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फोटो: गर्जिया देवी मन्दिर, रामनगर (नैनीताल, उत्तराखण्ड) - सोशल मीडिया

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Garjiya Devi Temple History: गर्जिया देवी मंदिर का नाम कैसे पड़ा गिरिजा देवी नाम

garjiya devi temple history: नैनीताल जिले के रामनगर में स्थित मां भवानी का यह मंदिर, हिमालय की पुत्री होने के कारण कहलाती है गिरजा देवी….

उत्तराखंड में कई ऐसे मंदिर एवं शक्तिपीठ हैं जो भगवती दुर्गा को समर्पित है। मगर आज हम आपको उत्तराखंड में स्थित एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जो देवी पार्वती को समर्पित है और भगवती पार्वती के मुख्य मंदिरों में से एक माना जाता है। उत्तराखंड में स्थित गर्जिया देवी मंदिर रामनगर से 15 किलोमीटर आगे कोसी नदी के किनारे बसा है और एक टीले पर स्थित है। यह देवी पार्वती के स्वरूप गर्जिया देवी को समर्पित है। इस मंदिर को गर्जिया देवी मंदिर या गिरिजा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। गर्जिया देवी मंदिर में देवी गिरिजा के साथ-साथ भगवान भोलेनाथ और भैरव नाथ का मंदिर भी स्थित है। कहते हैं कि देवी गिरिजा के मंदिर से पहले भक्तों को भैरवनाथ मंदिर के दर्शन करने होते हैं तभी गर्जिया देवी मंदिर के दर्शन संपूर्ण माने जाते हैं।
(garjiya devi temple history)
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पौराणिक कथाओं में यह है मान्यता:-

पौराणिक कथाओं के अनुसार यह मंदिर पहले इस स्थान पर नहीं हुआ करता था। इस स्थान पर गर्जिया देवी ऊपरी इलाकों से कोसी नदी में बह कर आयी है। धार्मिक एवं पौराणिक कथाओं के अनुसार पुराने समय में कोसी नदी में भयंकर बाढ़ आयी थी तब इस नदी के बाढ़ के पानी में एक टीला बह कर आ रहा था जिस पर भगवती गर्जिया की प्रतिमा स्थापित थी। तब यह भगवती गिरिजा देवी नाम से नहीं बल्कि उपट कालिंका के नाम से जानी जाती थी। जब कोसी नदी के बाढ़ में बह कर यह नदी रामनगर से 15 किलोमीटर आगे सुंदर खाल जगह पर पहुंचा तो नदी में बहती देवी को देख भैरवनाथ ने गिरजा देवी को आवाज लगाकर कहा “ थिरौ बैणा थिरौ ” यानी कि “ठहरो बहन ठहरो” यहां पर रुक कर मेरे साथ निवास करो जिसके बाद देवी गिरिजा ने इस स्थान पर रुक कर भैरवनाथ के साथ निवास किया था और उपट कालिंका से वर्तमान गिरिजा यानी कि गर्जिया देवी कहलाई। गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इस मंदिर का नाम गर्जिया यानी गिरिजा पड़ा।
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मां पार्वती की वैष्णो रूप को समर्पित है यह मंदिर, नहीं दी जाती कोई बलिदानी:-

स्थानीय लोगों के अनुसार जहां पर यह टीला स्थित है पहले इस जगह पर घने जंगल एवं जंगली जानवर हुआ करते थे। इस स्थान पर तब शेर की गर्जना की आवाज सुनाई देती थी। यह मंदिर सर्वप्रथम जंगलात के एक कर्मचारी द्वारा देखा गया जिसके बाद धीरे-धीरे स्थानीय लोग भी इस मंदिर में आकर पूजा अर्चना करने लगे और भगवती से जंगली जानवरों एवं अपने आसपास के क्षेत्रों की रक्षा करने के लिए विनती करने लगे। धीरे-धीरे भगवती द्वारा लोगों की इच्छा पूर्ण करने पर लोगों के मन में इनके प्रति आस्था बढ़ने लगी और मंदिर स्थानीय लोगों में प्रचलित होने लगा। यह मंदिर देवी पार्वती के वैष्णो स्वरूप को समर्पित है। इस मंदिर में किसी भी प्रकार की बलि नहीं दी जाती है बल्कि भक्तों द्वारा माता को मनोकामना पूर्ण होने के बाद वैष्णो भोजन यानी नारियल चुनरी और प्रसाद चढ़ाया जाता है। भगवती गिरिजा देवी का यह चमत्कारी मंदिर भक्तों के बीच अपनी मन्नत पूरी करने के लिए खासा प्रसिद्ध है। इस मंदिर में युवक-युवतियों को मनचाहा जीवनसाथी की प्राप्ति होती है और निसंतान दंपति को संतान की प्राप्ति के साथ–साथ नवविवाहिता को अटल सुहाग की प्राप्ति होती है। इस पावन मंदिर में आज भी युवक-युवतियों द्वारा मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए गिरिजा देवी को प्रसाद चढ़ाया जाता है।
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मान्यता हैं कि गिरिजा देवी के दर्शन मात्र से युवक-युवतियों के विवाह में आ रही हर प्रकार की बाधाएं समाप्त हो जाती है। जो कोई भी भक्त माता गिरिजा के दर्शन सच्चे मन से एवं पूजा समर्पित भाव से करता है तो उसके द्वारा मांगी जाने वाली मन्नत कभी खाली नहीं जाती और युवक युवतियों द्वारा देवी गिरजा की पूजा अर्चना सच्चे मन से करने पर मनो इच्छित वर की प्राप्ति होती है। मन्नत पूरी होने पर भक्तगण देवी को छत्र एवं घंटियां चढ़ाते हैं। इसी के साथ इस मंदिर में स्थित भैरवनाथ जी को भी खिचड़ी का प्रसाद चढ़ाया जाता है। तो ये थी उत्तराखंड की पावन धरा पर कुमाऊं मंडल में स्थित गर्जिया देवी मंदिर, जो अपनी अपार महिमा एवं शक्ति से भक्तों के बीच प्रसिद्ध है और भक्तों की सारी इच्छा पूर्ण के साथ–साथ आने वाली कष्टों से उनकी रक्षा करती है। गर्जिया देवी भक्तों के सारे कष्ट हर कर आने वाले संकटों से भी भक्तों को सदैव आगाह करती है।
(garjiya devi temple history)

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