Narsingh devta jagar : उत्तराखंड जागर में अवतरित होने वाले नरसिंह देवता विष्णु अवतारी नरसिंह से कैसे अलग हैं…????
उत्तराखंड की भूमि देवी देवताओं से परिपूर्ण है इसमें कोई संदेह नहीं। यही नहीं पर्वतीय अंचल वाले इस राज्य की खास बात यह भी है कि यहां देवी देवताओं को आवाह्न कर उन्हें अवतरित भी कराया जाता है जिसे स्थानीय बोली में जागर कहते हैं। इसी जागर में स्थानीय लोक देवता अवतरित होकर लोगों की समस्याओं का निदान करते हैं। कुमाऊं और गढ़वाल मंडल में अनेक लोक देवता पूजे जाते हैं जिनमें गोलू देवता, नरसिंह देवता, भैरव देवता, सैम देवता और नागराजा देवता समेत कई देवी देवता आते हैं। अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध नरसिंह देवता से जुड़ी एक विशेष बात आज हम आपको बताने जा रहे हैं। जी हां जो नरसिंह देवता उत्तराखंड जागर में पूजे जाते हैं वह विष्णु अवतारी ना होकर एक सिद्ध योगी बाबा और नाथपंथी साधु हैं। जिनका संबंध कत्यूरी वंश के नाथपंथी देव कुल से माना गया है लेकिन गढ़वाल में अधिकतर इनकी जागर लगाते समय इनका आवाहन भक्त प्रह्लाद वाली कहानी से किया जाता है वहीं कुमाऊं में जागर के दौरान कत्यूरो के सम्बन्ध में इनकी जागर लगाई जाती है।(Narsingh Devta Jagar ) यह भी पढ़िए:साधु-बाबा की शर्त अगर फोड़ दिया इस जोशीमठ में मैंने पानी तो छोड़ना पड़ेगा तुम्हें जोशीमठ
विष्णु अवतारी नरसिंह भगवान (Lord Vishnu Avatar Narasimha) न्याय का देवता कहलाने वाला नरसिंह देवता सम्पूर्ण भारत में विष्णु भगवान के चौथे अवतारी माने जाते हैं। जो आधा इंसान और आधा शेर समान होते हैं। इनके बड़े बड़े नाखून और दांतो से उनके रूप को विशेष पहचान मिली है। भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह अवतार लिया था और हिरण्यकश्यप का वध किया था। जिसके बाद वह संपूर्ण भारत में न्याय के देवता और विष्णु अवतारी कहलाए। क्योंकि नरसिंह अवतार उनका बहुत ही उग्र और क्रोधी अवतार था जिसके कारण वह शांत होने के लिए उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में आए थे। जहां उनका आज एक मंदिर भी है। संपूर्ण भारत में विष्णु अवतारी नरसिंह का एकमात्र मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में स्थित है जहां वह स्वयं विष्णु अवतारी नरसिंह के रूप में विराजमान रहते हैं।
उत्तराखंड जागरो में पूजे जाने वाले नरसिंह देवता (Narsingh Devta worshiped in Uttarakhand) उत्तराखंड जागरो में पूजे जाने वाले नरसिंह देवता विष्णु अवतारी ना होकर एक सिद्ध योगी बाबा और सिद्ध पुरुष नाथपंथी साधु थे। जो गोलू देवता के समान ही लोगों के बीच न्याय के लिए प्रसिद्ध और सम्मानीय है। यह भगवान भोलेनाथ के रूप माने जाते हैं जिन्होंने गुरु गोरखनाथ से दीक्षा ग्रहण की थी। उत्तराखंड के जागरों में नरसिंह देवता को जोगी के रूप में पहचान मिली है और इनका मूल स्थान जोशीमठ चमोली माना जाता है। उत्तराखंड के अन्य देवताओं के भांति ही इन्हें भी लोक देवता एवं कुल देवता की मान्यता मिली है और यह उत्तराखंड के लगभग अधिकतर घरों में पूजे जाते हैं। उत्तराखंड में गुरुओं (जागर वाले दास) के अनुरूप नरसिंह देवता महाकाली के पुत्र एवं भगवान शिव के शिष्य थे। जिन्हें भगवान भोलेनाथ ने उत्पन्न किया था और जागरण में अवतरित होने के दौरान इनके मुख से आदेश आदेश की वाणी निकलती है। यह एक सिद्ध पुरुष और योगी थे जिन्हें राजनीति में विशेष ज्ञान था। वह कत्यूरी वंश के नाथपंथी देव कुल के थे। नरसिंह देवता अपने बावन वीरो और नौ रूपों के लिए जाने जाते हैं। इनको सबसे प्रिय टिमरू का डंडा(सोटा) लगता था । ये हमेशा नेपाली चिमटा, खरवा की झोली और टिमरू का सोटा धारण करते थे। इन्हें उत्तराखंड में , नारसिंह नृसिंह आदि नामों से जाना जाता है। इनका मूल नाम “नरसिंहनाथ” बताया जाता है।
उत्तराखंड में पूजनीय नरसिंह देवता के रूप (Form of Narsingh deity located in Uttarakhand) वैसे तो उत्तराखंड के जागरण में इनके नौ रूपों का वर्णन (इंगला बीर, पिंगला बीर, जती बीर, थती बीर, घोर वीर, अघोर वीर, चंड वीर, प्रचंड वीर, दूधिया नरसिंह, डांडिया नरसिंह, मिलता है। मगर उत्तराखंड में नाथपंथी साधु और सिद्ध योगी बाबा नरसिंह के चार रूपों की भी पूजा की जाती है इनमें मुख्य रूप से दूधिया नरसिंह, कच्या नरसिंह, डौंडिया नरसिंह, खरंडा नरसिंह है। इन सभी नरसिंह में सबसे शांत रूप दूधिया नरसिंह का और सबसे क्रोधी और उग्र रूप डौंडिया नरसिंह का बताया गया है। कच्या और खरंडा नरसिंह दूधिया और डौंडिया नरसिंह के साथ रहने वाले वीर भैरव नाथ के रूप बताए गए हैं। दूधाधारी रूप उत्तराखंड में शांत माना गया है जिनकी पूजा रोट और दूध से की जाती है। जबकि वहीं डौंडिया उग्र रूप माना गया है जिनकी पूजा में किसी प्रकार की बलि का प्रयोग करना पड़ता है। यह न्याय के देवता माने जाते हैं और किसी भी प्रकार के अन्याय होने पर भक्तों द्वारा इनकी गुहार लगाई जाती है और गुहार लगाने के बाद इनको पूजा दी जाती है।नरसिंह देवता महिलाओं पर होने वाले अत्याचार यानी कि बहनों पर होने वाले अत्याचार को सहन नहीं कर पाते हैं वह हर वक्त उनकी रक्षा में खड़े रहते हैं। उत्तराखंड में इनके शांत रूप को घर के अंदर एवं उग्र रूप को घर के बाहर पूजा जाता है और इन्हें यहां थान देवता की संज्ञा मिली है। इनके स्थान पर एक टिमरू का डंडा, नेपाली चिमटा, और खरवा की झोली रखी जाती है जो कि इनको बहुत प्रिय है।