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Resignation of Tirath Singh Rawat from Uttarakhand, why did it become an alarm bell for Mamta Banerjee????

देवभूमि दर्शन- राष्ट्रीय खबर

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उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत का इस्तीफा देना, ममता बनर्जी के लिए क्यों बनी खतरे की घंटी ?????

उत्तराखण्ड के बाद अब पश्चिम बंगाल में भी हो सकता है संवैधानिक संकट, तीरथ रावत (Tirath Rawat) का इस्तीफा लेकर भाजपा ने बजाई ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) के लिए खतरे की घंटी, तीरथ की तर्ज पर भाजपा ने ममता से मांगना शुरू किया इस्तीफा..

भले ही तीरथ सिंह रावत (Tirath Rawat) के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद पुष्कर सिंह धामी को प्रदेश का नया मुखिया चुने जाने के साथ उत्तराखण्ड में बीते कई दिनों से चला आ रहा राजनैतिक अस्थिरता का दौर एक बार फिर थम गया हों ‌लेकिन‌ इस सारे घटनाक्रम के पीछे चल रही कहानी का पदार्पण अभी तक नहीं हो पाया है। यूं कहें तो यह सारे समीकरण भाजपा ने उत्तराखण्ड के लिए नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल के लिए बनाए थे और तीरथ सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के साथ ही पश्चिम बंगाल में भाजपा ने ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) पर तंज कसना भी शुरू कर दिया है। तीरथ की तर्ज पर ममता बनर्जी से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा मांगा जा रहा है। सच कहें तो पर्दे के पीछे चल रही इस पटकथा को समझना इतना भी आसान नहीं है। हालांकि उत्तराखण्ड में जहां अब सरकार का कार्यकाल महज आठ महीने का बचा है वहीं पश्चिम बंगाल में सरकार का कार्यकाल अभी शुरू ही हुआ है परन्तु चुनाव आयोग द्वारा उपचुनावों पर लगाई गई रोक के कारण ममता की राह इतनी आसान भी नहीं है।
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बता दें कि इस वक्त पश्चिम बंगाल और उत्तराखण्ड में काफी समानताएं देखने को मिलती हैं। तीरथ सिंह की तरह ममता बनर्जी भी राज्य की विधानसभा सदस्य नहीं हैं। जहां तीरथ ने दस मार्च को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी वहीं ममता बनर्जी ने चार म‌ई को अपना कार्यभार ग्रहण किया था। इसी तरह तीरथ को आगामी 9 सितम्बर तक विधानसभा का सदस्य बनना था जबकि ममता बनर्जी की यह समय सीमा 3 नवंबर 2021 को समाप्त हो रही है। अर्थात भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के अनुसार उन्हें 3 नवंबर तक हर हाल में चुनाव जीतकर विधानसभा की सदस्यता हासिल करनी होगी। इस अनुच्छेद के अनुसार बिना विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य चुने हुए केवल छह महीने तक ही कोई भी व्यक्ति मुख्यमंत्री या मंत्री पद पर बना रह सकता है। मुख्यमंत्री या मंत्री अगर लगातार छह महीने तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है, तो उस मंत्री या मुख्यमंत्री का पद इस अवधि के साथ ही स्वयं: समाप्त हो जाएगा।
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चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक आयोग को अधिसूचना के बाद चुनाव कराने के लिए केवल 28 दिन के समय की जरूरत होती है। इस लिहाज से यदि बंगाल में उपचुनाव कराया जाना है तो आयोग को अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से पहले ही इसकी अधिसूचना जारी करनी होगी। हालांकि इसमें अभी इसमें ठीक तीन महीने का समय है।‌ इस दौरान यदि कोरोना का खतरा कम हुआ और चुनाव आयोग ने उपचुनाव आयोजित कर दिया तो ममता की राह आसान हो जाएगी वर्ना उत्तराखण्ड की तर्ज पर पश्चिम बंगाल में भी संवैधानिक संकट देखने को मिलेगा और उन्हें भी तीरथ की तरह अपने पद से इस्तीफा देने को मजबूर होना होगा। कुल मिलाकर उत्तराखण्ड में तीरथ सिंह रावत का मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के लिए भी खतरे की घंटी है।


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