गढ़वाली कविता- बांजा पूणा, सूना गौ… Arvind Singh poem
बांजा पूणा, सूना गौ
गौ का गौ उजडिक ऊददा ऐगी।
पुडा पाटुला बगिक बेड़ जैगी।।
ववी नी रुकणू यू़ं गौ मा।
कनू गजब हवेगी ऐ पडाड़ मा ।।
मनखी त मनखी जैगी शहरु मा ।
पोथला बी बसगी परदेशू मा ।।
जु गैन उदा उबबू कु नौ नी लयाणा।
पहाड़ धुमणा कै फिर सभी यख आणा ।।
टूटया कूडा़ फुटया भाडा़ लमडाणा ।
बाजा पूणा लगया अभी सास औणाका ।
धुधती हिलानस कखी बासदी नी सुणेदी।
कफू चकोर न जाणी कख हरची गैगी।।
सुरसूया बथों ठंडू पाणी कंनू चुवकी तुमकै ।
गमी मा बयाड़ पकंडू कंनू अचछू लगी तुमकै।
काफल हिसर किंगोड़ पवकी पहाड़ मा ।
तो बी बिहारी बेचना बजार मा ।
पठाली रडगी धुरपुललु उजडिगी मवार पर लगया ताला ।
पुडा टुटगी रगड़ा ऐगी ववी रैया नी समालदारा ।।
रचना -अरविंद सिंह , पता- थान -बेमर, टिहरी गढ़वाल (उत्तराखण्ड)
Arvind Singh poem
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देवभूमि दर्शन मीडिया
(काव्य संकलन प्रभाग)