Pataal Tee patal ti: बुसान फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित होगी रूद्रप्रयाग के युवाओं द्वारा निर्मित उत्तराखण्डी फिल्म “पाताल ती”, टाप फोर में जगह मिलने पर जाएगी आस्कर के लिए…
उत्तराखंड में हुनर की कोई कमी नहीं है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि यहां के वाशिंदे अपने हुनर से आज प्रदेश ही नहीं बल्कि देश को भी गौरवान्वित करने का मौका नहीं छोड़ते। आज हम उत्तराखंड के कुछ ऐसे ही युवाओं से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं जिन्होंने इतिहास रचकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड का मान बढ़ाया है। जी हां… हम बात कर रहे हैं गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले के उन युवाओं की, जिन्होंने कोविड काल के दौरान एक शार्ट फिल्म “पाताल ती” बनाई थी। अब इस फिल्म ने 39 वे बुसान अंतरराष्ट्रीय शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में अपनी जगह बनाई है। बता दें कि इस फिल्म के कारण जहां भारत का नाम ऑस्कर अवॉर्ड मे भी रोशन हो सकता है वहीं इस फेस्टिवल में प्रदर्शित होने वाली यह भारत की एकमात्र फिल्म है, जो समूचे उत्तराखण्ड के लिए गौरव की बात है। विदित हो कि बुसान फिल्म फेस्टिवल 1996 से दक्षिण कोरिया मे होता आया है तथा इसे एशिया के सबसे नामचीन फिल्म उत्सव के रूप में जाना जाता है।
(Pataal Tee patal ti)
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बता दें कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के कुछ युवाओं ने अपनी प्रतिभा के दम पर एशिया के सबसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में बुसान फिल्म उत्सव में भारत का नाम रोशन किया है। इन युवाओं में रुद्रप्रयाग जिले के दूरस्थ गांव के रहने वाले संतोष ,बिट्टू रावत और ,रजत बर्त्वाल शामिल हैं, जिन्होंने राज्य की भोटिया जनजाति पर आधारित एक लोक कथा से प्रेरित होकर शॉर्ट फिल्म “पाताल ती” बनाई है। सबसे खास बात तो यह है कि इस फिल्म फेस्टिवल के लिए 111 देशों से 2548 शॉर्ट फिल्मो के नामांकन में से केवल 40 फिल्मों का चयन हुआ जिनमे से एक पताल-ती भी है। पताल-ती को बुसान उत्सव की 12 सदस्यों की जूरी ने 40 फिल्मों में चुना गया तथा टॉप 15 में इस फिल्म को 14 वा स्थान प्राप्त हुआ है।
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बता दें कि बुसान फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित होने के बाद अब यह उत्तराखण्डी फिल्म, कोरिया इंटरनेशनल शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में जाएगी, जहां यदि इसे टॉप 4 में स्थान प्राप्त होता है तो इसे प्रविष्टि के तौर पर ऑस्कर अवार्ड के लिए भेजा जाएगा। यदि हम बात करें इस फिल्म की तो रुद्रप्रयाग जिले की दशज्यूला पट्टी के ग्राम क्यूड़ी निवासी संतोष रावत इसके निर्माता-निर्देशक है। इसे तैयार करने में करीब 20 दिनों का वक्त लगा। संतोष और उनकी टीम ने इस फिल्म के लिए काफी मेहनत की है। बता दें कि लोक भाषा पाताल ती का अर्थ पवित्र पानी होता है। यह शॉर्ट फिल्म दादा और पोते के ऊपर आधारित है। फिल्म में एक अपने माता पिता को खो चुका एक किशोर अपने दादा दादी के साथ रहता है। शॉर्ट फिल्म में हिमालय के दूरस्थ गांव की मोतिया जनजाति की लोक गाथा का वर्णन किया गया है तथा इसकी शूटिंग चीन सीमा पर स्थित नीती घाटी के अलावा गमशाली व रुद्रनाथ में की गई है।
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