उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में जहाँ पलायन ने अपनी जड़े मजबूत की हुई है वही आज भी पहाड़ो में जीवन यापन करने वाले लोगो के हालात बेहद ख़राब है। सरकार भले ही विकास एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के लाख दावा करे लेकिन जमीनी हकीकत बेहद खतरनाक है। पहाड़ों की वादियां जितनी खूबसूरत होती है, उतना ही कठिन है यहां जीवन यापन करना। पहाड़ों की इस दुर्दशा का दर्द बयाँ करता है बागेश्वर जिले की कुंवारी क्षेत्र की गर्भवती अनीता की प्रसव पीड़ा की दास्तां।
बागेश्वर के ही वीरेंद्र गड़िया ने बताया की अनीता पत्नी मनोज को जुलाई को प्रसव पीड़ा हुई। जिसके लिए जिला मुख्यालय आने वाले सभी रास्ते बंद थे। अब उनके पास चमोली जिले का एक मात्र पैदल रास्ता खुला था। रास्ता बेहद ख़राब होने के बाद भी गांव वालों ने मज़बूरी में इसी रास्ते से जाने का निर्णय लिया। प्रसव पीड़ा से कराह रही अनीता को गांव वालों ने डोली में लिटाया और 56 किमी का पैदल सफर तय कर तीन दिन बाद अस्पताल पहुंचे। 27 जुलाई को थराली में अनीता को अत्यधिक प्रसव पीड़ा होने लगी। बेहद दुर्गम मार्ग से चलकर चमोली जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र थराली में पहुंचने के बाद उसने स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। जहाँ पर जच्चा-बच्चा दोनों सुरक्षित हैं।