वाले शूरवीर। जानकारों के अनुसार तलवारों के जो धनी होते हैं वो राजपूत रावत कहलाते हैं। रावत शब्द का उद्गम राजपूत शब्द से ही हुआ है जिस कारण राजपूत ही रावत जाति कहलाती है। इतिहासकार कहते हैं कि रावत जाति, जाति न होकर रावतों को मिली एक उपाधि है जो उस जमाने मे 10 हाथियों की सेना से मुकाबला करने वाले राजपूत शुरवीरों को दी जाती थी। रावतों को योद्धा शूरवीरों , और आजाद ख्यालों का माना जाता है जो किसी के आगे कभी नहीं झुकते। इतिहासकारों के अनुसार रावत जाति उत्तराखंड में सर्वप्रथम राजस्थान से आयी थी। रावतों के बारे में कहा जाता है कि ये मूलतः राजस्थान के राजपूताना परिवार आए हुए राजपूत हैं। लेकिन कुछ विद्वानों के अनुसार उत्तराखंड में रावत विभिन्न राज्यों से आए हुए राजपूत जाति है जो बाद में सब मिलकर अपने नाम के आगे रावत लगाने लगे और और रावत जाति के लोग कहलाने लगे। इस प्रकार कहा जा सकता है कि उत्तराखंड में बसने वाले विभिन्न प्रांतों से आए राजपूत ही बाद में रावत कहलाएं। रावत जाति के लोग कत्यूरी राजवंशों के समय में उत्तराखंड आए और यहां के पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल और चमोली गढ़वाल में आकर बसे गए और बाद में यही राजपूत रावत कहलाने लगे। इन राजपूत रावतों की बात करे तो ये महान पराक्रम हासिल किए सूरवीर योद्धा थे जो राजा के सेना में शामिल रहते थे। गढ़वाल के 52 गढ़ो में से कई गढ़ जैसे मुंगरा गढ़, रवाई गढ़, रामी गढ़, और कांडा गढ़ में कभी रावत जाति का ही राज रहा है।
वर्तमान में उत्तराखंड में 20 प्रकार के रावत जाति के लोग रहते हैं जिनमे से आज 40 प्रतिशत रावत जाति उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में देखने को मिलती हैं। वर्तमान में सबसे अधिक रावत जाति पौड़ी गढ़वाल के क्षेत्र में निवास करती है।20 प्रकार की रावत जाति
दिकोला रावत :- दिकोला रावत जिनकी पूर्व वंश मराठा है। ये महाराष्ट्र से सन 415 में गढ़वाल के दिकोली गांव में आकर बसे थे।
रिंगवाड़ा रावत :- ये कैंत्यूरा वंश के वंशज माने जाते हैं। जो कुमाऊं से सन 1411 में गढ़वाल आए। इनका प्रथम आगमन रिंगवाड़ी गांव में माना जाता है।
गोर्ला रावत:- ये पंवार वंश के वंशज माने जाते हैं जो गुजरात से सन 817 में गढ़वाल आए। इनका प्रथम गांव गुराड़ माना जाता है।
बंगारी रावत :- बंगारी रावत बांगर से सन 1662 में गढ़वाल आए थे।
बुटोला रावत :- ये तंअर वंश के वंशज हैं। ये दिल्ली से सन 800 में गढ़वाल आए।
मन्यारी रावत :- इनके मूल स्थान की जनकारी इतिहास में देखने को नहीं मिलती है। मगर ये लोग गढ़वाल की मन्यारस्यूं पट्टी में बसने के कारण मन्यारी रावत कहलाए।
जयाड़ा रावत :- ये दिल्ली के समीप किसी अज्ञात स्थान से गढ़वाल में आए थे। गढ़वाल में इनका प्रथम गढ़ जयाड़गढ़ माना जाता है।
जवाड़ी रावत :- इनका प्रथम गांव जवाड़ी गांव माना जाता है।
