एक समय था जब उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों ( गढ़वाल मंडल ) में बाजुबंद गीतों का बहुत प्रचलन था, उस समय पहाड़ की महिलाए जंगलो में घास काटते समय अपनी दुःख वेदना को इन गीतो के माध्यम से व्यक्त करती थी और अपना मन भी कामकाज के साथ बहला लेती थी। इसी प्रकार कुमाऊं मंडल में भी पहले ज़माने में लोग खेती बाड़ी के दौरान हुड़की बोली गीत गाया करते थे, जिसमे हुड़के के साथ कृषि सम्बन्धी गीत गाये जाते थे। जैसे जैसे लोगो ने आधुनिक युग में कदम रखा और ये सभी पारम्परिक लोकगीत और परम्पराएँ विलुप्त होती चली गयी। अतीत के उन यादगार दिनों को फिर एक बार तरोताजा करने का प्रयास किया है बीके संगीत निर्माता मनीष चौहान ने जी हां जापान में रह कर भी उन्होंने उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति को एक नया आयाम दिया है। निर्माता मनीष चौहान उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रहे। उन्होंने हाल ही में एक बाजूबंद गीत लॉन्च किया है जो पहले के जामाने में पहाड़ की महिलाएं जंगल में घास काटते समय गाया करती थी।
सबसे खाश बात तो ये है लोक गायिका सीमा पांगरियल , ममता पंवार और बीके संगीत के निर्माता मनीष चौहान और सुमित चौहान ने अपने अथक प्रयासों के बाद बाजूबंद गीत को फिर से लोगो के दिलो में जिवंत कर दिया है। बता दे की आजकल के फूहड़ गीतों से कही दूर हटकर लोक गायिका सीमा पांगरियल , ममता पंवार ने पहाड़ की विलुप्त हुई बाजूबंद गीतों की इस परपंरा को फिर से अपने गीत के माध्यम से जिवंत कर लोगो को उनके अतीत के पालो से रूबरू करा दिया है। लोक गायिका सीमा पांगरियल , ममता पंवार दोनों टिहरी गढ़वाल की मूल निवासी है। देवभूमि दर्शन से बातचीत में लोकगायक केशर पंवार बताते है की इस गीत को पहाड़ी संस्कृति और रीती रिवाजो को संजोये रखने के उदेश्य से रिलीज किया गया है।