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Environment protector Chandan nayal basically belongs from Nainital Uttarakhand.

उत्तराखण्ड बुलेटिन

नैनीताल

पर्यावरण प्रेमी -पहाड़ के चन्दन नयाल ने किया अपने को पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित





पहाड़ो में शुद्ध हवा और पानी का आनंद लेना किसको अच्छा नहीं लगता है लेकिन इसके लिए आपको पर्यावरण प्रेमी बनना पड़ेगा जब आप पर्यावरण को कुछ देंगे तब पर्यावरण भी आपको उपहार स्वरुप शुद्ध हवा और पानी देगा। आज हम बात कर रहे है नैनीताल जिले के ओखलकांडा ब्लॉक के चन्दन नयाल की जो नाइ गाँव के रहने वाले है ,जिन्होंने अपने आसपास के गांवो में पेड़ लगाने की मुहीम शुरू की और अब नजदीकी गाँव की सभी लोग चन्दन की इस बेमिसाल मुहीम में शामिल हो चुके है।





चन्दन की पर्यावरण संरक्षण की मुहिम– चन्दन नयाल वर्तमान में रुद्रपुर के सरस्वती शिशु मंदिर इण्टर कॉलेज में बतौर अध्यापक अध्यापन कार्य करते है और एक शिक्षक होने के नाते वो सिर्फ बच्चो का ही भविष्य नहीं बना रहे है वरन अपने पर्यावरण के लिए भी अपना अमूल्य योगदान दे रहे है। चन्दन जब भी छुट्टी में घर आते है तब अपने इलाके के सभी स्कूलों में जाते है और सभी छात्र छात्राओ वो सभी अध्यापक अध्यापिकाओं को इसके बारे में जागरूक करते है। चन्दन अभी तक 40 से अधिक प्राथमिक स्कूलों और डिग्री कॉलेजों में जाकर ये वृक्षारोपण की मुहिम चला चुके है।




कहा से मिली प्रेरणा – चन्दन कहते है की उन्होंने जब खुद ही इस बात पर विचार किया की पहले पहाड़ो में मौसम कैसा रहता था, और आज किस तरह वो प्रदूषित वातावरण में रह रहे है ,पानी के स्रोत सुख चुके है , धीरे- धीरे पर्वतीय क्षेत्रों में भी गर्मी बढ़ने लगी है जिसका मुख्य कारण है पेड़ पोधो का अंधाधुंध कटान। चन्दन ने इसका समाधान खुद ही ढूढ़ लिया और खुद ही पेड़ लगाने शुरू कर दिए अभी तक चन्दन नयाल 10000 से ऊपर अलग अलग प्रजाति के वृक्ष लगा चुके है जिसमे से बांज के पेड़ सबसे ज्यादा है क्योकि इस से मिटटी में पानी की मात्रा बनी रहती है और ये शीतलता प्रदान करता है।




गाँव में तैयार की नर्सरी से बाँटते है पौधे -चन्दन ने अपने गांव में बाँज, अखरोट , अमरुद ,  माल्टा और आम की नर्सरी तैयार की है जिस से वो गांव के लोगो को मुफ्त में पौधे बाँटते है , वह हर साल 20 से 25  हजार पौधे जंगलो में लगाने के साथ ही इलाके के लोगो को भी बाँटते है। इसके साथ ही चन्दन कहते है की उन्होंने रामगढ ,धारी और ओखलकांडा ब्लॉक के गांवो के प्राकृतिक स्रोतों पर शोध किया।





जिसमे उन्हें चौकाने वाले परिणाम मिले , इन सभी ब्लॉकों के ३० फीसदी प्राकृतिक जल स्रोत सुख चुके है , गाँव में नौलो को सीमेंट से बनाने का भी उन्होंने बहुत विरोध किया। इसके बाद गाँव में मिट्टी और पत्थर के नौलो का जीर्णोद्वार किया।

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