विशुंग गांव के पवन फर्त्याल बने भारतीय नौसेना (Indian Navy) में सब लेफ्टिनेंट, गौरवान्वित हुआ उत्तराखंड
देवभूमि उत्तराखण्ड के वाशिंदे न केवल हमेशा से सेना में जाकर देश सेवा करने को लालायित रहते हैं बल्कि समय-समय पर देश की सीमाओं में तैनात रहकर अपने अदम्य साहस एवं वीरता का प्रदर्शन भी करते रहते हैं। इसी कारण बात जब भी देश की सेनाओं, सैनिकों के अदम्य साहस एवं वीरतापूर्ण कार्यों की होती है तो देवभूमि उत्तराखंड का नाम देश के साथ ही विदेशों में भी बड़े गर्व के साथ लिया जाता है। समय-समय पर आने वाली राज्य के होनहार युवाओं के सेना में भर्ती होने की खबरें न केवल उनके परिवारों को गौरवान्वित करती है बल्कि समूचे उत्तराखंड का मान भी बढ़ाती है। आज हम आपको राज्य के एक और ऐसे ही होनहार युवा से रूबरू कराने जा रहे हैं जो चार वर्ष के कठिन प्रशिक्षण के बाद भारतीय नौसेना (Indian Navy) में सब लेफ्टिनेंट बन गए हैं। जी हां.. हम बात कर रहे हैं मूल रूप से राज्य के चम्पावत जिले के विशुंग गांव के रहने वाले पवन फर्त्याल की, जो शनिवार 29 मई को भारतीय नौसेना अकादमी एझिमाला (कन्नूर), केरल में आयोजित हुई पासिंग आउट परेड के बाद भारतीय नौसेना में सब लेफ्टिनेंट बन गए हैं। उनकी इस अभूतपूर्व उपलब्धि से जहां उनके परिवार में हर्षोल्लास का माहौल है वहीं पूरे क्षेत्र में भी खुशी की लहर है।
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देवभूमि दर्शन से खास बातचीत:-
बता दें कि मूल रूप से राज्य के चम्पावत जिले के लोहाघाट तहसील के विशुंग गांव के रहने वाले पवन फर्त्याल शनिवार को भारतीय नौसेना अकादमी एझिमाला (कन्नूर), केरल में आयोजित हुई पासिंग आउट परेड के बाद बतौर सब लेफ्टिनेंट भारतीय नौसेना में शामिल हो गए हैं। नौसेना में सम्मिलित होकर समूचे उत्तराखंड को एक बार फिर गौरवान्वित होने का सुनहरा अवसर प्रदान करने वाले पवन की बहन रितु ने देवभूमि दर्शन से हुई खास बातचीत में बताया कि वर्तमान में उनका परिवार जिले के ही टनकपुर में रहता है। रितु ने बताया कि उनके पिता मनोहर सिंह फर्त्याल वन विभाग में वन दरोगा के पद पर कार्यरत हैं जबकि उनकी मां एक कुशल गृहिणी है। बताते चलें कि बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल दर्जे के छात्र रहे पवन ने इंटरमीडिएट की परीक्षा केन्द्रीय विद्यालय बनबसा से उत्तीर्ण की। तत्पश्चात कड़ी मेहनत और लगन के बलबूते उनका चयन भारतीय नौसेना में सब लेफ्टिनेंट के पद पर हुआ। बचपन से ही सेना में जाकर देश सेवा करने का सपना देखने वाले पवन ने अपनी इस अभूतपूर्व सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और बहन के साथ ही अपने गुरूजनों को दिया है।
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