Surkanda Devi Temple Uttarakhand: मां सुरकंडा देवी का इतिहास है अपने आप में बड़ा गौरवशाली मां की अलौकिक शक्तियों का विशेष वर्णन देवभूमि दर्शन के लेख में
उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां कण कण में देवी देवताओं का वास माना जाता है। इस पावन भूमि में कई देवी देवताओं की पूजा की जाती है तथा कई प्रकार के मंदिर भी हैं, किन्तु कुछ मंदिर और उनसे जुड़ा उनका इतिहास इतना रोचक, और मंदिरें इतने चमत्कारिक होते है , कि हमें सुनने और दर्शन करने को मजबूर कर देते हैं ,और कई बार कुछ ऐसे मंदिरों का जिक्र सुनने और देखने को भी मिलता है जो चमत्कारों से भरी हुई रहती हैं। जिनके बारे में सुनकर हम कभी कभी आश्चर्यचकित होकर हैरत में पड़ जाते हैं। ठीक वैसा ही एक मन्दिर है मां सुरकंडा देवी मंदिर। सुरकंडा देवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की हर मुराद पूरी होने के साथ साथ उन्हें सातजन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है।(Surkanda Devi Temple Uttarakhand)
सुरकंडा देवी मंदिर उत्तराखंड के टिहरी जिले में स्थित है ,यह माता दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक है। पुराणों के अनुसार टिहरी जिले के सुरकुट पर्वत पर मां सती का सर गिरा था जिस कारण इस मन्दिर का नाम सुरकंडा पड़ा। भगवती दुर्गा को समर्पित यह मंदिर सुरकुट पर्वत पर बना हुआ है , जिसकी ऊंचाई समुद्रतल से 3030 मीटर है। मंदिर के परांगण में सुरकंडा देवी काली माता के रूप में विराजमान है तथा उनके साथ ही मंदिर परिसर में अन्य देवी देवताओं की मूर्ति भी स्थापित है, जिनमे हनुमान जी और भगवान भोलेनाथ माता सती की भी प्रतिमा स्थापित है।
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इस मंदिर का जिक्र केदारखंड और स्कन्द पुराण में भी मिलता है। यह मंदिर अत्यधिक उचाई पर स्थित है, यहां से भगवान बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, गौरीशंकर , सहित नीलकंठ और चोखंबा की आदि पर्वत दिखते हैं। वैसे तो इस मंदिर में हर दिन दूर दूर से श्रद्धालु आते रहते हैं मगर नवरात्रि में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है , क्योंकि नवरात्रि तिथि पर माता के इस मंदिर में दर्शन करने का विशेष महत्व बताया गया है,कहते है नवरात्रि और गंगादशहरे की तिथि पर इस मंदिर में मां के दर्शन करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
इस मंदिर में एक विशेष प्रकार का प्रसाद रौंसली की पत्तियों का प्रसाद मिलता है,जो कि निरोगी और सुखी बनाता है, धर्मिक मान्यताओं के अनुसार यह घर परिवार मै सुख समृद्धि लाता है। इस मंदिर के पीछे के इतिहास और मन्दिर की कहानी के बारे में बात करे तो जानकारों और कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार यह मंदिर काफी पुराना है, इस मंदिर का केदारखंड और स्कन्द पुराण मै भी मिलता है ।
कहते जब देवराज इन्द्र एक बार देत्यों से अपना सारा सम्राज्य हार गए थे तो उन्होंने देवी दुर्गा के इसी मंदिर सुरकंडा में तपस्या कर अपना सम्राज्य वापिस प्राप्त किया था , पुराणों और कथाओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण देवी सती के सिर का भाग गिरने से हुआ है,जब देवी सती और भगवान भोलेनाथ को देवी सती के पिता प्रजापति दक्ष द्वारा किया गया यज्ञ में नहीं भुलाया गया था तो देवी सती इस बात से अत्यधिक क्रोधित और आहत हुई थी, जिस कारण उन्होंने अपने पिता के घर पहुंचकर उनके हवन कूंड मै खुद को जलाकर भस्म कर दिया , इस बात से बेसुध हुए भगवान शिव तब अपनी पत्नी यानी देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड मै घूमने लगे,उनकी ऐसी दशा देख भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के मृत शरीर को 51 टुकड़ों में काट दिया ,और यह टुकड़े पृथ्वी पर गिर पड़े , जिस जिस स्थान पर देवी सती के यह अंग गिरे वह स्थान 51 शक्ति पीठ बने, कहते हैं कि सुरकुट पर्वत पर माता सती का इन्हीं अंगों में से एक अंग माता सती का सर गिरा था ,इस कारण इस जगह का नाम सरकंडा पड़ा।