morden farming in uttarakhand: युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने दलवीर, खेत में उगाई सब्जियां बेचकर तीन महीनों में कर चुके हैं डेढ़ लाख की कमाई..
रख हौसला वो मंजर भी आयेगा,
प्यासे के पास चल के समुन्दर भी आयेगा।
थक कर न बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर,
मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आयेगा…
यह चंद पंक्तियां पहाड़ के मेहनती दलवीर सिंह चौहान पर बिल्कुल सटीक बैठती है। जिन्होंने लाकडाउन की विपरित परिस्थितियों में अपनी मेहनत के बलबूते उगाई सब्जियां बेचकर डेढ़ लाख रुपए की कमाई की है। तीन महिनों में हुई इस रिकोर्डतोड़ कमाई से दलवीर ने न सिर्फ राज्य के अन्य युवाओं को स्वरोजगार की राह दिखाई है बल्कि उन लोगों को भी आईना दिखाया है जो कहते हैं कि पहाड़ में खेती करना अब घाटे का सौदा है। पहाड़ में स्वरोजगार की मिशाल पेश करने वाले दलवीर सिंह चौहान उत्तरकाशी जिले के ककराड़ी गांव के रहने वाले हैं। लाकडाउन में दलवीर की मेहनती आंकड़े देखकर अब क्षेत्र के अन्य युवा भी उनसे आधुनिक खेती का प्रशिक्षण ले रहे हैं। दलवीर कहते हैं कि अगर पहाड़ में आधुनिक खेती (morden farming in uttarakhand) की जाए तो वह कई लोगों की किस्मत बदल सकती है। दलवीर खुद भी ब्रोकली, टमाटर, आलू, छप्पन कद्दू, शिमला मिर्च, पत्ता गोभी, बैंगन, फ्रासबीन, फूल गोभी, राई, खीरा, पहाड़ी ककड़ी, पहाड़ी कद्दू आदि की खेती आधुनिक रूप से करते हैं। दलवीर बताते हैं कि वह मार्च से लेकर जून तक डेढ़ लाख रुपये की सब्जी बेच चुके हैं।
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मुश्किलों से भी नहीं मानी हार, हर समस्या का निकाला आधुनिक समाधान, सिंचाई की नई-नई तकनीके भी अपनाई:-
बता दें कि राज्य के उत्तरकाशी जिले के ककराड़ी गांव में रहने वाले दलवीर सिंह चौहान की गिनती भले ही अब क्षेत्र के प्रगतिशील किसानों में होती हो परन्तु शुरूआत में वह भी उन्हीं परिस्थितियों से जूझ रहे थे जिन परिस्थितियों से आज लाखों बेरोजगार लोग गुजर रहे हैं। लेकिन दलवीर ने इन कठिन परिस्थितियों में भी हतोत्साहित नहीं होते हुए कड़ी मेहनत की और अपना मुकाम पाया। इसी कारण वर्तमान में वह क्षेत्र के लोगों के लिए मिशाल बने हुए हैं। परिवार में सबसे बड़े होने के कारण उन्होंने गढ़वाल विश्वविद्यालय से बीए, एमए और बीएड करने बाद ही क्षेत्र के एक स्कूल में अध्यापन का कार्य शुरू कर दिया। बेशक वह क्षेत्र के मुस्टिकसौड़ में स्थित एक प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया हो पर वहां से मिलने वाला नाममात्र का वेतन परिवार चलाने के लिए नाकाफी था। ऐसे में उन्होंने इस कार्य के साथ ही खेती करने का भी निश्चय किया। खेती करने के लिए सबसे जरूरी होती है सिंचाई और दलवीर के खेतों में पानी का ही अभाव था ऐसे में उन्होंने खेतों में पानी के पहुंचाने के साथ-साथ टपक सिंचाई विधि और माइक्रो स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीक सिखकर 2011 में नौकरी छोड़कर पूरी तरह खेती में जुट गए, इसी का परिणाम है कि आज वह आधुनिक खेती (morden farming in uttarakhand) से ही लाखों की कमाई कर रहे हैं। बेमौसमी सब्जियों के उत्पादन के लिए उन्होंने पाली हाउस भी बनाया है।
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