उत्तराखण्ड के लोकगीतो की बात करे तो स्व.पप्पू कार्की का नाम सबकी जुबा पर रहता है, जिन्होंने उत्तराखण्ड के लोकगीतों को एक नयी उचाई पर पहुंचाया था, आज भी उनकी अमर आवाज सबके दिलो में जीवित है। स्व. पप्पू कार्की ने अपनी जादुई आवाज से सबके दिलो में अपनी अमिट छाप छोड़ी थी। जब 9 जून 2018 को यह महान लोकगायक अपनी आवाज देकर अलविदा कह गया तो पहाड़ो में एक शोक की लहर दौड़ गयी थी। उनके गीतों की खाश बात तो ये थी की हर युवा वर्ग से लेकर बुजुर्ग तक उनकी आवाज के दीवाने थे ऐसी बेजोड़ कला थी उनके आवाज में की दिल की गहराइयों तक झकझोर कर रख देता था। पप्पू कार्की हमेशा नए उभरते हुए कलाकारों के लिए एक प्रेरणास्रोत रहे जिन्होंने उन्ही के पीके स्टूडियो में गाने सीखे और आज वो अपने को जो कुछ भी मानते है वो सिर्फ स्व. पप्पू कार्की की बदौलत मानते है उनमे से फौजी लोकगायक ईश्वर सिंह महरा भी एक है ।
बाल कलाकार दक्ष कार्की पिता के पद्चिन्हो पर चलते हुए – पप्पू कार्की के अमर गीतों को अब उनका बेटा दक्ष कार्की एक नया आयाम दे रहा है और उत्तराखण्ड के संगीत प्रेमियों को इसकी बहुत जरूरत भी थी की स्व. पप्पू कार्की की यादो को जिवंत करने वाला कोई तो हो। दक्ष कार्की भी अपने पिता की तरह संगीत में बहुत रूचि रखता है और अभी वह अपने पिता के स्टूडियो में उनकी टीम के साथ एक वीडियो में देखा गया जो की उसकी खुद की आवाज में रिकॉर्ड किया हुआ गीत है । ये गीत “सुन ले दगड़िया बात सुनी जा” कभी पप्पू कार्की ने अपनी मधुर आवाज में गाया था और उस समय ये गीत उत्तराखण्ड में बहुत हिट हुआ था। इस वीडियो में दक्ष की आवाज में एक मासूमियत झलक रही है और इसके साथ ही एक जूनून भी वो जूनून है अपनी एक नयी दुनिया की शुरुआत करने की और अपने पिता के गीतों को एक नया आयाम देने की।
स्व. पप्पू कार्की के जिंदगी का संघर्ष – स्व. पप्पू कार्की ने उत्तराखण्ड के लोकसंगीत में जो मुकाम पाया था, उसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की थी अपने गॉव थल (पिथौरागढ़) से दिल्ली नौकरी की तलाश में भटकते रहे और यहाँ तक की उन्होंने पट्रोल पंप और प्रिंटिंग प्रेस में भी काम किया लेकिन उनका मन शहरो में नहीं लगा क्योकि अपने उत्तराखण्ड के लोकगीतों को एक नए मुकाम पर पहुंचाने के लिए उन्हें अपने पहाड़ वापस आना ही पड़ा और जहा उन्होंने संगीत के क्षेत्र में काम करना शुरु किया तो उपलब्धियां उनके कदम चूमने लगी और इसी के चलते हल्द्वानी में उन्होंने अपना पीके स्टूडियो खोला। लेकिन ऊपर वाले को शायद कुछ और ही मंजूर था जो वो अपनी अमर आवाज देकर सबको अलविदा कह गए। 1998 में पप्पू कार्की ने अपना पहला गीत अपने गुरु, कृष्ण सिंह कार्की की जुगलबंदी में रिकार्ड किया था यह गीत उनकी एलबम ‘फौज की नौकरी में’ का था। इसके बाद 2002 में उन्होंने एक अन्य एलबम ‘हरियो रूमाला’ में भी गीत गाए। यह भी पढ़े- मशहूर लोकगायिका कबूतरी देवी के गीत को दी थी स्वर्गीय पप्पू कार्की ने अपनी आवाज
2003 में पप्पू कार्की ने अपनी पहली एलबम ‘मेघा’ से खुद के गाए गीतों के एल्बमों की शृंखला शुरू की, लेकिन वे कुछ ख़ास सफल नहीं हुए। इसके बाद वह दिल्ली चले गए, जहाँ 2006 में उन्होंने उत्तराखण्ड आइडल प्रतियोगिता में भाग लिया, और प्रथम रनरअप घोषित हुए थे। अपने रुद्रपुर निवास के दौरान कार्की ने लोक गायक प्रह्लाद मेहरा व चांदनी इंटरप्राइजेज के नरेंद्र टोलिया के साथ मिलकर ‘झम्म लागछी’ एलबम के लिए गाने रिकॉर्ड किए। 2010 में रमा कैसेट्स के बैनर तले रिलीज़ हुई यह एल्बम हिट रही, और इसके गीत “डीडीहाट की छमना छोरी” ने उन्हें काफी पहचान दिलाई। इस गीत के बाद पप्पू कार्की के एक से एक हिट गीत आये जो आज भी उनकी यादो को ताजा कर देते है।
ऐ जा रे चैत बैशाखा मेरो मुनस्यारा
डीडीहाट की छमना छोरी
सिलगड़ी का पाला चाला
बिर्थी खौला पानी बग्यो सारारा
मधुली, रूपै की रसिया
तेरी रंगीली पिछौड़ी
छम-छम बाजलि हो
उत्तराणी कौतिक लगिरो
होठों में मुरली, कमर में छ रुमाल
सुन ले दगड़िया
आग्ये मोहनी बन ठन बे
तवे में मेरी माया मोहनी
काजल क टिक्क लगा ले
बसंती छोयड़ी
लाली हो लाली होसिया
साली मार्छाली
चम्पावत की रश्मी बाना
माल देसे की छोरी तनु
चौकटे की पार्वती
हीरा समदड़ी
नीलू छोरी
ऐजा ऐजा तू मेरी पराना
चाँचरी (हिट मधु उत्तरायणी कौतिक जुल)
भैसी लड़ी हो माया
तेरी मेरी माया सुवा रौली अमर
गिरगौ बटी पूजगे छू Content Disclaimer
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