परसारा रावत :- ये चौहान वंश के वंशज हैं जो सन 1102 में ज्वालापुर से आकर सर्वप्रथम गढ़वाल के परसारी गांव में आकर बसे।
फरस्वाण रावत :- मथुरा के समीप किसी स्थान से ये सन 432 में गढ़वाल आए। इनका प्रथम गांव गढ़वाल का फरासू गांव माना जाता है।
कयाड़ा रावत :- इन्हें पंवार वंश का वंशज माना जाता है। ये सन 1453 में गढ़वाल आए।
बुटोला रावत :- ये तंअर वंश के वंशज हैं। ये दिल्ली से सन 800 में गढ़वाल आए थे।
गविणा रावत :- इन्हें भी पंवार वंश का वंशज माना जाता है। गवनीगढ़ इनका प्रथम गढ़ था। मसोल्या रावत :- पंवार पूर्व जाति के वंशज मसोल्या रावत धार के मूल निवासी हैं जो गढ़वाल में बसे हैं।
लुतड़ा रावत :- ये चौहान वंश के वंशज हैं जो सन 838 में लोहा चांदपुर से गढ़वाल आए। इनमें पुराने राजपूत ठाकुर आशा रावत और बाशा रावत थोकदार कहलाते थे।
कठेला रावत :- कठेला रावत राजपूत जाति के बारे में इनका मूल वंश कठौच/कटौच और गोत्र काश्यप है और ये कांगड़ा से गढ़वाल में आकर बसे हैं। ऐसा माना जाता है कि इनका गढ़वाल राजवंश से रक्त सम्बंध रहा है। इनकी थात की पट्टी गढ़वाल में कठूलस्यूं मानी जाती है। कुमाऊं के कठेला थोकदारों के गांव देवाइल में भी ‘कठेलागढ़’ था।
तेरला रावत :- ये गुजड़ू पट्टी के थोकदार माने जाते हैं।
मवाल रावत :- गढ़वाल में इनकी थात की पट्टी मवालस्यूं मानी जाती है। इनका मूल निवास नेपाल तथा ये कुंवर वंश के माने जाते हैं।
दूधाधारी रावत :- ये बिनोली गांव, चांदपुर के निवासी माने जाते हैं।
मौंदाड़ा रावत :- ये पंवार वंश के वंशज हैं जो सन 1405 में गढ़वाल में आकर बसे।
इस प्रकार कई राज्यों और प्रांतों से आए क्षत्रिय, राजपूत गढ़वाल में आकर रावत कहलाए। रावत जाति का इतिहास बड़ा गौरवशाली रहा है जो शान–बान से जीते थे। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि रावत जाति अपने पराक्रम और वीरता के लिए जाने जाते है। ठीक उसी प्रकार वर्तमान समय में भी उत्तराखंड में रावत जाति ही सबसे अधिक है और कई प्रकार के कार्यों से एक शूरवीर और किसी के सामने घुटने ना टेकने वाली पहचान दे रहे हैं। इन शूरवीरों में से अपने जसवंत सिंह रावत जो कि एक भारतीय सैनिक थे, अपने साहस और पराक्रम के लिए आज पूरे विश्व में जाने जाते हैं। उनके प्राण गए लेकिन दुश्मनों के सामने उन्होंने घुटने नहीं टेके और अपनी वीरता का परिचय देते हुए सभी दिलों में अमिट छाप छोड़ी। ऐसे ही कई अन्य नाम जैसे जनरल विपिन रावत जो कि देश के प्रथम भारतीय सैन्य अधिकारी थे जिनके वीरता के चर्चे पूरे देश में थे। इसी क्रम में नैन सिंह रावत जो कि एक पर्वतारोही थे। इसके अलावा और अन्य नाम है जिनके वीरता की कहानी तो आपने सुनी ही होगी। इस प्रकार कह सकते हैं कि रावत जाति के लोग पहले की भांति ही आज भी अपने वीरता और साहस का परिचय देते आ रहे हैं।