उत्तराखण्ड के इस पर्वतीय क्षेत्र के गांव में दुल्हन को डोली पर नहीं घोड़े पर बिठाकर विदा किया जाता है
क्या है इस प्रथा का कारण : बता दें कि उत्तराखंड के चमोली जिले के वांण गांव के ग्रामीण मां नंदा देवी को डोली में बिठाकर श्री नंदा देवी राजजात यात्रा पर कैलाश ले जाते हैं और इसलिए ही अपनी आराध्य मां नंदा के सम्मान में ग्रामीण अपनी बेटियों की शादी में दुल्हन को डोली के बजाय घोड़े पर बैठाकर विदा करते हैं। इसके साथ ही वांण गांव में एक ओर हैरान कर देने वाली परम्परा है और यह परम्परा है वांण गांव में स्थित लाटू देवता के मंदिर की। दरअसल यह सम्पूर्ण भारतवर्ष का एक ऐसा मंदिर है जहां कोई भी श्रद्धालु मंदिर के अंदर प्रवेश नहीं करता। यहां तक कि मंदिर के पुजारी भी आंखों पर पट्टी बांधकर दीया जलाकर लाटू देवता पूजा करते हैं। इस मंदिर के अंदर क्या है ये तो कोई नहीं जानता परन्तु इस परम्परा को सभी श्रद्धालु बड़े भक्तिभाव से मानते हैं। जितनी रोचक यह परम्परा हैं उतना ही रोचक इसका कारण भी। दरअसल लाटू देवता मां नंदा देवी का धर्म भाई माना जाता है।
ग्रामीणों में प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार एक बार कन्नौज के गौड़ ब्राह्मण लाटू मां नन्दा के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत की यात्रा कर रहे थे। जैसे ही वह चमोली जिले के वांण गांव पहुंचे तो उन्हें बहुत तेज प्यास लगी। जिस कारण इधर-उधर पीने के लिए पानी ढूंढते हुए वह एक कुटिया में पहुंचे। कुटिया में मौजूद महिला से पीने का पानी मांगने पर महिला ने अपनी कुटिया के अन्दर संकेत करते हुए कहा कि उसकी कुटिया में तीन घड़े है उनमें से एक घड़े में पानी रखा है आप अंदर जाकर उससे पानी पी लें। परंतु लाटू ब्राह्मण से एक बहुत बड़ी भूल हो गई जिसके कारण वह दूसरे घड़े में रखी मदिरा को पी गए। जब उन्हें इसका आभास हुआ तो वह अपनी गलती से इतने शर्मिंदा हो गए कि उन्होंने अपनी भूलवश हुई गलती का पश्चाताप करने के लिए स्वयं की जीभ ही काट दी। मान्यताओं के अनुसार इस घटना के बाद मां नन्दा ने उन्हें दर्शन देकर यही एक मंदिर में विराजमान होने का आदेश दिया और तभी से वह यहां पर मंदिर के अंदर नागराज मणि के साथ प्रवास करते हैं और नागमणि को देखने की सबको मनाही है।