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Bageshwar cave: बागेश्वर धारी डोबा में मिली सतयुग से जुड़ी रहस्यमई गुफा बह रही दूध की धाराएं
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cave found in dhari doba village Bageshwar belong to satyuga gufa uttarakhand latest news today: बागेश्वर में पहाड़ों के बीच मिली रहस्यमयी गुफा, पत्थरों से बहती दूध जैसी धाराएं बनी श्रद्धा का प्रतीक
cave found in dhari doba village Bageshwar belong to satyuga gufa uttarakhand latest news today: देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवी-देवताओं का वास माना जाता है। कहने को तो यहां का पर्वतीय क्षेत्र देश के कई राज्यों से बेहद छोटा है परंतु इसका पर्वतीय भू-भाग अपने आप में समृद्ध ऐतिहासिक एवं पौराणिक धरोहरों को समेटे हुए है। ऐसी ही एक खबर आज बागेश्वर जिले से सामने आ रही है जहां एक अद्भुत खोज ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है।
दरअसल बागेश्वर जिले के दूरस्थ क्षेत्र धारी-डोबा गांव के पास एक ऐसी प्राचीन रहस्यमयी गुफा मिली है, जो आज स्थानीय निवासियों और श्रद्धालुओं दोनों के लिए आस्था और आश्चर्य का केंद्र बन चुकी है। इस गुफा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके भीतर से दूध जैसी सफेद धाराएं बहती हैं, जो देखने वालों को अचंभित कर देती हैं।
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प्राकृतिक शिवलिंगों से बहती हैं सफेद धाराएं
गुफा के भीतर प्रवेश करते ही ठंडी हवा का झोंका और दीवारों पर बनी प्राकृतिक आकृतियां एक रहस्यमयी वातावरण उत्पन्न करती हैं। अंदर कई संकरे रास्ते हैं जो आगे जाकर एक विशाल गुंबदाकार कक्ष में मिलते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इन रास्तों के बीच बने प्राकृतिक शिवलिंगों से ही यह दूधनुमा धाराएं बहती हैं, जो निरंतर प्रवाहित होती दिखाई देती हैं। इन शिवलिंगों से झरती सफेद धाराएं श्रद्धालुओं में गहरी आस्था जगाती हैं, जबकि पर्यटक इसे प्रकृति की अनोखी कलाकारी के रूप में देख रहे हैं।
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सतयुग की कथा से जुड़ा है यह चमत्कार
गांव के बुजुर्ग हर सिंह बताते हैं कि यह गुफा बेहद प्राचीन है और इसकी कहानी सतयुग काल से जुड़ी मानी जाती है। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, सतयुग में एक संत बाबा यहां तपस्या करने आए थे। कहा जाता है कि बाबा ने एक दिन इसी गुफा में खीर बनाई, जिसके बाद से पत्थरों से दूध जैसी धाराएं बहने लगीं। तब से यह दृश्य आज तक वैसा ही देखने को मिलता है। ग्रामवासियों के मुताबिक, कई श्रद्धालु यहां यह मानकर आते हैं कि यह दूध की धारा उस संत की तपस्या का प्रतीक है। कई लोग इसे ईश्वर की दिव्य लीलाओं से जोड़ते हैं।
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संरक्षण को लेकर ग्रामीणों की चिंता
ग्रामीण बताते हैं कि धारी-डोबा गांव तक पहुंचना आज भी कठिन है। ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्तों और घने जंगलों के बीच स्थित यह गुफा प्रशासन की नजरों से अब तक लगभग अछूती रही है। ग्रामीणों के मुताबिक उन्होंने कई बार गुफा के संरक्षण और विकास की मांग प्रशासन से की है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि यहां तक सड़क, रोशनी और अन्य बुनियादी सुविधाएं विकसित की जाएं, तो यह स्थान न केवल धार्मिक स्थल बल्कि एक महत्वपूर्ण पर्यटन केंद्र बन सकता है।
क्षेत्र के युवाओं का तो यहां तक मानना है कि यह गुफा उत्तराखंड की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। स्थानीय निवासी अरविंद मेहरा कहते हैं, “यह गुफा हमारी आस्था और पहचान दोनों से जुड़ी है। अगर सरकार इसे पर्यटन सर्किट में शामिल करे तो इससे पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिल सकती है।” उन्होंने कहा कि गुफा तक जाने वाले मार्ग को दुरुस्त करने और यहां पर्यटक सूचना केंद्र, सुरक्षा बैरियर और बिजली की व्यवस्था किए जाने की जरूरत है।
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